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Showing posts from 2021

कुछ यादें, कुछ बातें - 27

- दिवाकर मुक्तिबोध ----------------------- #गिरिजाशंकर देशबंधु में राजनारायण मिश्र ,रम्मू श्रीवास्तव व सत्येन्द्र गुमाश्ताजी की एक पहचान सिटी रिपोर्टर की भी रही है। दरअसल यह वह समय था जब 10-12 पृष्ठों के अखबार में सीनियर पत्रकार डेस्क के काम के साथ ही इक्कादुक्का सिटी की खबरें भी कर दिया करते थे। लेकिन बाद के समय में नगर की खबरों के लिए अलग डेस्क व रिपोर्टरों की टीम बनी। इस डेस्क के प्रमुख थे गिरिजाशंकर। क्वालिटी रिपोर्टिंग में नंबर वन। सबसे आगे, अव्वल। 70 के दशक में मेरी उनसे मुलाकात नयी दुनिया ( बाद में देशबन्धु ) में हुई। मैं उन्हें रंग कर्मी के बतौर जानता था जो उन दिनों जीवन बीमा निगम में कार्यरत थे तथा नहर पारा स्थित अखबार के दफ्तर में अक्सर आया जाया करते थे। प्रायः उनकी बैठक ललित जी तथा राजनारायण जी के साथ हुआ करती थी। हालांकि उनका औपचारिक परिचय तो संपादकीय विभाग के सभी साथियों से हो गया था जिसमें मैं भी था। मुलाकात व बातचीत का सिलसिला तब चल निकला जब उन्होंने एलआइसी की नौकरी छोड़ दी व पूर्णतः देशबंधु में आ गए। गिरिजा बहुमुखी प्रतिभा के धनी है। उनकी सबसे बड़ी खूबी है उनकी वाचालता। ख

कुछ यादें, कुछ बातें - 26

- दिवाकर मुक्तिबोध ----------------------- मेरे समकालीन व बाद की पीढी के छत्तीसगढ़ के अनेक ऐसे पत्रकार हैं जिन्होंने पत्रकारिता इस प्रदेश में रहते हुए प्रारंभ की लेकिन बाद में राज्य से बाहर चले गए व ख्यातनाम हुए। जो नाम मुझे याद आते हैं और जिनके साथ मेरा अनियमित सम्पर्क रहा है, उनमें प्रमुख हैं दीपक पाचपोर, निधीश त्यागी, सुदीप ठाकुर ,विनोद वर्मा, विजय कांत दीक्षित , शुभ्रांशु चौधरी ,महेश परिमल आदि आदि। संयोगवश ये सभी अलग-अलग समय में ललित सुरजन जी की पत्रकारिता पाठशाला यानी देशबंधु से निकले छात्र हैं। देशबंधु में कुछ महीने या कुछ वर्ष काम करने के बाद वे नये आकाश की तलाश में राज्य से बाहर निकले तथा जिन-जिन राष्ट्रीय अखबारों व मीडिया संस्थानों में रहे ,उन्होंने पत्रकारिता में अपना व छत्तीसगढ़ का मान बढाया। एक नाम और है, मेरे समकालीन जगदीश उपासने का। जहां तक मैं जानता हूं, उन्होंने रायपुर से प्रकाशित हिंदुत्ववादी विचारधारा के अखबार दैनिक युगधर्म से पत्रकारिता की शुरुआत की। बतौर पत्रकार मैं उन्हें जानता था पर कोई खास मुलाकात नहीं थी। आत्मिक परिचय का दायरा इसलिए भी आगे नहीं बढ पाया क्योंकि जगद

कुछ यादें, कुछ बातें - 25

- दिवाकर मुक्तिबोध -------------------------- #विजय_शंकर_मेहता रायपुर में पोस्टिंग के पूर्व विजय शंकर मेहता जी कौन है, मैं नहीं जानता था। बाद में मैंने जाना कि वे स्टेट बैंक आफ इंडिया उज्जैन में अधिकारी हैं तथा वहाँ दैनिक भास्कर ब्यूरो का अप्रत्यक्ष रूप से कामकाज देखते है। यह भी सुना कि दैनिक भास्कर के मालिकों से उनके अच्छे संबंध है तथा समूह संपादक श्रवण गर्ग को वे अपना गुरू मानते हैं। शायद उन्होंने बैंक की नौकरी छोडऩे का मन बना लिया था और अब पूर्णकालिक पत्रकारिता करना चाहते थे। लिहाजा इसकी शुरूआत रायपुर से की जा रही थी। वे रायपुर आए व संपादक का पदभार ग्रहण किया। दुर्योग से इस अवसर पर मैं उपस्थित नहीं था। दरअसल मैं बीमार था। घुटने में बार-बार पानी भरने की वजह से चलने-फिरने से लाचार था फलत: लंबी छुट्टी पर था। लेकिन मेरी अनुपस्थिति का गलत अर्थ निकाला गया व मेहता को कुछ विघ्नसंतोषियों द्वारा यह बताने की कोशिश की गई कि मैं बीमारी का बहाना बना रहा हूँ क्योंकि मैं अपना तबादला भिलाई नहीं चाहता। संभवत: यह बात उपर तक पहुँचाई गई। बहरहाल जब मेरी स्थिति कुछ ठीक हुई तो मैं दफ़्तर पहुँचा व मेहता जी

