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असाधारण जोगी

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-दिवाकर मुक्तिबोध अजीत जोगी पर क्या लिखूँ ? करीब दस साल पूर्व उनकी राजनीति व उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं पर आलोचनात्मक दृष्टि डाली थी। कई पन्नों का यह लेख ब्लाग में पड़ा रहा, बाद में कुछ पोर्टलों पर नमूदार हुआ और दिल्ली की पत्रिका 'दुनिया इन दिनों में ' कव्हर स्टोरी के रूप में प्रकाशित भी हुआ। चूँकि इस आलेख में वर्ष 2010 तक की जोगी-यात्रा का समावेश है लिहाजा इसी वर्ष यानी 2020 में समाप्त होने वाले दशक में उनकी राजनीति पर कुछ और बातें की जा सकती हैं। अजीत जोगी तीस साल और ज़िंदा रहने वाले थे। ऐसी उनकी जिजीविषा थी।अपनी नई पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ के गठन के पूर्व , 15-16 फ़रवरी 2016 को खरोरा में आयोजित सर्वधर्म सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था- "जो लोग मुझे बुज़ुर्ग , बेकार व अशक्त समझते हैं , उन्हें मैं बता देना चाहता हूँ कि छत्तीसगढ के हितों की रक्षा के लिए मैं अगले तीस सालों तक ज़िंदा रहूँगा ।" जोगी उस समय 71 वर्ष के थे। उनका यह कथन बताता है कि पकी हुई उम्र में भी वे युवोचित आत्मविश्वास व दृढ़ इच्छा शक्ति से लबरेज़ थे। और यकीनन इसी जीवन-शक्ति

मदर्स डे: माँ, मेरी माँ

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- दिवाकर मुक्तिबोध -------------------------- ( माँ को गुज़रे दस वर्ष हो गए। पिताजी बहुत पहिले चले गए, 1964 में। उनकी कुछ यादें लिखीं । छपी भी। उनके साथ  माँ का भी स्मरण करता रहा लेकिन लिखा कुछ नहीं जबकि विकट परिस्थितियों के बीच उन्होंने ही हमें छोटे से बड़ा किया, हमारी बेहतर परवरिश की। उनकी छत्रछाया भी ईश्वर की कृपा से दीर्घ अवधि तक हम पर बनी रहीं। उन्होंने करीब 87 साल की उम्र पाई जबकि पिताजी 47 की आयु में गुज़र गए। मां की यादें मन में ही क़ैद रह जातीं बशर्ते ख्यात आलोचक सूरज पालीवाल ने प्रेरित न किया होता। रायपुर में पिताजी की पुण्यतिथि, 11 सितंबर 2019 के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम पर बोलते हुए उन्होंने माँ को याद किया व उन पर लिखे जाने की ज़रूरत बताई। उन्होंने कहा और मन में यह बात घर कर गई कि बिखरी -बिखरी सी ही सही पर माँ के बारे में लिखकर मन को शांत किया जाना चाहिए। सो शुरू हुआ यादों का एक और सफ़र। इस सफ़र में पिताजी भी हैं और उनसे संबंधित कुछ ऐसे प्रसंग भी जिनका ज़िक्र पहिले हो चुका है।) शांता मुक्तिबोध । यह नाम था माँ का । यह नाम किसका दिया हुआ था , मुझे नहीं मालूम। विवाह