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पुण्यतिथि : रश्मि मुक्तिबोध चंदवासकर

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( 01 सितंबर 1979-22 अक्टूबर 2016 ) _______________________ बेटी रश्मि की , पंचांग के हिसाब से आज तीसरी पुण्यतिथि है। कोशिश की कुछ लिखूँ लेकिन भावनाओं के अतिरेक में शब्दों का साथ छूटता चला गया । नहीं लिख पाया। पर उसे याद करते हुए पिता की भी याद हो आई और उनकी यह कविता भी। वे बातें लौट न आयेंगी -------------------------- खगदल हैं ऐसे भी कि न जो आते हैं, लौट नहीं आते वह लिये ललाई नीलापन वह आसमान का पीलापन चुपचाप लीलता है जिनको वे गुंजन लौट नहीं आते वे बातें लौट नहीं आतीं बीते क्षण लौट नहीं आते बीती सुगंध की सौरभ भर पर, यादें लौट चली आतीं पीछे छूटे, दल से पिछड़े भटके-भरमे उड़ते खग-सी वह लहरी कोमल अक्षर थी अब पूरा छंद बन गयी है- ' तरू-छायाओं के घेरे में उदभ्रांत जुन्हाई के हिलते छोटे-छोटे मधु-बिंबों-सी वह याद तुम्हारी आयी है'-- पर बातें लौट न आयेंगी बीते पल लौट न आयेंगे। ( गजानन माधव मुक्तिबोध , रचनाकाल 1948, मुक्तिबोध रचनावली में संकलित)

सांस्कृतिक राजनीति का नया चेहरा

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- दिवाकर मुक्तिबोध महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर भाजपा को आइना दिखाने का काम यदि किसी ने किया है तो वे भूपेश बघेल हैं, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री। गांधी जी के नाम की माला जपकर राजनीतिक रोटी सेंकने की भाजपा की कोशिश को उस समय बडा धक्का लगा जब भूपेश बघेल ने भाजपा नेताओं को चुनौती दी कि यदि उन्हें गांधी से सच्चा प्रेम है तो गांधी के हत्यारे गोडसे को मुर्दाबाद कहना होगा। जाहिर है , भाजपाई गांधी ज़िंदाबाद के नारे तो लगा सकते हैं पर गोडसे मुर्दाबाद के नहीं क्योंकि पार्टी की राष्ट्रीय रीति-नीति गोडसे व सावरकर को देशभक्त के रूप में स्थापित करने की है। चूँकि भाजपा के पास भूपेश बघेल के इस हमले का कोई जवाब नहीं था लिहाजा उसने गोलमोल जवाब देकर कन्नी काट ली। दरअसल, महात्मा गांधी की जयंती के बहाने कांग्रेस को भाजपा को घेरने व उसके साम्प्रदायिक विचारों पर गांधीवाद की परत चढ़ाने की उसकी कोशिशों को उजागर करने का अच्छा अवसर हाथ लगा जिसका पूरा फ़ायदा छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने उठाया। उसकी यह एक राजनीतिक मुहिम थी लेकिन सच्चे अर्थों में उसने गांधी को याद किया और उनके विचारों को जन-ज