Posts

Showing posts from 2013

‘आप’ की अग्निपरीक्षा शुरू

Image
सामाजिक कार्यकर्ता से राजनीतिक बने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अग्निपरीक्षा शुरू हो गई है। चूंकि वे सिर्फ दिल्ली ही नहीं देश की जनता की आकांक्षाओं एवं अपेक्षाओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं लिहाजा वे तलवार की धार पर हैं। अब दिल्ली की राजनीति में घटित होने वाली छोटी से छोटी घटनाओं पर भी देश की निगाहें रहेंगी तथा सवाल उठते रहेंगे। पहला सवाल है क्या अरविंद केजरीवाल जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति की अवधारणा को राजनीति में पुनर्स्थापित कर पाएंगे? इसका थोड़ा-बहुत जवाब अगले वर्ष मई-जून में होने वाले लोकसभा चुनाव से मिल सकेगा जब केजरीवाल की आम आदमी पार्टी मुम्बई, दिल्ली, एनसीआर और हरियाणा में जोर-आजमाईश करेगी। पूरा जवाब पाने के लिए हमें कुछ और लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के चुनावों का इंतजार करना पड़ेगा। क्योंकि आप की राजनीतिक शक्ति का सही-सही आकलन तभी हो पाएगा लेकिन यदि दिल्ली राज्य विधानसभा के चुनावों को आधार मानकर कोई राय कायम करने की जरूरत महसूस होती हो तो यह निर्विवाद कहा जा सकता है कि आप ने देश में नई राजनीतिक क्रांति की आधारशिला रख दी है। दिल्ली चुनावों में चमत्कार की उ

कांग्रेस : अंधेरे में रोशनी की तलाश

Image
अब क्या करे कांग्रेस? छत्तीसगढ़ राज्य विधानसभा चुनाव उसने बहुत उम्मीदों के साथ लड़ा था। बहुमत पाने का विश्वास था किंतु सारी उम्मीदें चकनाचूर हो गई। अब पार्टी बदहवास की स्थिति में है जिसे संभालना मौजूदा नेतृत्व के बस में नहीं। दरअसल इस बार चुनाव में मतदाताओं ने कांग्रेस को नहीं हराया, कांग्रेसियों ने खुद यह काम किया। आपसी खींचतान, बिखरा-बिखरा सा चुनाव प्रबंध तंत्र और टिकिट वितरण में राहुल फार्मूले से किनारा करना पार्टी को इतना महंगा पड़ा कि उसे लगातार तीसरी बार भाजपा के हाथों हार झेलनी पड़ी। 2008 के 38 में से 27 विधायकों की हार से यह प्रमाणित हुआ कि मतदाताओं को पुराने चेहरे पसंद नहीं आए लिहाजा उन्होंने उनके खिलाफ मतदान किया। पहले चरण की 18 सीटों के लिए जिस फार्मूले के तहत उम्मीदवारों का चयन किया गया था, वही फार्मूला यदि शेष 72 सीटों पर लागू किया गया होता तो संभवत: आज स्थिति कुछ और होती। पार्टी बहुमत के साथ सत्ता में होती तथा भाजपा विपक्ष में खड़ी नज़र आती। लेकिन चंद नेताओं का अतिआत्मविश्वास पार्टी को ऐसा ले डूबा कि अब उससे उबर पाना असंभव नहीं तो अत्यधिक कठिन जरूर प्रतीत होता है क्योंकि प्र

उम्मीदों के पहाड़ पर तीसरी पारी

Image
राज्य विधानसभा चुनाव में सत्ता की हैट्रिक जमाने वाले मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह क्या अगले पांच साल तक निर्द्वंद्व होकर शासन कर सकते हैं? क्या जनता की अपेक्षाओं का बोझ वे बखूबी झेल पाएंगे? क्या वे फिर विपक्ष की धार को उसी तरह बोथरा बना देंगे जैसा कि सन् 2003 एवं 2008 के अपने शासनकाल में उन्होंने कर दिखाया था? क्या अगले पांच सालों में अपनी पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र पर शत-प्रतिशत अमल कर पाएंगे? क्या सरकार की चाल-ढाल एवं चेहरे में कोई रद्दोबदल होगा? सरकार पूर्वापेक्षा ज्यादा जनोन्मुखी तथा संवेदनशील होगी या तीसरा कार्यकाल उसे निरंकुशता की ओर ले जाएगा? क्या वे सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार को न्यूनतम स्तर पर ले जा सकेंगे? इस तरह के और भी कुछ सवाल हैं जो अब प्रबुद्घ जन-मानस में उमड़-घुमड़ रहे हैं। इसका बेहतर जवाब मुख्यमंत्री स्वयं तथा उनकी सरकार ही दे सकेगी पर इसमें जरा भी संशय नहीं कि उनके सामने अनेक चुनौतियां हैं जिनका सामना उन्हें तथा उनकी सरकार को करना है। विशेषकर जनअपेक्षाओं का दबाव पूर्व की तुलना में अधिक इसलिए होगा क्योंकि राज्य के मतदाताओं ने बड़ी उम्मीदों के साथ उन्हें तीसरी बार सत्त

