भाजपा का दाँव कितना सही?

- दिवाकर मुक्तिबोध छत्तीसगढ़ लोकसभा चुनाव भाजपा ने अप्रत्याशित रूप से चेहरे बदल दिए हैं। यह तो उम्मीद की जा रही थी कि 11 लोकसभा सीटों में से दस पर काबिज कुछ सांसदों की टिकिट कटेगी व नयों को मौका मिलेगा। रायपुर संसदीय सीट को सात बार जीतने वाले रमेश बैस या केन्द्रीय मंत्री व रायगढ के आदिवासी नेता विष्णुदेव साय अथवा कांकेर लोकसभा का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी सोच भी नहीं सकते थे कि उनकी टिकिट कटेगी लेकिन केन्द्रीय नेतृत्व ने बडा दाँव खेलते हुए सभी दस विजेताओं को संदेश दे दिया कि अब उनकी भूमिका बदली जा रही है तथा उन्हें नेता की हैसियत से अपने प्रभाव का इस्तेमाल अपेक्षाकृत नए उम्मीदवारों को जीताने में करना है। पार्टी का यह चौका देने वाला फैसला रहा और स्वाभाविक रूप से इसकी मौजूदा सांसदों व उनके समर्थकों के बीच तीव्र प्रतिक्रिया हुई। बंद कमरों में आक्रोश फूट पड़ा तथा नेतृत्व पर दबाव बनाकर फैसला बदलने की रणनीति पर विमर्श शुरू हो गया लेकिन जाहिर था समूची कवायद व्यर्थ थी। व्यर्थ रही। राज्य के करीब दो करोड मतदाताओं के सामने भाजपा के 11 नए लोकसभा प्रत्याशी मैदान में ...