कुछ यादें कुछ बातें-24

- दिवाकर मुक्तिबोध ------------------------ कमल ठाकुर कमल ठाकुर जी से पहली मुलाकात कब और कहां हुई याद नहीं। मैं अखबारी दुनिया में नया नया था लिहाजा इतना जरुर जानता था कि वे नवभारत के संपादकीय विभाग में हैं और काफी सीनियर है। पता चला था कि सरकारी नौकरी मेंं थे पर वहां मन रमा नहीं इसलिए इस्तीफा देकर रायपुर लौट आए। पर मेरी उनसे पहली मुलाकात नवभारत नहीं, महाकोशल में हुई। श्यामाचरण शुक्ल के स्वामित्व वाले छत्तीसगढ़ के इस सबसे पुराने समाचार पत्र का प्रबंधन श्यामाचरण जी ने नवभारत के संपादक गोविंद लाल वोरा जी को सौंप दिया था। कमल ठाकुर महाकोशल मेंं भेज दिए गए थे। ऐसे ही किसी दिन महाकोशल में उनसे औपचारिक बातचीत हुई पर बात आगे नहीं बढ़ी। परिचय व आत्मीयता का दायरा तब बढा जब हम अमृत संदेश में साथ साथ काम करने लगे। 1983 के प्रारंभ में गोविंद लाल वोरा जी ने अपने अखबार अमृत संदेश के प्रकाशन की तैयारी शुरू की। नवभारत की नौकरी छोड़कर हम तीन सहयोगी नरेंद्र पारख, रत्ना वर्मा व मैं वोरा जी के साथ हो लिए थे। अमृत संदेश की लान्चिग के लिए कम से कम तीन महीने का वक्त था। इस बीच तैयारियां पूरी करनी थी। बाद में

कुछ यादें कुछ बातें - 23

श्रवण गर्ग __________ मेरे एक और संपादक श्रवण गर्ग का जिक्र करना चाहूंगा। वे पहले दैनिक भास्कर इन्दौर के स्थानीय संपादक थे। बाद में दैनिक भास्कर समाचार पत्र समूह संपादक बने तथा काफी समय तक इस पद पर रहे। वे बहुत सुलझे हुए, ईमानदार व कलम के धनी पत्रकार हैं। लेकिन उनका सामना करने मेंं प्राय: हर पत्रकार घबराता था जिनमें मैं भी शामिल था। दरअसल श्रवण जी स्वभाव से कड़े व रूखे हैं। पर जिनसे उनका मन मिलता था वह व्यक्ति उनका मुरीद हो जाता था। उनकी नाराजगी आमतौर पर काम को लेकर रहती थी। वे परफेक्शनिस्ट हैं और ऐसी ही उम्मीद अपने मातहत पत्रकारों से रखते थे। उनका इस बात पर बहुत जोर था कि पत्रकारों को हमेशा अपडेट रहना चाहिए। जहां कहीं कुछ भी घटित हो रहा हो , उसकी जानकारी तुरंत उसे होनी चाहिए। वे खुद भी अपडेट रहते थे और जो ऐसा नहीं कर पाता था, उसकी शामत तय थी। हालांकि जब गुस्सा शांत हो जाता, वे पुचकारने में देर नहीं करते थे। मैं उनसे घबराता था। घबराहट इसलिए रहती थी कि पता नहीं क्या पूछेंगे और मैं ठीक जवाब दे पाऊंगा कि नहीं। जब कभी किसी घटना के बारे में पूछताछ करने उनका भोपाल से फोन आता तो मैं कोशिश क

