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Showing posts from December, 2018

अजीत जोगी : न किंग बने न किंगमेकर

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-दिवाकर मुक्तिबोध  छत्तीसगढ़ राज्य विधानसभा की 90 सीटों के लिए हुए चुनाव के परिणामों से स्पष्ट है कि प्रदेश की नई-नवेली छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस ने तीसरे विकल्प के रूप में स्वयं को जिंदा रखा है। अधिकांश राजनीतिक विश्लेषकों जिनमें कुछ उच्च सरकारी अधिकारी भी शामिल हैं, का ख्याल था कि इस पार्टी का खाता भी नहीं खुलेगा और यदि बहुत हुआ तो एकाध सीट से उसे संतोष करना होगा। अलबत्ता यह आम राय थी कि चुनाव में इस पार्टी की मौजूदगी से भाजपा को कम, कांग्रेस को ज्यादा नुकसान होगा। लेकिन जब परिणाम आए तो वे कांग्रेस के मामले में चौंकाने वाले तो थे ही, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के सन्दर्भ में भी संभावना के प्रतिकूल थे। नया प्रांत बनने के 18 साल बाद यह पहली बार हुआ है कि किसी तीसरी पार्टी ने राजनीति में अपनी कुछ दमदार हैसियत दर्ज कराई हो। बसपा के साथ हुए उसके चुनावी गठबंधन में उसके सात उम्मीदवारों का विधानसभा के लिए चुनकर आना मायने रखता है। इसके पूर्व हुए तीन चुनावों में केवल बसपा के ही इक्के-दुक्के विधायक निर्वाचित होते रहे हैं । हालाँकि 2003 के पहले चुनाव में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का

मुक्तिबोध:प्रतिदिन (भाग-23)

                                   पीले पत्तों के जग में मेरे जीवन की फिलॉसफी उस सुख को स्थान नहीं था। विष में थी पहिचान पुरानी मधु में तू अनजान नहीं था। पतझर की कोकिल नीरव थी अंधकार में बंधन पाये, पीले पत्तों के इस जग में जब झंझा से तुम बन आये। जब तुझको समझा न सकी थी मेरे अंतस की ये आहें, आँखों ने तब प्यार सम्हाला दे दुख को कितनी ही राहें। करूणा की जीवन-झोली में मैंने किस सुख के कण पाये? पीले पत्तों के इस जग में जब झंझा-से तुम बन आये। (रचनाकाल 3 फरवरी, 1936। उज्जैन। रचनावली खंड 1 में संकलित)                                   मरण-रमणी (मैने मरण को एक विलासिनी सुन्दरी माना है। और वह एक ऐसी सुन्दरी है जो कठोर नहीं है किन्तु हमारे अरमान पूर्ण करना ही मानों उसने  धैर्य बना रखा है। पर एक शर्त पर, जो उससे विलास करने को राजी हो। मैंने उसे 'प्रेयसी', 'ममता-परी', 'सखी', 'आली', इत्यादि शब्दों से संबोधित किया है क्योंकि वह वैसी है भी। मरण -सुन्दरी हमें आकर्षण द्वारा खींचकर ले जाएगी, न कि यमदूतों के समान। वह हमें अपने अंचल से बाँधकर ले जाएगी। क

घर बैठ जाएँगे टी एस सिंहदेव?

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- दिवाकर मुक्तिबोध  छत्तीसगढ़ राज्य विधान सभा चुनाव के नतीजों के लिए अब कुछ ही दिन शेष हैं। मतदाताओं के रुझान को भाँपते हुए कांग्रेस का ख्याल है कि वह 15 वर्षों बाद सत्ता में वापसी कर रही है। इसलिए प्रदेश कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने अपने -अपने पत्ते खोलने शुरू कर दिए हैं। चूँकि उन्हें पूर्ण बहुमत मिलने का विश्वास है, लिहाजा अजीत जोगी के नेतृत्व वाली छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के सहयोग की उन्हें कोई जरूरत नहीं है। पार्टी नेताओं का मानना है कि कांग्रेस को कुल 90 मे से 50 से अधिक सीटें मिलेंगी। सरकार बनाने के लिए 46 सीटें चाहिए। बहुत संभव है कांग्रेस का अनुमान सही साबित हो लेकिन यदि ऐसा नहीं हुआ और दो - चार सीटें कम पड़ गई तो क्या होगा? क्या कर्नाटक का इतिहास दोहराया जाएगा जहाँ कांग्रेस की अधिक सीटें होते हुए भी मुख्यमंत्री उसका नहीं है? अजीत जोगी बार - बार कह रहे हैं कि सत्ता की चाबी उनके हाथ में होगी और वे ही मुख्यमंत्री बनेंगे। क्या वे हवा में उड़ रहे हैं या इस कथन के पीछे कोई तार्किक आधार है? जाहिर है, चुनाव के पूर्व या चुनाव के बाद ऐसे दावों का कोई ठोस आधार नहीं होता और प्रत्येक राजनी