भरोसे की हैट्रिक

Image
आखिरकार धुंध साफ हो गई। भाजपा और कांगे्रस के बीच चुनावी जंग में ऐसी कश्मकश की स्थिति बनी थी कि अंदाज लगाना मुश्किल था, बहुमत किसे मिलेगा। दोनो पार्टियों के अपने-अपने दावे थे। अपने-अपने तर्क थे। जीत का सेहरा दोनों अपने सिर पर देख रहे थे। राज्य में भारी मतदान से दो तरह की राय बन रही थी। एक अनुमान था सन् 2008 के चुनाव की तुलना में करीब 6 प्रतिशत अधिक मतदान सत्ता के पक्ष में लहर के रूप में है जबकि इसके ठीक विपरीत राय रखने वाले भी बहुतायत थे। उनका मानना था कि अधिक मतदान सत्ता के प्रति विक्षोभ का परिणाम है। इसीलिए इसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा। वह सत्ता में लौटेगी। और तो और एक्जिट पोल भी अलग-अलग राय दे रहे थे। अधिकांश की राय थी कि भाजपा पुन: सरकार बनाने जा रही है। कांग्रेस के पक्ष में भी कुछ एक्जिट पोल थे। यानी कुल मिलाकर असमंजस की स्थिति थी। मतगणना के पूर्व तक विचारों का ऐसा धुंधलका छाया हुआ था, कि ठीक-ठीक अनुमान लगाना भी मुश्किल था। लेकिन अब मतगणना के साथ ही कुहासा छंट गया है। कयासों  को दौर खत्म हो गया है। और नतीजे जनता के सामने हैं। भाजपा ने हैट्रिक जमायी है। डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व म

एक्जिट पोल का सच

Image
स्पष्ट बहुमत के साथ तीसरी बार सरकार बनाने का मुख्यमंत्री रमन सिंह का दावा क्या सच साबित होगा? चुनाव पूर्व एवं चुनाव के बाद हुए सर्वेक्षणों पर गौर करें तो ऐसा संभव प्रतीत हो रहा है। राज्य में चुनाव आचार संहिता लागू होने के पहले कुछ न्यूज चैनलों के एवं भाजपा के अपने सर्वेक्षण तथा मतदान के बाद हुए सर्वेक्षणों से यह बात उभरकर सामने आई कि लगभग 50-53 सीटों के साथ भाजपा छत्तीसगढ़ में पुन: सत्तारूढ़ होने जा रही है। मुख्यमंत्री ने राज्य में 11 नवम्बर को हुए भारी भरकम मतदान को देखते हुए विश्वास व्यक्त किया था कि उनकी हैट्रिक तय है। लेकिन यही दावा पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी सहित राज्य के वरिष्ठ कांग्रेस नेता भी कर रहे हैं। एक्जिट पोल के नतीजे आने के बावजूद वे अपने दावे पर कायम हैं। जाहिर है किसके दावे में कितना दम है, यह दो दिन बाद, 8 दिसम्बर को होने वाली मतगणना से स्पष्ट हो जाएगा। जहां तक चुनाव सर्वेक्षणों की बात है, वे केवल संकेत देते हैं। वे एकदम सच नहीं होते किंतु जिज्ञासुओं को सच के काफी करीब ले जाते हैं। इन सर्वेक्षणों से यह अनुमान तो लगाया ही जा सकता है कि किस पार्टी को बहुमत मिल रहा

दिल्ली पर निगाहें

Image
पांच राज्य विधानसभा के चुनावों में दिल्ली का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है। देश की निगाहें इस चुनाव पर इसलिए टिकी हुई हैं क्योंकि पहली बार राजधानी में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बनी है। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी की पार्टी का मुकाबला दो स्थापित राष्ट्रीय दल कांग्रेस एवं भाजपा से है। 70 सीटों के इस चुनाव में ऊंट किस करवट बैठेगा, कहा नहीं जा सकता अलबत्ता तीनों पार्टियां बहुमत का दावा कर रही हैं। नक्शा 8 दिसम्बर को साफ हो जाएगा जब मतपेटियों से जनता का फैसला बाहर आएगा। इसमें दो राय नहीं है कि चुनाव प्रचार के दौरान केजरीवाल की पार्टी ने बड़ा दम-खम दिखाया है। स्थानीय मुद्दों को लेकर वह दिल्ली की जनता को यह विश्वास दिलाने की कोशिश करती करी है कि कांग्रेस अथवा भाजपा के राज में उसका भला नहीं होने वाला। इसमें भी दोय राय नहीं कि आम आदमी की पार्टी ने लोगों के दिलों को झंझोड़ा है और वे उसकी ओर आकर्षित हुए हैं। लेकिन यह आकर्षण उसे सत्ता तक पहुंचा पाएगा अथवा नहीं, कहना कठिन है पर यह भी स्पष्ट है कि उसने एक तीसरी ताकत के रूप में दिल्ली में अपनी धमक बनाई है। पार्टी ने चूंकि शून्य से शुरुआत की

कांग्रेस : उम्मीदें भी आशंकाएं भी

Image
दिलों की धड़कनों को तेज करने वाली घड़ी नजदीक आते जा रही है। 8 दिसम्बर को मतगणना शुरू होगी और शाम होने के पहले नई विधानसभा की तस्वीर स्पष्ट हो जाएगी। जनता के बीच कयासों का दौर अभी भी जारी है तथा कांग्रेस एवं भाजपा दोनों सरकार बनाने के प्रति आश्वस्त हैं। क्या होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन यह निश्चित है कि इस दफे का चुनावी युद्घ दोनों पार्टियों खासकर कांग्रेस के लिए 'निर्णायक' साबित होगा। वर्ष 2000 में म.प्र. से अलग होकर छत्तीसगढ़ के नया राज्य बनने एवं उसके बाद कांग्रेस की सत्ता के तीन वर्ष छोड़ दें तो बीते 10 वर्षों में पार्टी की सेहत बेहद गिरी है। पार्टी ने सन् 2003 का चुनाव गंवाया, सन् 2008 में भी वह सत्ता के संघर्ष में पराजित हुई। संगठन का ग्राफ दिनोंदिन नीचे उतरता चला गया। सार्वजनिक हितों के लिए संघर्ष का रास्ता छोड़कर नेतागण व्यक्तिगत महत्वकांक्षाओं की पूर्ति में इतने मस्त रहे कि उन्होंने पार्टी को बौना बना दिया। इतना बौना कि वह जनता की नजरों से भी उतरती चली गई। संगठन की दुर्दशा का आलम यह था कि निजी आर्थिक एवं राजनीतिक स्वार्थों के लिए अनेक कांग्रेसियों ने भाजपा के साथ

सवालों के घेरे में चुनाव आयोग

छत्तीसगढ़ में राज्य विधानसभा के चुनाव अमूमन शांतिपूर्ण ढंग से निपटने के बावजूद निर्वाचन आयोग सवालों के घेरे में है। प्रदेश सरकार के मंत्री एवं रायपुर दक्षिण से भाजपा प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल आयोग की कार्यप्रणाली से बेहद खफा हैं। उन्होने आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग ने अम्पायर नहीं, खिलाड़ी की भूमिका निभाई। उन क्षेत्रों से बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम सूची से गायब कर दिए गए जहां से उन्होने पिछले चुनाव में लीड ली थी। बृजमोहन ने यह संख्या लगभग 15 हजार बताई है। उनका यह भी कहना है कि केवल उनके क्षेत्र से नहीं पूरे प्रदेश में नाम गायब होने की वजह से हजारों मतदाता मतदान से वंचित हो गए। बृजमोहन इस पूरे मामले को कोर्ट में ले जाने की तैयारी में है। क्या चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर इस तरह के प्रश्र चिन्ह खड़े किए जा सकते हैं? लेकिन बृजमोहन एक जिम्मेदार जनप्रतिनिधि हंै इसलिए उनकी बातों को अनदेखा कैसे किया जा सकता है? यह सच है कि वे इसलिए ज्यादा नाराज हैं क्योंकि उनके निर्वाचन क्षेत्र के सैकड़ों मतदाताओं के नाम आयोग की सूची में नही आ पाए, वरना वे शायद ऐसी बात नहीं कहते। लेक

जो जीतेगा वही सिकंदर

कोई गगनभेदी धमाके नहीं। चीखते-चिल्लाते लाउडस्पीकर से कान के परदे फट जाए ऐसी आवाजें भी नहीं। छोटा-मोटा बैंड-बाजा और समर्थकों की छोटी-मोटी बारात, गली-मोहल्लों में रेंगती सी। लेकिन प्रचार धुआंधार। घर-घर जनसंपर्क। चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में ऐसे दृश्य छत्तीसगढ़ के हर शहर और गांव में देखने मिल जाएंगे क्योंकि मतदान की तिथि एकदम करीब आ गई है। 19 नवंबर को दूसरे एवं अंतिम चरण में राज्य की शेष 72 सीटें के लिए मत डाले जाएंगे। कांग्रेस और भाजपा के बीच मुकाबला कड़ा है। मुद्दे गौण हो चुके हैं। मतदाताओं ने अपना मानस बना लिया है। उन्होंने भाजपा शासन के 10 साल देखे हैं। उसके सकारात्मक, नकारात्मक पहलुओं को अपने हिसाब से तौल लिया है। यही स्थिति कांग्रेस के साथ में भी है। बीते दशक में नेताओं के क्रियाकलापों को, नीतियों और कार्यक्रमों को भी देख-परख लिया है। लिहाजा अब दोनों प्रमुख प्रतिद्वंद्वी दलों का प्रचार अभियान उनके लिए एक तरह से बेमानी है। वोट उसी पार्टी को देंगे, उसी प्रत्याशी को देंगे जिन्होंने उनका विश्वास जीता है, दिल जीता है। बहुमत किसे? कांग्रेस या भाजपा के पक्ष में? जल्द तय

मतदाता मौन लेकिन फैसले के लिए तैयार

मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह ने 8 नवंबर को खैरागढ़ विधानसभा क्षेत्र के विभिन्न गांवों में जनसभाओं में भाषण करते हुए स्वीकार किया कि कड़ी परीक्षा है लेकिन हम हैट्रिक लगाएंगे। अब तक के चुनाव प्रचार के दौरान यह पहली बार है जब सत्ता के शीर्ष पर बैठा हुआ व्यक्ति स्वीकार कर रहा है कि मुकाबला आसान नहीं है और पार्टी को कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिल रही है। इस कथन से यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि भाजपा किंचित घबराई हुई है और वह जीत के प्रति बेफिक्र नहीं है। उसे कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। 11 नवंबर को बस्तर संभाग एवं राजनांदगांव जिले की कुल 18 विधानसभा सीटों के लिए मत डाले जाएंगे। यही 18 सीटें कांग्रेस एवं भाजपा दोनों का भाग्य तय करेगी। इन 18 सीटों में से 13 सीटें आरक्षित हैं जबकि सामान्य सीटें सिर्फ 5 हैं। यानी 13 सीटों के भाग्यविधाता आदिवासी एवं अनुसूचित जाति के मतदाता हैं। इसमें बस्तर महत्वपूर्ण है जिसने पिछले चुनाव में 12 में से भाजपा के लिए 11 सीटें जीतकर सत्ता के द्वार खोले थे। लेकिन इस बार स्थितियां बदली हुई नजर आ रही हैं। मुकाबला एकतरफ नहीं है। बस्तर और राजनांदगांव म

लोकप्रियता की जंग

छत्तीसगढ़ राज्य विधानसभा के चुनाव में यद्यपि सीधा मुकाबला सत्तारूढ़ भाजपा एवं कांग्रेस के बीच है लेकिन यदि लोकप्रियता की जंग की बात करें तो निस्संदेह मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह एवं पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी आमने-सामने हैं। दोनों लोकप्रियता के शिखर पर हैं तथा दोनों के समक्ष अपनी अपनी पार्टी को जिताने की चुनौती है। चुनाव में भाजपा संगठन का नेतृत्व रमन सिंह कर रहे हैं और पार्टी को उन्हीं की साफ-सुथरी छवि पर सत्ता की हैट्रिक का भरोसा है। रमन के अलावा कोई दूसरा नाम नहीं है। यद्यपि विधानसभा क्षेत्रों के क्षत्रपों का अपना-अपना आभामंडल है लेकिन इस आभामंडल को ऊर्जा रमन सिंह की लोकप्रियता से मिल रही है। दूसरी ओर कांग्रेस के पास अजीत जोगी है। एक ऐसा नाम जो विवादित भी है लेकिन दबंग भी। छत्तीसगढ़ , मुख्यमंत्री के रूप में अजीत जोगी की प्रशासनिक क्षमता, सूझ-बूझ, दूरदृष्टि और राजनीतिक कौशल की झलक सन् 2000 से 2003 के बीच देख चुका है। राज्य की जनता उनकी विकासपरक सोच की कायल भी है। उनकी जिजीविषा भी बेमिसाल है। शारीरिक रूप से अस्वस्थ होने के बावजूद वे वर्षों से कुर्सी पर बैठे-बैठे अपने रा

