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चिंतन शिविर में कितनी चिंता

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- दिवाकर मुक्तिबोध बारनवापारा चिंतन शिविर  छत्तीसगढ़ में राजसत्ता इन दिनों आशंकाओं के दौरे से गुजर रही है। आशंकाएं-कुशंकाएं सत्तारुढ़ भाजपा की चौथी पारी को लेकर है जिसे दो वर्ष बाद अक्टूबर-नवंबर 2018 में चुनाव समर में उतरना है। मुसीबत की जड़ है छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी) जिसे अस्तित्व में आए महज चंद दिन ही हुए है। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के नेतृत्व में तीसरा मोर्चा खुलने से भाजपा में चिंता के बादल गहरा गए हंै। एक तरफ उसे कांग्रेस से मुकाबला करना है और दूसरी तरफ जोगी कांग्रेस से। घबराहट इसलिए भी है क्योंकि पिछले राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस केवल 0.75 प्रतिशत वोटों से पीछे रह गई थी। वोटों के मामूली अंतर से भाजपा तीसरी बार सरकार बनाने में कामयाब तो जरुर हो गई किन्तु उसे अहसास हो गया कि चौथी पारी के लिए कुछ ज्यादा मशक्कत करनी होगी लेकिन राज्य में बदले हुए राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए पार्टी की चिंता द्विगुणित हो गई है। उसे महसूस हुआ है कि जब तक सत्ता और संगठन में आपसी सामंजस्य नहीं होगा, नौकरशाही नियंत्रित नहीं होगी, सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ स