अब न इस्तीफा होगा और न ही विभाग बदलेगा....

 दिवाकर मुक्तिबोध
छत्तीसगढ़ निकाय चुनावों में कांग्रेस को यकीनन अप्रत्याशित सफलता मिली लेकिन यदि किसी बड़े उलटफेर की बात की जाए तो वह बिलासपुर को लेकर है। बिलासपुर नसबंदी कांड एवं स्वास्थ्य विभाग से संबंधित अन्य बहुचर्चित प्रकरणों के कारण पूरे प्रदेश की आंखों की किरकिरी बने स्वास्थ्य मंत्री अग्रवाल ने चुनाव में करिश्मा कर दिखाया। वे बिलासपुर नगर निगम चुनाव के संचालक थे। यह आशंका थी कि नसबंदी प्रकरण की वजह से पार्टी कम से कम संस्कारधानी में जबर्दस्त घाटे में रहेगी किन्तु ठीक उलट हुआ। भाजपा ने न केवल महापौर का चुनाव जीता वरन निगम में भी बहुत स्थापित किया। इस एक वजह से अमर अग्रवाल को नई संजीवनी मिल गई। अब नसबंदी सहित तमाम प्रकरणों का चाहे जो हश्र हो, उनसे न तो इस्तीफा मांगा जाएगा और न ही विभाग बदलेगा।

