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किसानों से माफी क्यों माँगे

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-  दिवाकर मुक्तिबोध  छत्तीसगढ भाजपा क्या अपने सबसे बुरे दिनों की ओर बढ़ रही है? 11 दिसंबर को विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद सन्नाटे में डूबी पार्टी पराजय के शोक से उबरने के बजाए जिस तरह 'गृहयुद्ध' में उलझ गई और दिनों दिन उलझती ही जा रही है, उसे देखते हुए यहीं प्रतीत होता है कि प्रादेशिक इकाई अपने इतिहास के सबसे खराब दौर से गुजर रही है। अब तक जिलेवार हुई समीक्षा बैठकों में जिला, मंडल व ब्लॉक स्तरीय नेताओं व कार्यकर्ताओं ने अनुशासन के नाम पर चलने वाली तानाशाही के चिथड़े उड़ाने में कोई कसर नहीं छोडी हैं। उनके निशाने पर रमन सरकार के मंत्री, विधायक, प्रादेशिक नेतृत्व, संगठन के राष्ट्रीय पदाधिकारी जिनका राज्य की राजनीति में दखल हैं तथा चुनिंदा अफसरों का वह गिरोह है जिसने पार्टी के मुख्यमंत्री को 15 साल तक घेर रखा था। अफसरशाही व राजनीतिक गिरोहबंदी की वजह से सरकार जनता से दूर होती गई और अंतत: उसे विधानसभा चुनाव में इस तरह उखाड़ फेंका कि वह रसातल में पहुँच गई। अपने लगातार, तीन कार्यकाल में 48-49 विधायकों पर टिकी पार्टी सिमटकर 15 की हो गई है। सत्ता से बेदखली के दो माह पूरे हो ग