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Showing posts from February, 2014

तनाव का हद से गुजर जाना...

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रिश्तेदारों की हत्या और उसके बाद आत्महत्या जैसी दर्दनाक घटनाएं छत्तीसगढ़ में इन दिनों आम हो गई हैं। कोरबा के बाकीमोंगरा में पैसे के लेनदेन के मामले में एक बेटे ने अपनी मां की हत्या की और बाद में खुद फांसी पर लटक गया। राज्य में ऐसे बहुतेरे उदाहरण हैं जिसमें जरा-जरा सी बात पर निकट रिश्तेदारों की हत्या करने के बाद आरोपियों ने खुद को गोली मार ली या अन्य तरीकों से जान दे दी। रायपुर की बात करें तो हाल ही में अवैध संबंधों के चलते ताजनगर पंडरी के अल्ताफ ने पहले अपनी बीवी ंऔर दो बच्चों का कत्ल किया और बाद में खुद फांसी पर लटक गया। ताजा वाकया जगदलपुर का है जो और भी दर्दनाक और दिल दहला देने वाला है। नक्सली मोर्चे पर वीरता के पुरस्कार से नवाजे गए सीएसपी देवनारायण पटेल को 24 फरवरी 2014 को एक जज के साथ मारपीट करने के आरोप में निलंबित कर दिया गया था और उसी दिन देर रात उन्होंने सर्विस रिवाल्वर से अपनी पत्नी की हत्या की और फिर खुद को गोली मार ली। गोली चलाने में उनके दो बच्चों को भी चोटें आई जिनमें एक की हालत गंभीर है। दिनोंदिन बढ़ रही ये घटनाएं तेजी से बढ़ रहे सामाजिक विघटन की ओर इशारा करती हैं। यह इ

लोकसभा चुनाव : जोगी का सियासी दांव

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अजीत जोगी फिर सुर्खियों में हैं। नवम्बर 2013 में राज्य विधानसभा चुनाव के पूर्व उन्होंने संगठन खेमे के वर्चस्व को चुनौती देकर खूब सुर्खियां बटोरी थी और अंतत: पार्टी हाईकमान पर भी दबाव बनाने में कामयाब हुए थे। दरअसल पूर्व मुख्यमंत्री राजनीति के इस खेल में बड़े माहिर हैं। जब प्रदेश के चुनाव नतीजे कांग्रेस के खिलाफ गए और सरकार बनने की उम्मीदें टूट गई तब जोगी ने पुन: पैंतरा बदला। उन्होंने घोषणा की कि वे एक वर्ष तक सक्रिय राजनीति से दूर रहेंगे, चुनाव नहीं लड़ेंगे। अलबत्ता दिल्ली के बुलावे पर पार्टी बैठकों में भाग लेते रहेंगे। उन्होंने पूरे वर्ष अपने निवास में भजन-कीर्तन आयोजित करने की भी बात कही और लगे हाथ एक आयोजन भी कर डाला। जाहिर है नाटकीयता से भरा उनका यह कदम भी बेइंतिहा चर्चा में आया। और अब वे फिर सुर्खियों में हैं जो लोकसभा चुनाव के संदर्भ में है। मई 2014 में लोकसभा चुनाव होने हैं और प्रदेश प्रत्याशियों की सूची में उनका नाम शामिल कर लिया गया है। राज्य विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष टी.एस.सिंहदेव से लेकर प्रदेश कांग्रेस के तमाम बड़े नेता चाहते हैं कि जोगी लोकसभा चुनाव लड़ें। इसलिए पार्टी ने

