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Showing posts from 2019

न हम हारे न तुम जीते

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चुनौतियों के बीच गुज़रा बघेल सरकार का एक वर्ष - दिवाकर मुक्तिबोध  किसी सरकार के सौ दिन , दो सौ दिन , तीन सौ पैंसठ दिन और इसी तरह बढ़ते-बढते पाँच वर्ष पूर्ण होने पर स्वाभाविकत: उसके कामकाज का आकलन किया जाता है। सौ दिन व दो सौ दिन तो ख़ैर महत्व रखते ही हैं पर हाँ एक वर्ष पूर्ण होने पर अंदाज हो जाता है कि ट्रेन पटरी पर ठीक से दौड़ रही है कि नहीं और उसकी गति क्या है। छत्तीसगढ की कांग्रेस सरकार को इसी दिसंबर में एक साल पूर्ण हो गए। इस अवधि में से एप्रिल-मई में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव व नगरीय निकायों के चुनाव की तैयारियों के पाँच महीनों को निकाल दिया जाए तो सरकार के पास सात माह ही बचते हैं जो वास्तविक कामकाज के महीने हैं। इन महीनों में सरकार का कामकाज कैसा रहा तो एक पंक्ति में यह बात निकलकर आती है कि- सामान्य लेकिन उम्मीदों भरा। इस दरमियान सरकार का समूचा ध्यान पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में जनता से किए गए वायदों पर केन्द्रित रहा और उनमें से काफी कुछ पर सैद्धांतिक रूप से अमल किया जा चुका है। फिर भी बहुतेरे कारणों से जिनमें राजनीतिक व प्रशासनिक प्रमुख है, ट्रेन वह गति नहीं पक

पुण्यतिथि : रश्मि मुक्तिबोध चंदवासकर

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( 01 सितंबर 1979-22 अक्टूबर 2016 ) _______________________ बेटी रश्मि की , पंचांग के हिसाब से आज तीसरी पुण्यतिथि है। कोशिश की कुछ लिखूँ लेकिन भावनाओं के अतिरेक में शब्दों का साथ छूटता चला गया । नहीं लिख पाया। पर उसे याद करते हुए पिता की भी याद हो आई और उनकी यह कविता भी। वे बातें लौट न आयेंगी -------------------------- खगदल हैं ऐसे भी कि न जो आते हैं, लौट नहीं आते वह लिये ललाई नीलापन वह आसमान का पीलापन चुपचाप लीलता है जिनको वे गुंजन लौट नहीं आते वे बातें लौट नहीं आतीं बीते क्षण लौट नहीं आते बीती सुगंध की सौरभ भर पर, यादें लौट चली आतीं पीछे छूटे, दल से पिछड़े भटके-भरमे उड़ते खग-सी वह लहरी कोमल अक्षर थी अब पूरा छंद बन गयी है- ' तरू-छायाओं के घेरे में उदभ्रांत जुन्हाई के हिलते छोटे-छोटे मधु-बिंबों-सी वह याद तुम्हारी आयी है'-- पर बातें लौट न आयेंगी बीते पल लौट न आयेंगे। ( गजानन माधव मुक्तिबोध , रचनाकाल 1948, मुक्तिबोध रचनावली में संकलित)

सांस्कृतिक राजनीति का नया चेहरा

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- दिवाकर मुक्तिबोध महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर भाजपा को आइना दिखाने का काम यदि किसी ने किया है तो वे भूपेश बघेल हैं, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री। गांधी जी के नाम की माला जपकर राजनीतिक रोटी सेंकने की भाजपा की कोशिश को उस समय बडा धक्का लगा जब भूपेश बघेल ने भाजपा नेताओं को चुनौती दी कि यदि उन्हें गांधी से सच्चा प्रेम है तो गांधी के हत्यारे गोडसे को मुर्दाबाद कहना होगा। जाहिर है , भाजपाई गांधी ज़िंदाबाद के नारे तो लगा सकते हैं पर गोडसे मुर्दाबाद के नहीं क्योंकि पार्टी की राष्ट्रीय रीति-नीति गोडसे व सावरकर को देशभक्त के रूप में स्थापित करने की है। चूँकि भाजपा के पास भूपेश बघेल के इस हमले का कोई जवाब नहीं था लिहाजा उसने गोलमोल जवाब देकर कन्नी काट ली। दरअसल, महात्मा गांधी की जयंती के बहाने कांग्रेस को भाजपा को घेरने व उसके साम्प्रदायिक विचारों पर गांधीवाद की परत चढ़ाने की उसकी कोशिशों को उजागर करने का अच्छा अवसर हाथ लगा जिसका पूरा फ़ायदा छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने उठाया। उसकी यह एक राजनीतिक मुहिम थी लेकिन सच्चे अर्थों में उसने गांधी को याद किया और उनके विचारों को जन-ज

