Posts

Showing posts from December, 2013

‘आप’ की अग्निपरीक्षा शुरू

Image
सामाजिक कार्यकर्ता से राजनीतिक बने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अग्निपरीक्षा शुरू हो गई है। चूंकि वे सिर्फ दिल्ली ही नहीं देश की जनता की आकांक्षाओं एवं अपेक्षाओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं लिहाजा वे तलवार की धार पर हैं। अब दिल्ली की राजनीति में घटित होने वाली छोटी से छोटी घटनाओं पर भी देश की निगाहें रहेंगी तथा सवाल उठते रहेंगे। पहला सवाल है क्या अरविंद केजरीवाल जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति की अवधारणा को राजनीति में पुनर्स्थापित कर पाएंगे? इसका थोड़ा-बहुत जवाब अगले वर्ष मई-जून में होने वाले लोकसभा चुनाव से मिल सकेगा जब केजरीवाल की आम आदमी पार्टी मुम्बई, दिल्ली, एनसीआर और हरियाणा में जोर-आजमाईश करेगी। पूरा जवाब पाने के लिए हमें कुछ और लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के चुनावों का इंतजार करना पड़ेगा। क्योंकि आप की राजनीतिक शक्ति का सही-सही आकलन तभी हो पाएगा लेकिन यदि दिल्ली राज्य विधानसभा के चुनावों को आधार मानकर कोई राय कायम करने की जरूरत महसूस होती हो तो यह निर्विवाद कहा जा सकता है कि आप ने देश में नई राजनीतिक क्रांति की आधारशिला रख दी है। दिल्ली चुनावों में चमत्कार की उ

कांग्रेस : अंधेरे में रोशनी की तलाश

Image
अब क्या करे कांग्रेस? छत्तीसगढ़ राज्य विधानसभा चुनाव उसने बहुत उम्मीदों के साथ लड़ा था। बहुमत पाने का विश्वास था किंतु सारी उम्मीदें चकनाचूर हो गई। अब पार्टी बदहवास की स्थिति में है जिसे संभालना मौजूदा नेतृत्व के बस में नहीं। दरअसल इस बार चुनाव में मतदाताओं ने कांग्रेस को नहीं हराया, कांग्रेसियों ने खुद यह काम किया। आपसी खींचतान, बिखरा-बिखरा सा चुनाव प्रबंध तंत्र और टिकिट वितरण में राहुल फार्मूले से किनारा करना पार्टी को इतना महंगा पड़ा कि उसे लगातार तीसरी बार भाजपा के हाथों हार झेलनी पड़ी। 2008 के 38 में से 27 विधायकों की हार से यह प्रमाणित हुआ कि मतदाताओं को पुराने चेहरे पसंद नहीं आए लिहाजा उन्होंने उनके खिलाफ मतदान किया। पहले चरण की 18 सीटों के लिए जिस फार्मूले के तहत उम्मीदवारों का चयन किया गया था, वही फार्मूला यदि शेष 72 सीटों पर लागू किया गया होता तो संभवत: आज स्थिति कुछ और होती। पार्टी बहुमत के साथ सत्ता में होती तथा भाजपा विपक्ष में खड़ी नज़र आती। लेकिन चंद नेताओं का अतिआत्मविश्वास पार्टी को ऐसा ले डूबा कि अब उससे उबर पाना असंभव नहीं तो अत्यधिक कठिन जरूर प्रतीत होता है क्योंकि प्र

उम्मीदों के पहाड़ पर तीसरी पारी

Image
राज्य विधानसभा चुनाव में सत्ता की हैट्रिक जमाने वाले मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह क्या अगले पांच साल तक निर्द्वंद्व होकर शासन कर सकते हैं? क्या जनता की अपेक्षाओं का बोझ वे बखूबी झेल पाएंगे? क्या वे फिर विपक्ष की धार को उसी तरह बोथरा बना देंगे जैसा कि सन् 2003 एवं 2008 के अपने शासनकाल में उन्होंने कर दिखाया था? क्या अगले पांच सालों में अपनी पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र पर शत-प्रतिशत अमल कर पाएंगे? क्या सरकार की चाल-ढाल एवं चेहरे में कोई रद्दोबदल होगा? सरकार पूर्वापेक्षा ज्यादा जनोन्मुखी तथा संवेदनशील होगी या तीसरा कार्यकाल उसे निरंकुशता की ओर ले जाएगा? क्या वे सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार को न्यूनतम स्तर पर ले जा सकेंगे? इस तरह के और भी कुछ सवाल हैं जो अब प्रबुद्घ जन-मानस में उमड़-घुमड़ रहे हैं। इसका बेहतर जवाब मुख्यमंत्री स्वयं तथा उनकी सरकार ही दे सकेगी पर इसमें जरा भी संशय नहीं कि उनके सामने अनेक चुनौतियां हैं जिनका सामना उन्हें तथा उनकी सरकार को करना है। विशेषकर जनअपेक्षाओं का दबाव पूर्व की तुलना में अधिक इसलिए होगा क्योंकि राज्य के मतदाताओं ने बड़ी उम्मीदों के साथ उन्हें तीसरी बार सत्त