झुलस गया लोकतंत्र

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प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का दु:ख और बढ़ गया होगा। 12 फरवरी को लोकसभा में अंतरिम रेल बजट पेश होने के दौरान जिस तरह के दृश्य उपस्थित हुए उन्हें देख प्रधानमंत्री का मन अवसाद से भर गया था। रेलवे मंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे को तेलंगाना विरोधी सांसदों ने बजट भाषण नहीं पढ़ने दिया, खूब हंगामा बरपा किया, सरकार के मंत्री के.एस.राव, चिरंजीवी, डी.पुरंदेश्वरी और सूर्यप्रकाश रेड्डी जोर-शोर से चिल्लाते रहे। और तो और चिरंजीवी और सूर्यप्रकाश रेड्डी तो लोकसभा स्पीकर के सामने वेल में कूद गए। भारी हंगामे और विरोध की वजह से रेलवे मंत्री केवल 20 मिनट भाषण पढ़ पाए। ऐसा पहली बार है जब हंगामे की वजह से किसी मंत्री को अपना बजटीय भाषण आधा-अधूरा छोड़ना पड़ा हो। प्रधानमंत्री का दु:खी होना स्वाभाविक था क्योंकि उनकी अपील का भी कोई असर नहीं हुआ। प्रधानमंत्री ने कहा- मंत्रियों की करतूत से लोकतंत्र शर्मसार हुआ है। लेकिन संसदीय गरिमा की अगले ही दिन यानी 13 फरवरी को और धज्जियां उड़ गई। कल से कहीं ज्यादा। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार लोकसभा में केंद्र सरकार ने तेलंगाना विधेयक पेश किया। आंध्रप्रदेश को विभाजित कर अलग से तेलंगा

रह गई कसर

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मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह द्वारा वर्ष 2014-15 के लिए पेश किए गए बजट में कुछ बेहतर प्रावधानों के अलावा कोई विशेष बात नहीं है। विकास की बातें तो बजट का एक अनिवार्य हिस्सा होती ही हैं लिहाजा इस बजट में भी विकास पर विशेषकर कृषि एवं शिक्षा पर खासी धनराशि की व्यवस्था की गई है। कई अर्थों में इसे हम विकास-परक बजट कह सकते हैं लेकिन इस बजट में आम आदमी को कोई फौरी राहत नहीं है अलबत्ता किसानों, उद्योगपतियों, व्यवसायियों का अच्छा ध्यान रखा गया है। राज्य की जनता को सिर्फ इतनी राहत है कि उस पर किसी नए कर का बोझ नहीं लादा गया है। लेकिन महंगाई को कम करने के कोई उपाय भी नहीं किए गए हैं। राज्य सरकार चाहती तो कम से कम रसोई गैस एवं पेट्रोल-डीजल पर वैट को घटाकर उपभोक्ताओं को सीधी राहत पहुंचा सकती थी किंतु ऐसा कुछ नहीं किया गया। अलबत्ता विकास की मूल अवधारणा को ध्यान में रखते हुए जो बजटीय प्रावधान किए गए हैं, उससे उम्मीद बंधती है कि विकास के जिस मॉडल की परिकल्पना की गई है, उस दिशा में राज्य एक कदम निश्चितत: आगे बढ़ेगा। सरकार ने इस बार कृषि के लिए कोई अलग बजट पेश नहीं किया। कृषि तथा संबद्ध क्षेत्रों के लिए 8

इस गुस्से का क्या मतलब निकालें

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नक्सली हिंसा के खिलाफ हाल में छत्तीसगढ़ में एक ऐसी घटना देखने में आई जो कुछ अर्थों में सलवा जुडूम अभियान की याद को ताजा करती है। घटना है जशपुर जिले के गांव ठुठीअंबा की है। ठुठीअंबा और आसपास के पच्चीस गांवों के लगभग 500 आदिवासियों ने नक्सलियों के खिलाफ हथियार उठा लिए। कुल्हाड़ी, फरसे, तीर-कमान जैसे हथियारों से लैस ये ग्रामीण क्षेत्र में सक्रिय 50 से अधिक नक्सलियों से मुकाबला करने जंगलों में घुस गए। इस टोली में बच्चों से लेकर 70-72 साल के वृद्ध भी शामिल थे जो माओवादियों की हिंसा, लूटपाट एवं हफ्तावसूली से परेशान थे। उनके धैर्य का बांध तब टूटा जब माओवादियों ने बहू-बेटियों की इज्जत पर हाथ डालना शुरू किया। झारखंड सीमा से सटा ग्राम ठुठीअंबा आरा ग्राम पंचायत के अन्तर्गत आता है। नक्सलियों के खिलाफ मोर्चा खोलने ग्रामीणों ने बाकायदा रणनीति बनाई और 27 जनवरी 2014 को नक्सलियों की तलाश में वे जंगल में घुस गए। यह अलग बात है कि उनके हत्थे एक भी नक्सली नहीं चढ़ा और रात होते-होते ही वे अपने गांव इस संकल्प के साथ लौट गए कि नक्सली ज्यादतियों का विरोध जारी रखेंगे, भले ही जान क्यों न गंवानी पड़े। मारेंगे या