राजीव के बहाने फिर चर्चा में धोनी

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- दिवाकर मुक्तिबोध   एम एस धोनी अगले वर्ष अक्टूबर में आस्ट्रेलिया में आयोजित वर्ल्ड कप टी-20 में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व करेंगे ? यानी इस हिसाब से अभी उनका रिटायरमेंट कम से कम एक साल दूर है। यह कोई अधिकृत खबर नहीं है और न ही धोनी के रिटायरमेंट के संबंध में किसी को कोई जानकारी है। केवल क़यासों का बाज़ार गर्म है। फिर वर्ल्ड कप के लिए टीम के चयन में भी काफी वक़्त है। लेकिन इसके बावजूद यदि आईपीएल चेयरमैन राजीव शुक्ला के बयान पर ग़ौर करें तो इस संभावना को बल मिलता है कि धोनी फिलहाल संन्यास नहीं लेंगे तथा टी 20 वर्ल्ड कप के लिए उपलब्ध रहेंगे। राजीव शुक्ला ने धोनी की तारीफ़ करते हुए कहा कि उनमें बहुत क्रिकेट बाक़ी है। वे अभी रिटायर नहीं हुए हैं। चयन का काम चयन समिति करती है और धोनी अपनी व्यक्तिगत व्यवस्थाओं के कारण उपलब्ध नहीं थे। इसलिए वे खेल नहीं रहे हैं। आईपीएल चेयरमैन ने ये विचार तब व्यक्त किए जब वे 21 सितंबर को सहारनपुर के ज्ञानकलश इंटरनेशनल स्कूल के मैदान में अंतरराष्ट्रीय स्तर की क्रिकेट पिच के उदघाटन समारोह में भाग ले रहे थे। इसके बाद मीडिया से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा

कांग्रेस के पास पुन: मौका

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- दिवाकर मुक्तिबोध दो राज्यों महाराष्ट्र व हरियाणा में विधान सभा चुनाव की तिथि का एलान हो गया है। इनके साथ ही विभिन्न प्रांतों की 64 विधान सभा सीटों के लिए भी उपचुनाव होंगे। इनमें छ्त्तीसगढ़ की चित्रकोट भी शामिल है।मई में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव में भीषण पराजय के झटके से कांग्रेस कितनी उबर पाई है और उसने कितनी ताकत बटोरी है , उसे परखने का यह एक मौका है। चूँकि महाराष्ट्र व हरियाणा में भाजपा की सरकार है इसलिए कांग्रेस के बनिस्बत उसकी साख ज्यादा दाँव पर है और उसे यह भी जताना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सम्मोहन ज़रा भी खंडित नहीं हुआ है। महाराष्ट्र में भाजपा ने पिछले चुनाव में कुल 288 में से 122 जीती थी जबकि कांग्रेस ने 42। हरियाणा में दोनों के बीच 32 सीटों का फ़ासला था। वहाँ विधान सभा की 90 सीटें है। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस अपनी स्थिति कितनी सुधार पाएगी या और नीचे गिरेगी , यह तो स्पष्ट होगा ही पर इस संदर्भ में यह तथ्य भी ध्यान रखने योग्य है कि राज्य व केन्द्र के मुद्दे अलग अलग होते है जो चुनाव परिणामों को प्रभावित करते हैं। इसलिए विधान सभा चुनावों में स्थानीय मुद्दों

बघेल खींचेंगे नई लकीर ?

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- दिवाकर मुक्तिबोध एक छोटी सी खबर है लेकिन है महत्वपूर्ण । चंद रोज़ पूर्व छत्तीसगढ विधान सभा के नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के नेतृत्व में भाजपा के एक प्रतिनिधि मंडल ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से उनके सरकारी आवास में मुलाक़ात की। यह मुलाक़ात दंतेवाड़ा में नक्सली हिंसा में मारे गए भाजपा विधायक भीमा मंडावी के परिवार को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने व सुरक्षा देने से संबंधित थी। स्वाभाविकत: मुख्यमंत्री ने गर्मजोशी से उनका स्वागत कियाऔर बहुत सहज भाव से तुरंत कार्रवाई करने के निर्देश मुख्य सचिव को दिए। भाजपा नेताओं ने स्वर्गीय भीमा मंडावी के परिवार के प्रति अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी निभाते हुए कांग्रेसी मुख्यमंत्री से निवेदन करने में कोई संकोच नहीं किया। ऐसा पहले भी होता रहा है। 15 वर्षों तक भाजपा शासनकाल में राज्य के मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह ने अपने पूर्ववर्ती व अब छत्तीसगढ जनता कांग्रेस के संरक्षक अजीत जोगी को इलाज के लिए सरकारी आर्थिक मदद व अन्य सुविधाएँ उपलब्ध कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मानवीय वव्यक्तिगत संबंधों के आधार पर राजनेता एक -दूसरे की सहायता करते रहे हैं। यह क