किसकी शह, किसकी मात

पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी अपने पत्ते फेंटने में माहिर हैं। पिछले डेढ़-दो महीनों के घटनाक्रम को देखें तो उनकी कूटनीतिक विद्वता का अहसास हो जाता है। एक वह समय था, जब वे बगावत की मुद्रा में आ गए थे और अब वे पुन: प्रदेश कांग्रेस की राजनीति की धुरी बन गए हैं। संगठन में अपनी उपेक्षा से आहत अजीत जोगी ने अपने विरोधियों पर काबू पाने बहुत संयत चालें चलीं। प्रारंभ में संगठन खेमे ने कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह के मौन समर्थन से शह और मात का खेल शुरू किया। खेमे ने अजीत जोगी एवं उनके समर्थकों को अपनी कार्रवाइयों एवं बयानों के जरिए इतना उत्तेजित किया कि उनका गुट अलग-थलग पड़ गया और स्वयं को उपेक्षित महसूस करने लगा। लेकिन अजीत जोगी बौखलाए नहीं बल्कि सोची समझी रणनीति के तहत उन्होंने ईंट का जवाब पत्थर से देना शुरू किया। संगठन खेमा भी यही चाहता था कि जोगी गलतियां करें ताकि हाईकमान के सामने उनके अनुशासनहीन आचरण की दुहाई दी जा सके। संगठन खेमे ने ऐसा किया भी क्योंकि अजीत जोगी विभिन्न सार्वजनिक कार्यक्रमों में अपनी भड़ास निकाल रहे थे तथा संगठन खेमे के नेताओं पर अप्रत्यक्ष हमले कर रहे थे। घटन

चुनौतियों से निपटना आसान नहीं

पिछले कुछ दिनों से यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि इस बार राज्य विधानसभा के चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं होंगे। 2008 के चुनाव में बात कुछ और थी। तब मुख्यमंत्री के रूप में डॉ.रमन सिंह की लोकप्रियता चरम पर थी। विशेषकर दो रुपए किलो चावल ने छत्तीसगढ़ के गरीब आदिवासियों एवं हरिजनों के मन में उनके प्रति कृतज्ञता का भाव पैदा किया था जिसका प्रदर्शन उन्होंने भाजपा के पक्ष में वोट देकर किया। यही वजह थी कि भाजपा और कांग्रेस के बीच एक दर्जन सीटों का फासला रहा। भाजपा को 90 में से 50 सीटें मिलीं जबकि कांग्रेस को 38 सीटों से संतोष करना पड़ा। भाजपा के दुबारा सत्ता में लौटने का श्रेय बहुत कुछ चाऊंर वाले बाबा के रूप में विख्यात मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह की साफ-सुथरी छवि को था। अब यद्यपि रमन सिंह की छवि पूर्ववत ही है लेकिन उसकी चमक कुछ फीकी पड़ गई है। जिन मुद्दों ने रमन सिंह को जिताया था, वे मुद्दे भी आकर्षण खो चुके हैं। इनमें प्रमुख हैं, सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत बीपीएल परिवारों को बहुत सस्ते दर पर खाद्यान्न उपलब्ध कराना। यानी दो रुपए प्रति किलो की दर से 35 किलो चावल अब कोई सनसनी नह

