मोदी मंत्रिमंडल में छत्तीसगढ़ के प्रतिनिधित्व का सवाल.......
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दिवाकर मुक्तिबोध
मोदी मंत्रिमंडल में क्या छत्तीसगढ़ को प्रतिनिधित्व मिल पाएगा, इस सवाल को लेकर काफी चचाएं शुरू हो गई हैं। इन चर्चाओं में कहा जा रहा है कि भावी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस राज्य से कम से कम दो सांसदों को सरकार में शामिल करेंगें-रायपुर के सांसद रमेश बैस एवं रायगढ़ से निर्वाचित विष्णु देव साय जो प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी हैं। इन दोनों के पक्ष में यह तर्क दिया जा रहा है कि दोनों का राजनीतिक अनुभव काफी विशाल है। रमेश बैस रायपुर लोकसभा से सातवीं बार निर्वाचित हुए हैं और विष्णुदेव साय लगातार चौथी बार। रमेश बैस अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में राज्य मंत्री भी रह चुके हैं। अत: इस बार उनका दावा ज्यादा मजबूत है। विष्णुदेव साय को आदिवासी जमात से होने का लाभ मिल सकता है। चर्चा इन दोनों के ही इर्द-गिर्द है, कोई तीसरा नाम नहीं है। यह अलग बात है कि यदि सरोज पांडे दुर्ग से चुनाव जीत गई होती तो उनका मंत्रिमंडल में स्थान लगभग निश्चित रहता। एक तो वे भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा दिल्ली की राजनीति में भी उन्होंने अच्छी पकड़ बना रखी है। बहरहाल हार के साथ ही उनकी संभावना खत्म हो गई है।
नरेन्द्र मोदी की प्रकृति एवं उनकी कार्यशैली को जिसने भी नजदीक से देखा है वह यह मानता है कि वे काफी रफ-टफ तथा स्पष्टवादी हैं। चूंकि वे चौबिसों घंटें काम करते हैं अत: वे अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के रूप में भी ऐसे ही लोगों को चुनेंगें जो उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने का जज्बा रखते हों। वे ढीले-ढाले सांसदों को इस बिना पर नहीं चुनेंगें कि उनका संसदीय जीवन लम्बा चौड़ा है, दीर्घ राजनीतिक अनुभव है लेकिन सांसद के रूप में उनकी कोई छाप नहीं है। कई दफे लोकसभा के चुनाव जीतना अलग बात है तथा संसद में जनप्रतिनिधि के रूप में प्रभावी प्रदर्शन करना अलग बात। लिहाजा मंत्रिमंडल में ऐसे ही लोगों को शामिल किए जाने की संभावना है जो परर्फामर हो, जो संसद में जनता के मुद्दे लगातार उठाते रहे हों, जिन्होंने क्षेत्र के विकास के लिए बेहतर काम किया हो तथा उनकी अपने क्षेत्र में पहचान काम करने वाले संसद सदस्य की हो। मोदी मंत्रिमंडल में चयन के इसी मापदंड पर कठोरता से अमल की संभावना को देखते हुए यह मुश्किल ही प्रतीत होता है कि सात बार के सांसद रमेश बैस की लॉटरी खुले। स्वभाव से सहज-सरल बैस के साथ दिक्कत यह है कि वे अच्छे परफार्मर या प्रशासक नहीं है जबकि वे केन्द्र में मंत्री रह चुके हैं। पिछले तीस सालों से वे संसद में रायपुर और छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं पर इस दीर्घ अवधि के बावजूद उनके खाते में एक भी ऐसी उपलब्धि नहीं है जिसे जनता याद रखे। फिलहाल वे तेजी से अलोकप्रियता की ओर बढ़ रहे सांसद हैं हालांकि वे यह बात जुदा है कि वे हर बार चुनाव जीत जाते हैं। राजनीतिक हलको में और तो और संगठन के गलियारों में उनके लिए यही कहा जाता है कि वे भाग्य के प्रबल हैं और मजबूरी के सांसद हैं। प्राय: हर चुनाव में कुछ न कुछ ऐसा घट जाता है जो उनके