कुछ यादें कुछ बातें - 22

-दिवाकर मुक्तिबोध अमृत संदेश के दो और साथियों का जिक्र करना चाहूंगा एक परितोष चक्रवर्ती और दूसरे कमल ठाकुर। परितोष को देशबंधु के जमाने से जानता था जब वे इस पत्र के पर्यटक संवादाता थे और छत्तीसगढ़ के गांवों का दौरा करके रिपोर्ट तैयार करते थे। शायद छत्तीसगढ़ के किसी भी अखबार के वे एकमात्र पर्यटक रिपोर्टर थे। बीच-बीच में वे जरूरत के हिसाब से रायपुर दफ्तर आते। देशबंधु में उनसे परिचय मात्र हुआ, आत्मीयता नहीं बनी। मैं नहीं जानता था कि वे कवि व कहानीकार भी हैं। उन्हें जानने की तब ललक सवार हुई जब देशबन्धु में उनकी एक श्रृंखला का सिलसिलेवार प्रकाशन प्रारंभ हुआ। यह सीरीज थी रिपोर्टर सुनील की। प्रख्यात जासूसी उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक के काल्पनिक पात्र सुनील को केंद्र में रखकर एक नई शैली में लिखी गई कहानियां। मैं रहस्य कथाओं का बचपन से पाठक रहा हूं। प्रेमी रहा हूं। मेरठ व  इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाले तमाम जासूसी उपन्यासों को मैंने खूब पढ़ा है। सुरेंद्र मोहन पाठक भी उनमें से एक हैं। परितोष का यह लेखन मुझे बहुत अच्छा लगा हालांकि इनका कथानक अब मुझे याद नहीं है पर उसका एहसास दिल में अभी भी बना

कुछ यादें कुछ बातें - 21

-दिवाकर मुक्तिबोध छत्तीसगढ़ के स्थापित अखबार नवभारत व देशबन्धु इस मुगालते में थे कोई भी नया अखबार प्रचार प्रसार के मामले में उन्हें चुनौती नहीं दे सकता इसलिये वे निश्चिंत थे अतः उन्होंने दैनिक भास्कर को गंभीरता से नहीं लिया जिसने राजधानी व राज्य में अपने पैर जमाने तरह-तरह के उपाय आजमाने शुरू कर दिये थे जिनमें घरेलू उपयोग में आने वाले वस्तुओं की पुरस्कार योजना महत्वपूर्ण थी। अनेक दफे चली ये योजनाएं कारगर रहीं। अब स्थिति यह हैं कि दैनिक भास्कर वर्षों से राज्य का सबसे बडा अखबार बना हुआ है तथा नवभारत व देशबंधु अपने अस्तित्व की रक्षा करने संघर्ष कर रहे हैं। दैनिक भास्कर की यात्रा कमाल की है। अचंभित करने वाली। पाठकों को प्रलोभन देकर कोई अखबार जबर्दस्ती पढाया नहीं जा सकता। इसके लिए जरूरी है कंटेंट। और इसके लिए आवश्यक है ऐसी संपादकीय टीम जो पाठकों की जरूरत व मनोभाव को समझें और इसके अनुसार कार्य करें, अखबार बनाए। ग्राहकों को आकर्षित करने पुरस्कार योजनाएं शुरू करने के साथ ही दैनिक भास्कर ने अखबार में परोसी जाने वाली सामग्री की ओर सर्वाधिक ध्यान दिया। इसके लिए उसने संपादकों व प्रबंधकों की ऐसी टी

कुछ यादें कुछ बातें - 20

-दिवाकर मुक्तिबोध #दीपक_पाचपोर पत्रकारिता के मेरे प्रारंभिक दिनों के साथी थे दीपक पाचपोर। देशबन्धु में हम साथ साथ थे। सामान्य कदकाठी के दीपक चुलबुले थे। मजेदार बातें करते थे। खूब बातें। बात बात में हंसी। हंसें तो चेहरा फैलना स्वाभाविक। पता नहीं दिन के बारह घंटों में किस वक्त उनका चेहरा सामान्य यानी गंभीर नजर आता होगा। लेकिन यह बडी बात थी कि अपनी इसी प्रकृति से वे संपादकीय विभाग के माहौल को जिंदा व खुशनुमा रखते थे। दीपक रिपोर्टर थे। अच्छे रिपोर्टर। हिंदी के साथ अंग्रेजी में भी उनकी अच्छी पकड़ थी। शहर के लोगों के साथ उनका खासा मेलजोल था। वे देशबन्धु में कुछ ही वर्ष रहे। फिर पत्रकारिता छोड दी व रायपुर से निकल गए। इसके बाद मेरा उनसे खास सम्पर्क नहीं हुआ हालांकि खबरें मिलती रहीं कि वे दूसरे राज्य में सरकारी नौकरियां पकडते-छोडते रहे हैं। सालों गुजरने के बाद पता चला कि वे अखबारी दुनिया में लौट आएं हैं और जनसत्ता मुम्बई में हैं। फिर एक दिन सूचना मिली कि दीपक पाचपोर भारत एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड (बाल्को ) कोरबा पहुंच गये हैं तथा जनसम्पर्क विभाग में वरिष्ठ पद पर हैं। मैं दैनिक भास्कर में था।