बस कुछ माह और

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-  दिवाकर   मुक्तिबोध   तो यह तय है कि एमएस धोनी फिलहाल संन्यास नहीं लेंगे और कुछ समय के लिए एक नई भूमिका में नज़र आएँगे। उन्होंने वेस्टइंडीज़ दौरे के लिएअपनी अनउपलब्धता जाहिर कर दी है।बीसीसीआई ने इस पर विचार करते हुए उन्हें टीम के नए युवा विकेट कीपर ऋषभ पंत को ट्रेंड करने की ज़िम्मेदारी सौंपी है। यानी धोनी माक़ूल वक़्त का इंतज़ार कर रहे हैं। बहुत संभव है यह दो-तीन महीनों की बात हो। दरअसल आगामी सितंबर -अक्टूबर में दक्षिण अफ़्रीका कीटीम भारत आने वाली है। हो सकता है धोनी टीम इलेवन में चुने जाएं ताकि वे इस नायाब मौक़े पर अपने रिटायरमेंट की घोषणा कर सके। बहरहाल विराट कोहली को इस बात का शायद ताउम्र अफ़सोस कहेगा कि वे अपने 'कप्तान' को तोहफ़े के रूप में वर्ल्ड कप जीत कर नहीं दे सके। महेन्द्रसिंह धोनी को वे अपना कप्तान मानते हैं और वे यह कई बार कह चुके हैं कि धोनी उनके कप्तान हैं और हमेशा रहेंगे।इंग्लैंड में कोहली के नेतृत्व में यदिभारत ने वर्ल्ड कप जीत लिया होता तो संभवत: धोनी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से विदाई ले चुके होते और देश-विदेश के तमाम अखबार, इलेक्ट्रानिक

राहुल के बाद कौन

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-दिवाकर मुक्तिबोध मई में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को प्रचंड बहुमत मिलने की शायद उसकी उतनी चर्चा नहीं हुई जितनी कांग्रेस की अप्रत्याशित घनघोर पराजय और अब उसके भीतरखाने में चल रही क़वायद को लेकर हो रही है। राहुल गांधी के इस्तीफ़े के बाद पार्टी संगठन परिवर्तन की राह पर है और देश की निगाहें इस बात पर लगी हुई है कि कमान किसके हाथों में आने वाली है। सवाल है कि क्या कांग्रेस को वैसा ही सबल नेतृत्व मिल पाएगा जो अब तक नेहरू-गांधी परिवार से मिलता रहा है ? या क्या वह इस परिवार के आभामंडल से मुक्त होकर नए सिरे से खड़ी हो पाएगी? और क्या पार्टी में वैसा नेतृत्व मौजूद है ?     इतिहास के कुछ पन्ने पलटकर देखें। 12 नवंबर 1969 को जब अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए इंदिरा गांधी को पार्टी से निष्कासित कर दिया तो विभाजित दोनों धड़ों में नेतृत्व का कोई संकट नहीं था । उस दौर में कांग्रेस में एक से बढ़कर एक दिग्गज नेता थे। यह अलग बात है कि इंदिरा गांधी को बाहर का रास्ता दिखाने वाली सिंडीकेट कांग्रेस समय के साथ खुद राजनीतिक परिदृश्य से लुप्त हो गई और इंदिरा के नेतृत

चुनौती बाहर से नहीं भीतर से

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- दिवाकर मुक्तिबोध  इसी  17 को भूपेश बघेल सरकार के छ: माह पूरे हो गए। स्वाभाविक था वह बीते महीनों का हिसाब -किताब जनता के सामने रखती। वह रखा। सरकार के मंत्रियों ने राज्य के अलग-अलग स्थानों पर मीडिया से मुख़ातिब होते हुए सरकार के कामकाज का ब्योरा पेश किया। यह कोई रोमांचकारी नवीनतम लेखा-जोखा नहीं था जिससे प्रदेश की जनता अनभिज्ञ हो। उसके सारे काम आँखों के सामने हैं।जब सरकार के दिन पूरे होने को होते हैं , कार्यकाल समाप्ति के निकट होता है तो जनता को याद दिलाना जरूरी होता है कि उसने बीते सालों में उनके लिए क्या कुछ नहीँ किया । बघेल सरकार की अभी यह स्थिति नहीं है। उसके छ:महीनों में से तीन तो लोकसभा चुनाव व उसकी तैयारियों मे निकल गए और बचे हुए तीन महीनों में उसने जो काम किए हैं , वे यह उम्मीद "जगाते हैं कि यह सरकार काम करने वाली सरकार है, बेवजह ढिंढोरा पिटने वाली नहीं। इसलिए उसके कामकाज का समग्र आकलन करने के लिए कुछ इंतज़ार करना चाहिए, पाँच साल न सही, ढाई साल ही सही। तब नतीजे खुद-ब-खुद  बोलने लग जाएँगे। बीते दिसंबर में विधान सभा चुनाव में बंपर जीत के तुरन्त बाद जैसा कि मतदाताओ