फिर भटक गए पवन दीवान

संत कवि पवन दीवान राजनीति के ऐसे खिलाड़ी हैं जो अपने ही गोल पोस्ट में गोल करते हैं। अपने राजनीतिक जीवन में उन्होंने ऐसे कई गोल किए हैं, जिसका उन्हें तात्कालिक लाभ भले ही मिला हो पर दीर्घकालीन लाभ से वे वंचित रहे हैं। वे कांग्रेस और भाजपा के मैदान में खेलते रहे हैं। कभी कांग्रेस की ओर से तो कभी भाजपा की तरफ से। अब वे भाजपा टीम के खिलाड़ी बन गए हैं, इस उम्मीद के साथ कि उन्हें राजिम से विधानसभा की टिकिट मिल जाएगी। लेकिन क्या उन्हें टिकिट मिल पाएगी? यह पवन दीवान की राजनीतिक छटपटाहट ही है जो उन्हें कहीं टिकने नहीं देती। जब मन ऊबने लगता है तो वे पाला बदल लेते हैं। वे कांग्रेस में घुटन महसूस करने लगे थे, उपेक्षा के दंश से छटपटा रहे थे लिहाजा उन्होंने पार्टी से कूच करना बेहतर समझा। किंतु वे इतनी बार दलबदल कर चुके हैं कि उसकी अहमियत खत्म हो गई है। अब हालत यह है कि वे राजनीतिक नेताओं की उस जमात में शामिल हो गए हैं जिनकी गतिविधियों को कोई गंभीरता से नहीं लेता। इसलिए हाल ही में जब उन्होंने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने का ऐलान किया, तो वह चौंकानेवाली घटना नहीं बनी। कांग्रेस या

नुकसान में रहे बृजमोहन

Image
छत्तीसगढ़ सरकार में ऐसा नज़ारा कभी देखने में  नहीं आया जब मुख्य सचिव और मंत्रियों के बीच टकराव इस हद तक बढ़ जाए कि मुख्यमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़े। डॉ.रमन सिंह ने विवादित पक्षों के बीच मध्यस्थता करते हुए यह दावा किया है कि मामला सुलझ गया है लिहाजा न तो मुख्य सचिव हटाए जाएंगे और न ही कथित फर्नीचर घोटाले की जांच होगी। लेकिन मुख्यमंत्री के कहने मात्र से यह समझा जाए कि सब कुछ दुरुस्त हो गया है तथा उभय पक्षों के बीच अब कोई विवाद नहीं है? सही नहीं है। यकीनन इस दावे पर पूरी तरह एतबार नहीं किया जा सकता क्योंकि यह अंतत: अहम् के टकराव का मामला है। मुख्यमंत्री के समझाने-बुझाने से अंगारों पर भले ही राख पड़ गई हो किंतु भीतर ही भीतर शोले दहकते रहेंगे और इसकी तपिश प्रशासनिक गलियारों में महसूस की जाती रहेगी। निश्चय ही, मुख्य सचिव सुनील कुमार की ईमानदारी पर शक नहीं किया जा सकता। वे कर्तव्यनिष्ठ होने के साथ-साथ सख्त भी हैं और गलत बर्दाश्त नहीं कर सकते भले ही सामने कोई भी क्यों न हो। लेकिन व्यवस्था इतनी लचर हो चुकी है कि उनके जैसे अफसर के लिए घुटन महसूस करना स्वाभाविक है। मुख्य सचिव शायद ऐसा ह

अद्भुत है सचिन का संकल्प

Image
व्यक्ति अपने कर्मों के साथ-साथ विचारों से भी महान होता है। सचिन तेंदुलकर ऐसी ही शख्सियत हैं जिन्होंने मुंबई के वानखेडे स्टेडियम में क्रिकेट से अपनी विदाई के दौरान बहुत ही मार्मिक, दिल को छूने वाला लेकिन संयमित भाषण दिया। ऐसे क्षण बेहद भावुक होते हैं। उन पर काबू रखकर विचारों को व्यक्त करना हर किसी के बस में नहीं है। बिरले ही ऐसे होते हैं। सचिन ने रिटायरमेंट के बाद अपनी पहली पत्रकार वार्ता में यद्यपि अपनी भावी योजनाओं का खुलासा नहीं किया लेकिन संकेत दिए हैं वे क्या करना चाहते हैं। बीबीसी को दी गई भेंट में उन्होंने कहा कि वे गांवों में रोशनी फैलाना चाहते हैं। देश में कई ऐसे दूर-दराज के इलाके हैं जहां सूरज डूबने के बाद रोशनी का इंतजाम नहीं है। सचिन तेंदुलकर सौर ऊर्जा के जरिए ऐसे गांवों को रौशन करना चाहते हैं। वे वहां स्कूल भी बनाना चाहते हैं ताकि बच्चे पढ़ लिख सकें। सचिन ने कहा कि यह काम उनके दिल के बहुत करीब है। इन विचारों से सचिन ने भावी कार्यक्रमों की झलक तो मिलती ही है, साथ में इस बात का भी पता चलता है कि वे बेहद संवेदनशील हैं तथा सर्वहारा वर्ग के प्रति उनके मन में श्रद्घा एवं सम्