Posts

Showing posts from March, 2014

झीरम: फिर वही कहानी

Image
नक्सल मोर्चे पर और कितने दावे? और कितने संकल्प?  और कितनी जानें? क्या खोखले दावों और संकल्पों का सिलसिला यूं ही चलता रहेगा और निरपराध मारे जाते रहेंगें? राज्य बनने के बाद, पिछले 13 वर्षों में जब- जब नक्सलियों ने बड़ी वारदातें की, सत्ताधीश नक्सलियों से सख्ती से निपटने के संकल्पों को दोहराते रहे. चाहे वह प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी हों या वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह जिनके हाथों में तीसरी बार सत्ता की कमान है. नक्सलियों से युद्ध स्तर पर निपटने की कथित सरकारी तैयारियों के बखान के बावजूद राज्य में न तो नक्सलियों का कहर कम हुआ, न ही घटनाओं में उल्लेखनीय कमी आई और न ही नक्सलियों के हौसले पस्त हुए. उनका सूचना तंत्र कितना जबरदस्त है उसकी मिसाल यद्यपि अनेक बार मिल चुकी है, लेकिन ताजा वाकया ऐसा है जो उनके रणनीतिक कौशल का इजहार करता है. राज्य के पुलिस तंत्र में बडे- बड़े ओहदों पर बैठे अफसरों ने शायद ही कभी सोचा हो कि जीरम घाटी में कभी दोबारा हमला हो सकता है. पिछले वर्ष 25 मई को इसी घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेसियों के काफिले पर हमला किया था जिसमे 31 लोग मारे गए

जोगी की दूर की कौड़ी

Image
. छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की पराजय के बाद प्रदेश के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी  की एक वर्ष के लिए राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा दरअसल उनकी कूटनीतिक चाल थी, जो अंतत: सफल रही. वे जानते थे, लोकसभा चुनाव में पार्टी को उनकी जरूरत पड़ेगी. इसलिए उन्होंने राजनीति की शतरंज की बिसात पर अपने मोहरे इस ढंग से आगे बढ़ाए कि बाजी जीती जा सके. ठीक ऐसा ही हुआ. नवम्बर 2013 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की पराजय से खुद को बेहद दुखी एवं मायूस दिखाते हुए उन्होंने एक वर्ष के लिए सक्रिय राजनीति से दूर रहकर भजन-कीर्तन में व्यस्त रहने का एलान किया था. लेकिन इसके साथ ही उन्होंने अपने लिए एक पतली सी गली जरूर छोड़ दी ताकि वक्त आने पर उससे बाहर निकला जा सके. संन्यास की घोषणा करते हुए उन्होंने कहा था कि कांग्रेस की उच्च स्तरीय बैठकों में भाग लेते रहेंगे. जाहिर है, राजनीति से उनका यह अर्धसंन्यास था, जिसका वक्त आने पर टूटना तय था. जैसी कि उन्हें उम्मीद थी, यह 4 माह के भीतर ही टूट गया. कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें महासमुंद संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लडऩे का

किसे चुने, किसे छोड़ें?

Image
कांग्रेस में टिकिट के लिए घमासान कोई नई बात नहीं है। लोकसभा एवं राज्य विधानसभा के प्रत्येक चुनाव में ऐसा होता ही रहा है। छत्तीसगढ़ भी इससे अछूता नहीं है। लेकिन ऐसा पहली बार है जब किसी संसदीय सीट पर प्रत्याशी के अंतिम चयन में कांग्रेस हाईकमान कोई निर्णय नहीं ले पा रहा हो। रायपुर लोकसभा सीट ऐसी ही सीट है जहां घोषित प्रत्याशी बदला गया, नया चुना गया, फिर नए को भी बदलकर पुराने पर मोहर लगाई गई और चंद घंटों के भीतर पुराने पर भी तलवार लटका दी गई। छाया वर्मा, सत्यनारायण शर्मा और फिर छाया वर्मा लेकिन अब छाया वर्मा का बी फार्म रोके जाने से इस संभावना को बल मिला है कि उनके मामले में पुनर्विचार किया जा रहा है और बहुत संभव है उनके स्थान पर किसी और को टिकट दे दी जाए। मोहम्मद अकबर और प्रतिभा पांडे वे दावेदार हैं जिनके नाम पर नई दिल्ली में विचार-मंथन किया जा रहा है। रायपुर में प्रत्याशी के चयन को लेकर ऐसी स्थिति पहले कभी निर्मित नहीं हुई। पार्टी में गुटबाजी इसकी प्रमुख वजह है। कांग्रेस की पहली सूची में जब छाया वर्मा का नाम आया तो यह हैरान करने वाली बात थी क्योंकि उन्हें भाजपा प्रत्याशी रमेश बैस के