झीरम: फिर वही कहानी
नक्सल मोर्चे पर और कितने दावे? और कितने संकल्प? और कितनी जानें? क्या खोखले दावों और संकल्पों का सिलसिला यूं ही चलता रहेगा और निरपराध मारे जाते रहेंगें? राज्य बनने के बाद, पिछले 13 वर्षों में जब- जब नक्सलियों ने बड़ी वारदातें की, सत्ताधीश नक्सलियों से सख्ती से निपटने के संकल्पों को दोहराते रहे. चाहे वह प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी हों या वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह जिनके हाथों में तीसरी बार सत्ता की कमान है. नक्सलियों से युद्ध स्तर पर निपटने की कथित सरकारी तैयारियों के बखान के बावजूद राज्य में न तो नक्सलियों का कहर कम हुआ, न ही घटनाओं में उल्लेखनीय कमी आई और न ही नक्सलियों के हौसले पस्त हुए. उनका सूचना तंत्र कितना जबरदस्त है उसकी मिसाल यद्यपि अनेक बार मिल चुकी है, लेकिन ताजा वाकया ऐसा है जो उनके रणनीतिक कौशल का इजहार करता है. राज्य के पुलिस तंत्र में बडे- बड़े ओहदों पर बैठे अफसरों ने शायद ही कभी सोचा हो कि जीरम घाटी में कभी दोबारा हमला हो सकता है. पिछले वर्ष 25 मई को इसी घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेसियों के काफिले पर हमला किया था जिसमे 31 लोग मार...