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Showing posts from October, 2015

जनविरोध की तीव्रतम अभिव्यक्ति

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-दिवाकर मुक्तिबोध      देश की साहित्यिक बिरादरी में इन दिनों ऐसा वैचारिक द्वंद चल रहा है जो स्वतंत्र भारत में इसके पूर्व कभी नहीं देखा गया था। शुरुआत इसी वर्ष अगस्त माह में कन्नड़ के प्रतिष्ठित लेखक एवं साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित एम.एम. कलबुर्गी की दिनदहाड़े हत्या की घटना से हुई। इस घटना से समूचे कर्नाटक के लेखक, विचारक, रंगकर्मी एवं बुद्धिजीवी बुरी तरह आहत हुए और उन्होंने तथा अनेक लोकतांत्रिक संस्थाओं ने अपने-अपने ढंग से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलने के षड़यंत्र के खिलाफ विरोध दर्ज किया। कन्नड़ लेखक की हत्या की घटना की अनुगूंज यद्यपि पूरे देश में सुनी गई किंतु छिटपुट आंदोलनों एवं वक्तव्यबाजी से ज्यादा कुछ नही हुआ। यह शायद इसलिए क्योंकि कलबुर्गी को क्षेत्रीयता की नजरों से देखा जा रहा था। हालांकि इसके पूर्व महाराष्ट्र में नरेंद्र दाभोलकर एवं गोंविद पानसरे की हत्या की घटना से देश का प्रबुद्ध वर्ग ज्यादा आंदोलित था तथा उसने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी।    बहरहाल नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे एवं कलबुर्गी की हत्या की घटनाओं ने चिंता की जो

नक्सलवाद की विदाई! ऐसे कैसे?

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- दिवाकर मुक्तिबोध   छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने हाल ही में नई दिल्ली में मीडिया ये चर्चा करते हुए कहा था कि राज्य में नक्सली समस्या अब केवल तीन जिलों सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर तक सिमटकर रह गई है। मुख्यमंत्री 28 सितंबर से नई दिल्ली में थे और छत्तीसगढ़ सदन में वे कुछ पत्रकारों से मुखातिब थे। उन्होंने यह भी कहा कि नक्सलियों का विदेशों में नेटवर्क है और अब राज्य में केवल 400 हार्डकोर नक्सली शेष है। मुख्यमंत्री का दावा तो अपनी जगह पर है लेकिन यह भी सच है कि इन तीन जिलों से परे भी आए दिन नक्सली वारदातें होती रहती हैं। पर इसमें शक नहीं कि नक्सलियों के आतंक का दायरा सिमट रहा है। यह अद्र्धसैनिक बलों की भारी संख्या में नक्सली क्षेत्रों में तैनाती, मुठभेड़ों में दर्जनों हार्डकोर माओवादियों के मारे जाने एवं बड़ी संख्या में पुलिस के आगे आत्मसमर्पण की घटनाओं से संभव हुआ है। यह भी स्पष्ट है कि केंद्र व राज्य सरकार के बीच नक्सली मुद्दे पर बेहतर तालमेल है एवं उन्होंने पूरी ताकत झोंक रखी है। नक्सली बैकफुट पर है। उनमें बौखलाहट है। लेकिन वे राज्य से बिदा नहीं हुए है। फि

स्मार्ट विलेज, पता नहीं कब स्मार्ट बनेंगे

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- दिवाकर मुक्तिबोध       प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल ही में अमेरिका यात्रा के दौरान भारत के डिजिटल भविष्य पर लंबी चौड़ी बातें हुईं। कुछ वायदे हुए, कतिपय घोषणाएँ हुईं। मसलन गूगल भारत में 500 रेलवे स्टेशनों को वाईफाई से लैस करने में मदद करेगा, एपल की सबसे बड़ी निर्माण कंपनी फॉक्सकान भारत में प्लांट लगाएगा, आईफोन 6 एस व 6 एस प्लस भारत में जल्द लॉच होंगे। एक ओर महत्वपूर्ण घोषणा हुई, माइक्रोसाफ्ट भारत के 5 लाख गांवों में कम कीमत पर ब्रांडबैंड कनेक्टिविटी उपलब्ध कराएगा।       डिजिटल इंडिया के स्वप्नद्रष्टा नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा इस मामले में सफल कहीं जाएगी कि विश्व आईटी सेक्टर के दिग्गजों यथा सुंदर पिचई सीईओ गूगूल, जॉन चैम्बर्स सीईओ सिस्को, सत्य नड़ेला सीईओ माइक्रोसाफ्ट तथा पॉल जैकब्स प्रेसीडेंट क्वॉलकॉन ने डिजिटल क्षेत्र में भारत की प्रगति को शानदार बताते हुए मुक्तकंठ से मोदी की प्रशंसा की। इन आईटी प्रशासकों के विचारों का लब्बोलुआब यह था कि पीएम मोदी दुनिया बदल देंगे, उनके पास ग्लोबल विजन है और भारत इनोवेशन की धरती है। मोदी की प्रशंसा में काढ़े गए इन कसीदों की