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Showing posts from October, 2016

इस उत्सव में जन कहां

-दिवाकर मुक्तिबोध      इस वर्ष का राज्योत्सव छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार के लिए खास महत्व का है। यह गंभीर चुनौतियों की दृष्टि से भी है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति की वजह से भी। मोदी राज्योत्सव का उद्घाटन करेंगे तथा काफी वक्त बिताएंगे। जाहिर है उनकी उपस्थिति को देखते हुए राज्य सरकार विकास की झलक दिखाने और बहिष्कार पर आमादा कांग्रेस व अन्य पार्टियों से राजनीतिक स्तर पर निपटने में कोई कोर कसर नहीं छोडऩी चाहती। प्रधानमंत्री को यह दिखाना जरूरी है कि राज्य में सब कुछ ठीक-ठाक है, अमन-चैन है, सरकार की योजनाएं दुत गति से चल रही हैं और विकास छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में पसरा नजर आ रहा है। राजनीतिक चुनौतियों से निपटने में भी सरकार और पार्टी सफल है तथा सन् 2018 के राज्य विधानसभा चुनाव व उसके अगले वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव के संदर्भ में प्रधानमंत्री को फिकर करने की जरूरत नहीं है। इसके लिए सब कुछ युद्ध स्तर पर चल रहा है, राजनीतिक मोर्चे के साथ ही सामाजिक व आर्थिक मोर्चे पर भी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को यह संदेश देने, उन्हें आश्वस्त करने सरकार और पार्टी जीतोड़ मेहनत कर रह

स्मरण: वे कहीं गए हैं, बस आते ही होंगे

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-दिवाकर मुक्तिबोध    'शिष्य। स्पष्ट कह दूं कि मैं ब्रम्हराक्षस हूँ किंतु फिर भी तुम्हारा गुरु हूँ। मुझे तुम्हारा स्नेह चाहिए। अपने मानव जीवन में मैंने विश्व की समस्त विद्या को मथ डाला, किन्तु दुर्भाग्य से कोई योग्य शिष्य न मिल पाया कि जिसे मैं समस्त ज्ञान दे पाता। इसलिए मेरी आत्मा इस संसार में अटकी रह गई और मैं ब्रम्हराक्षस के रुप में यहाँ विराजमान रहा। ' 'नया खून' में जनवरी 1959 में प्रकाशित कहानी 'ब्रम्हराक्षस का शिष्य' मैंने बाबू साहेब से सुनी थी। बाबू साहेब यानी स्वर्गीय श्री गजानन माधव मुक्तिबोध, मेरे पिता जिन्हें हम सभी, दादा-दादी भी बाबू साहेब कहकर पुकारते थे। यह उन दिनों की बात है जब हम राजनांदगाँव में थे - दिग्विजय कॉलेज वाले मकान में। वर्ष शायद 1960। तब हमें बाबू साहेब यह कहानी सुनाते थे पूरे हावभाव के साथ। हमें मालूम नहीं था कि यह उनकी लिखी हुई कहानी हैं। वे बताते भी नहीं थे। कहानी सुनने के दौरान ऐसा प्रभाव पड़ता था कि हम एक अलग दुनिया में खो जाते थे। विस्मित, स्तब्ध और एक तरह से संज्ञा शून्य। अपनी दुनिया में तभी लौटते थे जब कहा

धोनी की कप्तानी की अग्निपरीक्षा आज से

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हेलीकॉप्टर शॉट आसमान छुएगा या जमींदोज होगा? -दिवाकर मुक्तिबोध आज से एम.एस. धोनी की एक नई परीक्षा की शुरुआत है। यह परीक्षा ठीक वैसे ही है जब कोई नवोदित खिलाड़ी टेस्ट कैप के लिए घरेलू क्रिकेट में झंडा फहराने की कोशिश करता है। दरअसल न्यूजीलैंड के खिलाफ एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय 5 मैचों की शुरुआत 16 अक्टूबर को धर्मशाला से हो रही है। एक दिवसीय के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी इस शृंखला में कड़ी परीक्षा के दौर से गुजरने वाले हैं। इस परीक्षा को टेस्ट कप्तान विराट कोहली ने और भी कठिन बना दिया है। उन्होंने तीन टेस्ट मैचों की शृंखला में मेहमान टीम को बुरी तरह से धोया और आईसीसी रैंकिंग में भारत को पुन: नम्बर एक की स्थिति में पहुंचा दिया। धोनी भी ऐसा कमाल कर चुके हैं किंतु अब एक दिवसीय में रैकिंग सुधारने के लिए उन्हें न्यूजीलैंड को 4-1 से हराना होगा। धर्मशाला की पिच सफलता के लिहाज से भारत के लिए अनुकूल नहीं है। वहां अब खेले गए 2 एक दिवसीय में भारत ने 1 मैच जीता, एक हारा हालांकि इस पिच पर अलग-अलग क्रिकेट देशों के बीच अब तक कुल 10 मुकाबले हुए हैं। तो अब सवाल क्या धोनी की कप्तानी में