रायपुर। छत्तीसगढ़ में नगर निकाय चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले रहे। अंतरकलह और गुटीय राजनीति में बुरी तरह उलझी कांग्रेस सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी का जोरदार मुकाबला करेगी तथा नगर पंचायतों में अपना परचम लहराएगी, ऐसी उम्मीद राजनीतिक विश्लेषकों को भी नहीं थी लेकिन इन चुनावों में कांग्रेस ने वह कर दिखाया जो किसी जमाने में, कम से कम एकीकृत मध्यप्रदेश के छत्तीसगढ़ इलाके में उसके लिए सामान्य सी बात थी। छत्तीसगढ़ कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था। यद्यपि उस गढ़ में पिछले दस वर्षों में भारी टूट-फूट जरुर हुई है पर वह गढ़ पूर्णत: ध्वस्त नहीं हुआ है, यह नगर निगम, नगर पालिका एवं नगर पंचायतों के चुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया है। राज्य की कुल 12 नगर निगमों में से 10 के चुनाव हुए जिनमें कांग्रेस व भाजपा को 4-4 में विजय मिली, पालिकाओं में भी दोनों ने 16-16 की बराबरी की हिस्सेदारी की तथा नगर पंचायतों में कांग्रेस ने भाजपा को पीछे छोड़ते हुए 50 पर कब्जा किया और बढ़त हासिल की। आगामी त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव, जिसकी प्रक्रिया शुरु हो चुकी है, पर फिलहाल उन पर कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती लेकिन स्थानीय स्तर पर कांग्रेस ने जो मुद्दे उठाए हैं, बहुत संभव है वे वहां भी काम कर जाए। यदि ऐसा हुआ तो फिर न तो नतीजे अप्रत्याशित रहेंगे और न ही चौंकाने वाले।
       इन चुनावों में भाजपा के लिए थोड़े संतोष की बात वार्डों में चुनकर आए पार्षदों की संख्या से हैं जिसके बल पर 10 में से 8 नगर निगमों के सभापति पार्टी के विजयी प्रत्याशी होंगे यानी निगम प्रशासन पर उनका लगभग बराबरी का कब्जा होगा। जाहिर है ऐसी स्थिति में कांग्रेस के महापौर के साथ राजनीतिक टकराव स्वाभाविक है जिसका परिणाम पहले भी नगर विकास कार्यों में देखने में आता रहा है लेकिन भाजपा के लिए कुल मिलाकर ये चुनाव भविष्य के लिए खतरे की घंटी है। यह उसके लिए चिंता का सबब है कि आखिरकार इतने जल्दी मतदाताओं का रुख कैसे बदल गया। दिसंबर 13 में हुए विधानसभा चुनाव और उसके बाद लोकसभा चुनावों में उसने अपना वर्चस्व बनाएं रखा था। पिछले दस वर्षों के तमाम चुनाव परिणामों को देंखे तो प्राय: प्रत्येक चुनावों में भाजपा को कांग्रेस के मुकाबले वोटों के प्रतिशत में बढ़त मिली किन्तु इस बार नगर संस्थाओं के चुनाव के नतीजे उसकी उम्मीदों के अनुकूल नहीं रहे। चूक कहां हुई, कैसी हुई और क्यों हुई इस पर पार्टी को विचार करना है। परिणामों से निराश मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने समीक्षा की बात कही है। उन्हें इस बात से ज्यादा धक्का लगा होगा कि पड़ोसी राज्य म.प्र. नगर निकाय चुनावों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का जादू चला तथा कुल 14 में से 10 निगमों में पार्टी के महापौर बैठ गए। राज्य में शेष 4 नगर निगमों का चुनाव अभी होना है यदि ये चुनाव भी पार्टी जीत लेती है तो यह व्यक्तिगत तौर पर शिवराज सिंह की राजनीतिक जीत होगी। यानी केन्द्रीय नेतृत्व की नजर में शिवराज सिंह का ग्राफ और भी बढ़ेगा हालांकि केन्द्र डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व का भी कायल रहा है। लेकिन इन चुनावों में किरकिरी हो गई। जिस मोदी लहर पर सवार होकर प्रदेश नेतृत्व ने विधानसभा और लोकसभा चुनाव जीता था और उसी लहर के सहारे रमन सिंह ने निकाय चुनावों में रैलियां की थी, पसीना बहाया था, लेकिन वह अपेक्षा के अनुरूप परिणाम नहीं दे पाया।
बहरहाल इन चुनावों से भाजपा को सबक मिला है तो कांग्रेस को नई संजीवनी मिल गई है। चुनाव के पूर्व कांग्रेस में उम्मीदवारों के चयन पर जो घमासान मचा था, जिस तरह ऐन वक्त पर अजीत जोगी ने चुनावों से कन्नी काट ली थी तथा प्रचार से इंकार कर दिया था, वह पार्टी कार्यकर्ताओं एवं संगठन के लिए किसी झटके से कम नहीं था। गुटीय राजनीति के घात-प्रतिघात के नजÞारों से ऐसा लगने लगा था कि इसकी कीमत पार्टी को चुनाव में चुकानी पड़ेगी किन्तु अप्रत्याशित परिणामों ने इन आशंकाओं को निर्मूल साबित कर दिया। इस सफलता के पीछे एक बड़ा कारण संगठन द्वारा जोर-शोर से जनता के मुद्दे उठाने का रहा है। राशन कार्ड, धान का समर्थन मूल्य, धान खरीदी, नसबंदी कांड, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर पार्टी ने सरकार को कटघरे में खड़े किया। जनता ने इसे देखा, महसूस किया और इन्ही सवालों पर सरकार एवं प्रदेश भाजपा को नए सिरे से विचार करने का आदेश सुना दिया।
      भाजपा के सामने अब बड़ी चुनौती त्रिस्तरीय पंचायतों के चुनावों में अपना वर्चस्व बनाए रखने की है। यद्यपि पंचायत चुनाव दलीय आधार पर नहीं लड़े जाएंगे। फिर भी ये चुनाव जीतना उसके लिए महत्वपूर्ण है। विशेषकर कांग्रेस के पुन: उद्भव को रोकना जरुरी है। इसके लिए जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं में व्याप्त असंतोष को दूर करने के साथ-साथ उन्हें पर्याप्त महत्व देना होगा। दरअसल पंचायत के चुनाव अग्नि परीक्षा की तरह होते है जो यह बताते है कि आपकी जड़ें कितनी गहरी हैं।
         नगर निकाय चुनावों के परिणामों ने यदि कही विस्मित किया है तो वह है रायगढ़ एवं बिलासपुर। रायगढ़ के महापौर चुनाव में मधु किन्नर का जीतना भाजपा एवं कांग्रेस दोनों के प्रति जनता के विश्वास को खारिज करता है। इसी तरह भाजपा का बिलासपुर नगर निगम में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आना स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल की व्यक्तिगत सफलता है। विशेषकर ऐसी परिस्थतियों में जब बहुचर्चित नसबंदी कांड की वजह से उनकी साख बेहद गिरी हुई थी। कांग्रेस ने उनके इस्तीफे की मांग को लेकर प्रदेश में बड़ा आंदोलन खड़ा किया था। भाजपा संगठन में भी उनसे स्वास्थ्य मंत्रालय छीनने अथवा इस्तीफे लेने के सवाल पर विचार-मंथन शुरु हुआ था लेकिन अंतत: उन्हें बख्श दिया गया। राजनीतिक भंवर से किसी तरह उबरने के बाद अमर अग्र्रवाल के लिए बिलासपुर नगर निगम का चुनाव बेहद महत्वपूर्ण था। विशेषकर मेयर का चुनाव और वार्डों में बहुमत की स्थापना जरुरी थी। जाहिर है कि स्वास्थ्य मंत्री ने पूरी ताकत झोंक दी। कहा जाता है कि पैसा पानी की तरह बहाया। भाजपा के किशोर राय मेयर का चुनाव भारी भरकम वोटों से जीत गए तथा पार्टी को वार्डों में भी बहुमत मिल गया। यह आश्चर्यजनक है कि समूचे प्रदेश में नसबंदी प्रकरण के कारण हुई किरकरी के बावजूद बिलासपुर के मतदाताओं ने चुनाव संचालक अमर अग्रवाल पर विश्वास व्यक्त किया जबकि शेष स्थानों में विशेषकर रायपुर में नेत्र कांड, नसबंदी प्रकरण, गर्भाशय प्रकरण, स्वास्थ्य उपकरणों, मशीनों की खरीदी में करोड़ों का गोलमाल आदि मामलों ने स्वास्थ्य मंत्री की छवि धूमिल की और किसी न किसी रुप में भाजपा के खिलाफ वातावरण बनाया। इसका प्रकटीकरण निकाय चुनावों में हुआ।
       बिलासपुर में जीत के साथ ही यह तय माना चाहिए कि अब अमर अग्रवाल पर संकट के बादल छंट गए हैं। वैसे भी कांग्रेस का आंदोलन व इस्तीफे की मांग कमजोर पड़ चुकी है लिहाजा अब नसबंदी प्रकरण के संदर्भ में अमर अग्रवाल किसी राजनीतिक नुकसान में नहीं रहेंगे। मंत्रिमंडल के अगले फेरबदल में संभव है उनका विभाग भी न बदला जाए। यानी ये चुनाव भाजपा के लिए भले ही नुकसानदेह साबित हुए हो पर अमर अग्रवाल के लिए फायदेमंद रहे। निकाय चुनावों में इसे ही सबसे बड़ा उलटफेर माना जाना चाहिए।



Comments

Popular posts from this blog

मुक्तिबोध:प्रतिदिन (भाग-14)

मुक्तिबोध:प्रतिदिन (भाग-7)

मुक्तिबोध:प्रतिदिन (भाग-1)