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Showing posts from September, 2014

आलोक तोमर के बहाने

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- दिवाकर मुक्तिबोध   आलोक तोमर को मैं व्यक्तिगत रुप से नहीं जानता. औपचारिक परिचय का सिलसिला भी कभी नहीं बना. हालांकि वे एकाधिक बार रायपुर आए पर खुद का परिचय देने के अजीब से संकोच की वजह से उनसे कभी नहीं मिल पाया किंतु बतौर पत्रकार मैं भावनात्मक रुप से उनसे काफी करीब रहा. पता नहीं इस दृष्टि से वे मुझे कितना जानते थे, किंतु मैं यह मानकर चलता हूं कि वे मुझे इतना तो जानते होंगे कि मैं उन्हीं की बिरादरी का हूं, हमपेशा हूं. बहरहाल इस बात का अफसोस बना रहेगा कि मैं एक प्रखर व तेजस्वी पत्रकार से रुबरु नहीं हो पाया. मैं उनकी प्रतिभा का उस समय से कायल था जब उन्होंने जनसत्ता, नई दिल्ली में कदम रखा था. निश्चय ही अपनी रिपोर्टिंग एवं विश्लेषणात्मक लेखों के जरिए जिन पत्रकारों ने अत्यल्प समय में अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाई उनमें आलोक तोमर महत्वूपर्ण थे. प्रभाष जोशी ने न केवल उनकी प्रतिभा को पहचाना बल्कि उन्हें उडऩे के लिए पूरा आकाश भी दिया. आलोक तोमर ने उनके विश्वास का कायम रखा लेकिन बतौर प्रभाष जोशी वे और भी आगे बढ़ सकते थे. जनसत्ता में अपने विख्यात स्तंभ 'कागद कारे’ में उन्होंने एक

ऐसे में बेहतर था कार्यक्रम न होता

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संदर्भ: मुक्तिबोध की 50वीं पुण्यतिथि - दिवाकर मुक्तिबोध     देश के शीर्षस्थ कवि श्री विनोद कुमार शुक्ल की 75वीं वर्षगांठ मनाने क्या सरकारी आयोजन की दरकार है? वैसे शुक्ल पिछले वर्ष ही अपना 75वां पूरा कर चुके हैं। उन्हें इष्टमित्रों से जन्मदिन की बधाईयां भी मिलीं और छोटे-मोटे कार्यक्रम भी हुए। अब इसे समारोहपूर्वक मनाने की बात सामने आई है। विभिन्न क्षेत्रों में सुविख्यात एवं कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के अंतर्गत गठित हिन्द स्वराज शोध पीठ के अध्यक्ष कनक तिवारी ने राज्य शासन से अपील की है कि 15 जनवरी 2015 को राज्य सरकार एक वृहद कार्यक्रम आयोजित करके शुक्ल के जन्मदिन का सम्मान करें। 20 सितंबर को राजनांदगांव में स्व. गजानन माधव मुक्तिबोध की 50वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में कनक तिवारी ने मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से यह अपील की। संस्कृति विभाग के इस कार्यक्रम में संस्कृति मंत्री अजय चंद्राकर, स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल, लोक निर्माण मंत्री राजेश मूणत के अलावा स्वयं श्री विनोद कुमार शुक्ल भी मंच पर मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन करते हुए कनक तिवारी ने कह

कविताएं

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यों कविताएं मैं नहीं लिखा करता। न पढ़ने में बहुत रूचि है और लिखने का तो प्रश्न ही नहीं। लेकिन जिंदगी के दौर में कुछ क्षण ऐसे आते हैं, जब कविता खुद-ब-खुद अपना रास्ता ढूंढ लेती हैं। कुछ ऐसा ही हुआ। अलग-अलग समय में पता नहीं कैसे मैने दो-चार कविताएं लिख डाली। न किसी को दिखायी और न ही उन्हे छपने योग्य माना। सालों बाद एक दिन कागजों के ढेर को अलटते-पलटते ये कविताएं हाथ लगीं। सोचा और कहीं न सही, इन्हे अपने फेसबुक वॉल पर डाल दूं। सो देख लीजिए। शायद पसंद आ जाए। ------------------------------ ------------------------------ -------------------------- अपने सूरज के लिए .............................. ... नंगे, भूखे, बेसहारों नियति को अब तो ठोकर मारो तुम्हारे सीने पर उनका महल टिका है अनंत काल से। हिलना नहीं हिलना नहीं कानों में निरंतर जहर घोलती आवाजें और खून की लकीरें खींचते चाबुक तुम्हारे हिलने का उन्हे कितना डर है खुद तुम्हे नहीं मालूम। गहरी-गहरी सांसें लेने से अब काम नहीं बनेगा उठो प्रयत्नपूर्वक उठो वे तुम्हें ठोकरों पर रख लेंगे बस चले तो तुम्हारी एक-एक हड्डी

ऐसी फजीहत दुबारा न हो

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-दिवाकर मुक्तिबोध     छत्तीसगढ़ प्रदेश कांगे्रस के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ, उस दौर में भी नहीं जब छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश का एक हिस्सा था। राज्य विधानसभा के किसी चुनाव, उपचुनाव में पार्टी द्वारा घोषित अधिकृत प्रत्याशी नामांकन वापसी की तिथि के एक दिन पूर्व नाम वापस ले ले और पार्टी को डूबने के लिए मंझधार में छोड़ दे, हैरतअंगेज है और दु:खद भी। यह राजनीति का वह स्याह चेहरा भी है जो आर्थिक प्रलोभन के लिए मूल्यों के साथ समझौते में विश्वास रखता है। राज्य के अंतागढ़ उपचुनाव में कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी मंतूराम पवार द्वारा नाम वापस लेने की घटना राजनीति के इसी चरित्र की ओर संकेत है। प्रदेश कांगे्रस के लिए यह घटना स्तब्धकारी है। इससे भाजपा को अंतागढ़ में एक तरह से वाकओव्हर मिल गया है। क्योंकि पवार के अलावा डमी उम्मीदवार के रूप में उनकी पत्नी ने नामांकन भरा था वह भी खारिज हो गया।  कांग्रेस अब हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं कर सकती। अंतागढ़ बिना लडेÞ ही हाथ से जा चुका है।             पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निकट रहे मंतूराम पवार ने ऐसा क्यों किया, यह कांगे्रस के लिए शोध और सोच का विषय है। ऐ