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कुछ यादें कुछ बातें- 2

राजनारायण मिश्र : राजनारायण जी यदि आज हमारे बीच होते तो इसी माह की 7 तारीख़ को उनका 88वाँ जन्मदिन मना चुके होते। प्रतापगढ़ , उत्तर प्रदेश में जन्मे राजनारायण जी ने पत्रकारिता की शुरूआत 1955 में साप्ताहिक पत्र ' मुक्ति ' से की। 1956 से बिलासपुर से इस अखबार का संपादन, 1959 देशबंधु (तब नई दुनिया ) से जुड़े। करीब तीस साल बाद देशबंधु छोड़कर दुर्ग से प्रकाशित दैनिक अमर किरण का संपादन 1989-91, 1991-95 रौद्रमुखी रायपुर फिर जनसत्ता 2001-2004 और अंत में दैनिक भास्कर वर्ष 2005 साथ ही खुद के साप्ताहिक 'संघर्ष के स्वर' का प्रकाशन। ग्रामीण रिपोर्टिंग में स्टेट्समैन राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार। - दिवाकर मुक्तिबोध ______________ उनकी मौत से चंद रोज पूर्व मैं उनसे मिलने गीता नगर स्थित उनके घर गया था। लंबे समय से बीमार थे राजनारायण मिश्र जी। करीब 55-56 बरस तक ख़बरों के पीछे दौड़ता-भागता शरीर लाचार होकर बिस्तर पर पड़े-पड़े छटपटा रहा था। यह छटपटाहट तन से ज्यादा मन की प्रतीत हुई। टूटे-फूटे शब्दों में जब उन्होंने कहा कि अब मौत आ जाए तो बेहतर है , सुनकर स्तब्ध रह गया। मन भी भर आया। यह कैसी

कुछ यादें कुछ बातें - 1

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पदुम लाल पुन्ना लाल बख़्शी जी का प्रसिद्ध निबंध है, ' क्या लिखूँ '। निबंध के इस शीर्षक की याद अनायास हो आई। दरअसल आईपैड हाथ में था और सोच रहा था - क्या लिखूँ। दिमाग़ के घोड़े दौड़ा रहा था पर कुछ सूझ नहीं रहा था। हालाँकि रोज़मर्रा जिंदगी के आसपास इतनी घटनाएँ घटित होती हैं कि विषयों का अकाल नहीं पड़ सकता , कोई समस्या नहीं हो सकती पर अनेक दफे ऐसे क्षण भी आते हैं जब मनोनुकूल विषय नहीं मिलते और आप सोचते रह जाते हैं कि क्या लिखें ? ऐसे ही एक दिन इसी सवाल से जूझ रहा था । जब देर तक कोई सिरा पकड़ में नहीं आया , कुछ नहीं सूझा तो एकाएक ख़्याल आया कि ' दास्तानें-सफ़र ' तो लिखा ही जा सकता है जिसमें गुरूजन हो तो भी कोई हर्ज नहीं। इसलिए इसे कलमबद्ध करना प्रारंभ किया जिसमें सहकर्मी मित्रगण तो हैं ही , कुछ वरिष्ठ भी हैं । यादों की इस क़वायद का शीर्षक दिया है - ' कुछ यादें कुछ बातें ' । यादों और बातों का नया सिलसिला शुरू हो , इसके पूर्व यह भी स्पष्ट करना जरूरी है कि जिन संपादकों के मातहत मैंने अखबारनवीसी प्रारंभ की , उन पर मैंने समय-समय पर लिखा और उनमें से कुछ लेख प्रकाशित भी हुए