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Showing posts from April, 2019

जोगी के लिए आगे का सफर मुश्किल भरा

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-दिवाकर मुक्तिबोध छत्तीसगढ़ की राजनीति में तीसरी शक्ति का दावा करने वाली छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस बुरे दौर से गुजर रही है। विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद प्राय: छोटे-बड़े कई सेनापति जिनमें चुनाव में पराजित प्रत्याशी भी शामिल है, एक-एक करके पार्टी छोड़ चुके हैं तथा अपनी मातृ संस्था कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। दो वर्ष पूर्व, 23 जून 2016 को अजीत जोगी के नेतृत्व में जब इस प्रदेश पार्टी का गठन हुआ था, तब कांग्रेस से असंतुष्ट व मुख्य धारा से छिटके हुए नेताओं को नया ठौर मिल गया था जो उनके लिए उम्मीद भरा था लिहाजा ऐसे नेताओं व कार्यकर्ताओं की एक तैयारशुदा फौज जनता कांग्रेस को मिल गई थी। चुनाव के पहले आगाज जबरदस्त था अत: अंत भी शानदार होगा, इस उम्मीद के साथ यह फौज जोगी पिता-पुत्र के नेतृत्व में चुनावी रण में उतरी थी, लेकिन तमाम उम्मीदों पर ऐसा पानी फिरा कि हताशा में डूबे नेता पुन: कांग्रेस की ओर रूख करने लगे हैं। अब नेतृत्व के सामने पार्टी के अस्तित्व का प्रश्न खड़ा हो गया है। संगठन में भगदड़ मची हुई है। कई पदाधिकारी इस्तीफा दे चुके हैं और खुद को कांग्रेस व भाजपा के विकल्प के रूप मे

छत्तीसगढ़ के साहू गुजरात के मोदी?

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- दिवाकर मुक्तिबोध छत्तीसगढ़ के बस्तर में चुनाव राज्य विधानसभा का हो या लोकसभा का, वह नक्सली हिंसा के साये से जरूर गुजरता है। लेकिन यहाँ के मतदाता अपने वोटों के जरिए हिंसा व आतंक का करारा जवाब भी देते है। पूर्व में सम्पन्न हुए सभी चुनाव इसके उदाहरण है। यानी बस्तर में चुनाव के दौरान हिंसा कोई नई बात नहीं है पर इस बार महत्वपूर्ण यह है कि हमेशा की तरह बहिष्कार की चेतावनी के साथ हाथ-पैर काट डालने की नक्सली धमकी के बावजूद आदिवासी महिलाओं, पुरूषों एवं युवाओं ने मतदान ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया व रिकार्ड मतदान किया वह भी तब जब मतदान के दो दिन पहले नक्सलियों ने बारूदी विस्फोट में दंतेवाड़ा के विधायक भीमा मंडावी की हत्या कर दी थी। बस्तर लोकसभा सीट के लिए 11 अप्रैल को मतदान था। जाहिर था, नक्सलियों द्वारा की गई हिंसा से समूचे इलाके में दहशत फैल गई किंतु जब मतदान का दिन आया, मतदाता घर से निकल पड़े और बिना किसी भय के मतदान केन्द्रों के सामने उन्होंने लंबी-लंबी कतार लगाई। एक लाइन में भीमा मंडावी की शोकाकुल पत्नी, बच्चे व परिवार के अन्य सदस्य भी शामिल थे। उन्होंने अपना सारा दुख भूलकर मतदान कि

चिंता और चुनौती में फँसे रमन सिंह

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- दिवाकर मुक्तिबोध  भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व छत्तीसगढ़ के पूर्वं मुख्यमंत्री डा रमन सिंह इन दिनों किन-किन चिंताओं, किन-किन मुसीबतों के दौर से गुजर रहे हैं, इसे वे ही बेहतर जानते हैं। ये मुसीबतें कुछ राजनीतिक हैं, कुछ पारिवारिक। लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान 11 अप्रैल, दूसरे चरण का 18 व अंतिम 23 अप्रैल को है। यानी चुनाव की घड़ी एकदम नजदीक आ गई है और चुनाव में पार्टी की वैतरणी पार लगाना उनकी जिम्मेदारी हैं। दिसंबर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखते हुए, यह बेहद मुश्किल काम है, इसे वे भी जानते हैं और भाजपा के अन्य शीर्ष नेता भी। पिछले दो लोकसभा चुनाव में जीती गई 11 में से 10 सीटें लगातार तीसरी बार जीतना भाजपा के लिए नामुमकिन है। मोदी है तो मुमकिन है, का फार्मूला छत्तीसगढ़ में असर दिखा पाएगा, यह भी सोचना कठिन है। फिर भी तीन बार के मुख्यमंत्री होने के नाते मूल जिम्मेदारी उनकी बनती है क्योंकि संगठन में करीब-करीब सारे प्यादे उन्होंने अपने हिसाब से सजा रखे हैं। इसलिए लोकसभा चुनाव ही वह मौका है जिसमें उन्हें यह साबित करना है कि विधानसभा चुनाव भले ही पार्ट