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Showing posts from July, 2014

नक्सल समस्या- विचारों का टकराव, केन्द्र व राज्य सख्ती के हिमायती

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माओवादियों से वार्ता के पक्ष में छत्तीसगढ़ के नए राज्यपाल   -दिवाकर मुक्तिबोध छत्तीसगढ़ के नए राज्यपाल श्री बलरामदास टंडन ने छत्तीसगढ़ की नक्सल समस्या पर स्पष्ट रूप से अपने विचार रखे हैं। राज्यपाल के रूप में नामित होने के तुरंत बाद चंडीगढ़ में मीडिया से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि वे इस समस्या का हल बातचीत के जरिए ही संंभव देखते हैं। श्री टंडन राजनीतिक बिरादरी से हैं तथा पंजाब के उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं। जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में गिने जाने वाले 87 वर्षीय वयोवृद्ध राज्यपाल का मानना है कि बंदूक की नोक पर राज्य की इस समस्या को सुलझाया नहीं जा सकता। अत: जरूरी है कि माओवादियों को वार्ता के लिए तैयार किया जाए। श्री टंडन राज्यपाल के रूप में इस दिशा में किस तरह पहल करेंगे, करेंगे भी या नहीं, यह भविष्य ही बताएगा लेकिन रमन सिंह सरकार अब बातचीत की बहुत इच्छुक नहीं है। यह इसलिए भी है क्योंकि केन्द्र सरकार के गृहमंत्री राजनाथ सिंह माओवादियों के साथ वार्ता के पक्ष में नहीं है और वे ताकत के बल पर नक्सल समस्या को खत्म करने का इरादा रखते हैं। इसीलिए उन्होंने छत्तीसगढ़ सहित न

देश के दुश्मन से मुलाकात किसलिए

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- दिवाकर मुक्तिबोध देश एवं समाज के लिए खतरा बने आतंकवादियों से क्या किसी पत्रकार को बातचीत करनी चाहिए? क्या उसका इंटरव्यू लेना चाहिए? क्या ऐसा करना देशहित में है? क्या पेशेगत इमानदारी का यह तकाजा है? क्या लेखकीय स्वतंत्रता सर्वोपरि है? क्या वह देश से ऊपर है? क्या ऐसा केवल सस्ती लोकप्रियता हासिल करने,मीडिया में चर्चा में रहने एवं सनसनी पैदा करने के खातिर है? क्या स्वशासित मीडिया इसे ठीक मानता है? क्या नैतिक एवं सार्वजनिक हितों की दृष्टि से इसका समर्थन किया जा सकता है? ये कुछ सवाल हैं जो बेहद गंभीर हैं तथा इन पर गहन चिंतन की जरूरत है। ये सवाल अभी इसीलिए उठ खडेÞ हुए हैं क्यों कि देश के वरिष्ठ पत्रकार एवं भाषा के पूर्व सम्पादक वेदप्रताप वैदिक ने 3 जुलाई को पाकिस्तान के प्रवास के दौरान लाहौर में पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जमात-उद-दावा के प्रमुख  हाफिज मोहम्मद सईद से मुलाकात की जो लगभग सवा घंटे तक चली।  हाफिज को मुंबई ब्लास्ट का मुख्य आरोपी माना जाता है तथा भारत के लिए मोस्ट वांटेड है जिसने पाकिस्तान में पनाह ले रखी है। कुख्यात अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के इस प्रमुख

कांग्रेस के आंदोलन में आम आदमी

छत्तीसगढ़ प्रदेश कांगे्रस कमेटी के नेतृत्व में देश में बढ़ती महंगाई, राज्य में बिजली दरों मेें वृद्धि, राशन कार्डों में गड़बड़ी, धान के समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी एवं जनता के अन्य सवालों को लेकर कांगे्रस ने राजधानी में जंगी प्रदर्शन किया। इन मुद्दों पर मुख्यमंत्री के घेराव का पूर्व घोषित संकल्प था और जैसा कि स्वाभाविक था, पुलिस की चाक-चौबंद व्यवस्था के चलते यह घेराव हो नहीं सकता था। यानी मुख्यमंत्री के घेराव की घोषणा औपचारिक मात्र थी। मकसद था जनता से सम्बद्ध सवालों को जोर-शोर से उठाना ताकि उसका सकारात्मक संदेश जाए तथा निष्क्रियता के आरोप एवं चुनाव में पराजय की हताशा से पीछा छूटे। लेकिन क्या ऐसा हो पाया? क्या संगठन के सभी गुटोें ने सरकार के खिलाफ मोर्चे में एकजुटता का परिचय दिया? और क्या इस आंदोलन का आम लोगों पर कोई असर हुआ?             दरअसल यह एक राजनीतिक पार्टी का राजनीतिक आंदोलन था जिसमें आम आदमी गायब था। राजनीतिक आंदोलन, धरना प्रदर्शन, रैली अमूमन इसी तरह हुआ करते हैं, अपनी ताकत दिखाने के लिए जिसके पीछे मूल भावना राजनीतिक लाभ उठाने, कार्यकर्ताओं में जोश भरने तथा उनकी सक्रियता बनाए रखने