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मोहब्बत नहीं नफ़रत को ढोती राजनीति

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- दिवाकर मुक्तिबोध 2019 का लोकसभा चुनाव अब अंतिम दौर में है। 19 मई को अंतिम चरण के मतदान के बाद 23 मई का इंतज़ार। इस दिन स्पष्ट हो जाएगा कि किस पार्टी की सरकार बनेगी। लोकसभा चुनाव के इतिहास में व्यक्तिगत आक्षेपों व अपमानजनक टिप्पणियों के लिए कुख्यात यह चुनाव और भी कई मायनों में यादरखा जाएगा। नतीजों को लेकर भी और व्यक्तित्व की दृष्टि से भी। इस चुनाव में बहुचर्चित नाम- कन्हैया कुमार। जेएनयू दिल्ली छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष। बेगूसराय से सीपीआई के युवा प्रत्याशी। अपने धारदार भाषणों व सत्ता विरोधी तेवरों से कन्हैया ने देश के पढ़े -लिखे मतदाताओं का ध्यान ठीक उसी तरहसे आकर्षित किया जैसा वर्ष 2012-13 में अरविंद केजरीवाल ने किया था। अन्ना आंदोलन से उपजे केजरीवाल दिल्ली ही नहीं , दिल्ली से बाहर भी राष्ट्रीयराजनीति में एक संभावना बनकर उभरे थे। बेहतर कल की संभावना। इसे आधार दिया था दिल्ली प्रदेश के मतदाताओं ने जिन्होंने फ़रवरी 2015 में विधानसभा के दुबारा हुए चुनाव में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को ऐसा प्रचंड बहुमत दिया जो भारतीय राजनीति में एक मिसाल बन गया। दिल्ली वि