बघेल सरकार की एक और परीक्षा

- दिवाकर मुक्तिबोध छ्त्तीसगढ़ में हाल ही मे सम्पन्न हुए नगर निकायों के चुनावों में कांग्रेस भले ही अपनी पीठ स्वयम् थपथपा लें लेकिन हक़ीक़त यह है कि उसने विधान सभा चुनाव जैसा कोई कमाल नहीं किया। बीते वर्ष इन्हीं दिनों , दिसंबर में भूपेश बघेल के नेतृत्व में पार्टी ने अभूतपूर्व सफलता अर्जित की थी। राज्य विधान सभा की कुल 90 में से 68 सीटें उसने जीती व बाद में दंतेवाड़ा उपचुनाव भी जीता। यानी 69 के प्रचंड बहुमत के साथ कांग्रेस सत्ता में है और उसके कुल पड़े 76 प्रतिशत वोटों में उसका हिस्सा 43 फ़ीसदी हैं। इस बडी छलाँग के बाद पांच माह के भीतर ही हुए लोकसभा चुनाव में एक तरह से कांग्रेस का सफ़ाया हो गया। राज्य के सारे मुद्दों को पीछे धकेलते हुए मतदाताओं ने मोदी लहर में बहना पसंद किया व 11 में से 9 सीटें भाजपा के हवाले कर दी। यह देश की बात थी लिहाजा छत्तीसगढ की हवा भी इससे अलग नहीं थी । सो , लोकसभा चुनाव के परिणाम मोदीमय ही आए पर अब नगरीय निकायों के चुनावों में मतदाताओं को यह तय करना था कि भूपेश बघेल सरकार ने अपने एक वर्ष के शासन में लोकहित में कितना काम किया और नगरीय प्रशासन ने...