पक्ष में जाता है और वे जीत जाते हैं। पिछले चुनावों के दौरान यह नारा बहुत चला था-अटल जरूरी है, बैस मजबूरी है। इस बार के चुनाव में अटल के स्थान पर मोदी आ गए। यानी ‘मोदी जरूरी है बैस मजबूरी’। यह मोदी लहर का ही कमाल था कि वे इस बार 1 लाख 76 हजार से अधिक वोटों से जीत गए। जब भाग्य प्रबल हो तो सारी चीजें बौनी हो जाती है। भले ही इसे मजबूरी का नाम क्यों न दें। बैस उसी स्थिति में मोदी केबिनेट में शामिल किए जा सकते हैं बशर्ते एक बार तकदीर पुन: उनका साथ दे तथा मोदी संघ के दबाव में उन्हें मंत्री बनाने मजबूर हो जाएं। यदि ऐसा हुआ तो फिर एक विशेषण उनसे चिपक जाएगा-मजबूरी के मंत्री।
बहरहाल बैस की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता। चूंकि वे प्रदेश के वरिष्ठतम सांसद हैं लिहाजा उनके चयन पर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह खुला विरोध नहीं कर पाएंगें। भाजपा में रमन सिंह और बैस के रिश्ते ऊपरी तौर पर भले ही सामान्य दिखाई देते हों लेकिन हकीकतन ऐसा नहीं है। बीते वर्षों में रमेश बैस कई बार राज्य के काम-काज की आलोचना करते रहे हैं। यह बात भी छिपी हुई नहीं है कि वे सरकार का नेतृत्व संभालने लालायित रहे हैं। और तो और उनकी महत्वाकांक्षा प्रदेशाध्यक्ष पद के इर्द-गिर्द भी मंडराती रही है। सन 2010-11 में प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में उन्होंने अपनी इच्छा को सार्वजनिक भी किया था। रमन सिंह उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को बखूबी समझते हैं। लिहाजा वे नहीं चाहेंगें कि बैस केन्द्र में मंत्री बने और उनकी राजनीतिक हैसियत में इजाफा हो क्योंकि मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने का अर्थ होगा प्रदेश की राजनीति में एक नए शक्ति केन्द्र का उदय। इस संभावना को खारिज करने के लिए उनके पास तुरुप के इक्के के रूप में विष्णु देव साय हैं जो आदिवासी समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा मुख्यमंत्री के नजदीकी भी हैं और जिनसे उन्हे कोई चुनौती नहीं है। इसलिए उनकी कोशिश होगी मोदी मंत्रिमंडल में राज्य का प्रतिनिधित्व कोई आदिवासी करे। विष्णुदेव साय या फिर चार बार के सांसद दिनेश कश्यप उनकी पसंद हो सकते हैं।
यह तो तय है प्रधानमंत्री के रूप में मोदी के शपथ-ग्रहण के साथ मंत्रिमंडलीय सहयोगी के रूप में जो बडेÞ नाम चल रहे हैं, उनमें रमेश बैस नहीं हो सकते। मंत्रिमंडल के विस्तार की दूसरी या तीसरी किस्त में छत्तीसगढ़ का नम्बर लग सकता है। बहरहाल तमाम किन्तु-परन्तु के बावजूद यदि रमेश बैस मंत्रिमंडल के लिए जाते हैं तो उन्हें अपनी कार्यशैली सुधारनी होगी। और विचार पूर्वक छत्तीसगढ़ की ऐसी समस्याओं जिससे आम आदमी जुड़ा हुआ है, को सुलझाना होगा। या कम से कम उस दिशा में सार्थक पहल करनी होगी। उन्हें तीस साल से ओढेÞ हुए उस लबादे को उतार फेंकना होगा जो उन्हें निष्क्रिय, नाकारा, असरहीन व परिवारवाद का पोषक बताता है। अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में वे सूचना प्रसारण, वन एवं पर्यावरण जैसे महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रह चुके हैं लिहाजा उम्मीद की जानी चाहिए यदि उन्हें पुन: अवसर मिलता है तो वे एक नए रमेश बैस नजर आएंगें।
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