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कुछ यादें कुछ बातें -12

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कवि-पत्रकार मित्र सुधीर सक्सेना पर संस्मरण की इस कड़ी के साथ ही 'कुछ यादें कुछ बातें' शृंखला पर अल्प विराम। इसी शीर्षक से कुछ और यादें जो प्रदीर्घ हैं, कुछ ठहरकर फ़ेसबुक पर नमूदार होंगी। समापन कड़ी के साथ पत्रकारिता की यादों के इस सफ़र में मुझे सबसे अच्छी बात यह लगी कि मित्रों ने प्रतिक्रिया में अपनी यादें साझा की, सभी को दिल से याद किया, आदरांजलि दी। मेरा मक़सद पूरा हुआ। तो फिर मिलते हैं कुछ समय बाद। शुक्रिया  ________________________________ सुधीर सक्सेना --------------------- -दिवाकर मुक्तिबोध सुधीर सक्सेना, एक ऐसा कवि पत्रकार जो इस बात से बेचैन है कि साहित्यिक बिरादरी उन्हें साहित्यकार नहीं मानती तथा पत्रकार खालिस पत्रकार का दर्जा नहीं देते। एक लेखक - पत्रकार की ऐसी बेचैनी स्वाभाविक है। सुधीर ने मन की इस पीड़ा को कहीं व्यक्त किया था। चूंकि ऐसी कोई बातचीत मेरे सामने या मुझसे नहीं हुई इसलिए कह नहीं सकता इसमें कितनी सत्यता है लेकिन यदि वह सच है तो क्या सुधीर का यह क्षणिक असंतोष था जो अनायास बाहर फूट पड़ा? अपनी पहचान को लेकर वे इतने उद्वेलित क्यों हुए? उन्हें इस बात का मलाल क्य