भरोसे की हैट्रिक

Image
आखिरकार धुंध साफ हो गई। भाजपा और कांगे्रस के बीच चुनावी जंग में ऐसी कश्मकश की स्थिति बनी थी कि अंदाज लगाना मुश्किल था, बहुमत किसे मिलेगा। दोनो पार्टियों के अपने-अपने दावे थे। अपने-अपने तर्क थे। जीत का सेहरा दोनों अपने सिर पर देख रहे थे। राज्य में भारी मतदान से दो तरह की राय बन रही थी। एक अनुमान था सन् 2008 के चुनाव की तुलना में करीब 6 प्रतिशत अधिक मतदान सत्ता के पक्ष में लहर के रूप में है जबकि इसके ठीक विपरीत राय रखने वाले भी बहुतायत थे। उनका मानना था कि अधिक मतदान सत्ता के प्रति विक्षोभ का परिणाम है। इसीलिए इसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा। वह सत्ता में लौटेगी। और तो और एक्जिट पोल भी अलग-अलग राय दे रहे थे। अधिकांश की राय थी कि भाजपा पुन: सरकार बनाने जा रही है। कांग्रेस के पक्ष में भी कुछ एक्जिट पोल थे। यानी कुल मिलाकर असमंजस की स्थिति थी। मतगणना के पूर्व तक विचारों का ऐसा धुंधलका छाया हुआ था, कि ठीक-ठीक अनुमान लगाना भी मुश्किल था। लेकिन अब मतगणना के साथ ही कुहासा छंट गया है। कयासों  को दौर खत्म हो गया है। और नतीजे जनता के सामने हैं। भाजपा ने हैट्रिक जमायी है। डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व म

एक्जिट पोल का सच

Image
स्पष्ट बहुमत के साथ तीसरी बार सरकार बनाने का मुख्यमंत्री रमन सिंह का दावा क्या सच साबित होगा? चुनाव पूर्व एवं चुनाव के बाद हुए सर्वेक्षणों पर गौर करें तो ऐसा संभव प्रतीत हो रहा है। राज्य में चुनाव आचार संहिता लागू होने के पहले कुछ न्यूज चैनलों के एवं भाजपा के अपने सर्वेक्षण तथा मतदान के बाद हुए सर्वेक्षणों से यह बात उभरकर सामने आई कि लगभग 50-53 सीटों के साथ भाजपा छत्तीसगढ़ में पुन: सत्तारूढ़ होने जा रही है। मुख्यमंत्री ने राज्य में 11 नवम्बर को हुए भारी भरकम मतदान को देखते हुए विश्वास व्यक्त किया था कि उनकी हैट्रिक तय है। लेकिन यही दावा पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी सहित राज्य के वरिष्ठ कांग्रेस नेता भी कर रहे हैं। एक्जिट पोल के नतीजे आने के बावजूद वे अपने दावे पर कायम हैं। जाहिर है किसके दावे में कितना दम है, यह दो दिन बाद, 8 दिसम्बर को होने वाली मतगणना से स्पष्ट हो जाएगा। जहां तक चुनाव सर्वेक्षणों की बात है, वे केवल संकेत देते हैं। वे एकदम सच नहीं होते किंतु जिज्ञासुओं को सच के काफी करीब ले जाते हैं। इन सर्वेक्षणों से यह अनुमान तो लगाया ही जा सकता है कि किस पार्टी को बहुमत मिल रहा

दिल्ली पर निगाहें

Image
पांच राज्य विधानसभा के चुनावों में दिल्ली का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है। देश की निगाहें इस चुनाव पर इसलिए टिकी हुई हैं क्योंकि पहली बार राजधानी में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बनी है। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी की पार्टी का मुकाबला दो स्थापित राष्ट्रीय दल कांग्रेस एवं भाजपा से है। 70 सीटों के इस चुनाव में ऊंट किस करवट बैठेगा, कहा नहीं जा सकता अलबत्ता तीनों पार्टियां बहुमत का दावा कर रही हैं। नक्शा 8 दिसम्बर को साफ हो जाएगा जब मतपेटियों से जनता का फैसला बाहर आएगा। इसमें दो राय नहीं है कि चुनाव प्रचार के दौरान केजरीवाल की पार्टी ने बड़ा दम-खम दिखाया है। स्थानीय मुद्दों को लेकर वह दिल्ली की जनता को यह विश्वास दिलाने की कोशिश करती करी है कि कांग्रेस अथवा भाजपा के राज में उसका भला नहीं होने वाला। इसमें भी दोय राय नहीं कि आम आदमी की पार्टी ने लोगों के दिलों को झंझोड़ा है और वे उसकी ओर आकर्षित हुए हैं। लेकिन यह आकर्षण उसे सत्ता तक पहुंचा पाएगा अथवा नहीं, कहना कठिन है पर यह भी स्पष्ट है कि उसने एक तीसरी ताकत के रूप में दिल्ली में अपनी धमक बनाई है। पार्टी ने चूंकि शून्य से शुरुआत की