भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को मंत्री पलीता, नौकरशाही में घमासान


मेरे अफसर पाक-साफ - गागड़ा

-दिवाकर मुक्तिबोध
 
      ऐसा शायद छत्तीसगढ़ में ही होता है जब एक मंत्री अपने विभाग के आईएफएस अफसरों एवं अन्य अधिकारियों के खिलाफ राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ई.ओ.डब्ल्यू) एवं एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) के छापे का विरोध करता हो तथा उसे विद्वेषपूर्ण कार्रवाई बताता हो। वनमंत्री महेश गागड़ा ने अपने तीन आईएफएस अफसरों एसएसडी बडगैया, एएच कपासी, केके बिसने व टीआर वर्मा के यहां मारे गए छापे का पुरजोर विरोध किया और आईएफएस एसोसिएशन के पदाधिकारियों के साथ हाल ही में मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह से मुलाकात की। वन मंत्री ने कहा कि एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) को क्या केवल वन विभाग में ही भ्रष्टाचार दिख रहा है? छापे के बाद बरामदगी को लेकर जितना प्रचार किया गया है, उतना कुछ नहीं मिला। छापे पूर्वाग्रह से ग्रसित थे और इस तरह के छापों से विभाग के अफसरों का मनोबल गिर रहा है। वन मंत्री ने अपनी ओर से अफसरों को क्लीन चिट दी। उनका मानना हंै कि उनके अफसर बेहतर काम कर रहे हैं। महेश गागड़ा रमन मंत्रिमंडल के पहले ऐसे मंत्री है जिन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ एसीबी की कार्रवाई नागवार गुजरी है। एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) एवं राज्य आर्थिक अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) की संयुक्त टीमों ने 17 जनवरी 2016 को रायपुर, बिलासपुर, धमतरी एवं मुंगेली में तीन आईएफएस सहित 9 अधिकारियों के छापे मारे तथा करोड़ों की अनुपातहीन संपत्ति बरामद की। इनमें डीएफओ बलौदाबाजार एसएसडी बडग़ैया, डीएफओ रायपुर ए.एच. कपासी तथा केके. बिसेन आईएफएस है जिनके यहां छापे पड़े तथा भारी-भरकम अनुपातहीन संपत्ति के कागजात बरामद हुए।
       डेढ़ वर्ष पूर्व केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार के बनने के बाद भ्रष्टाचार के खिलाफ किए गए शंखनाद ने भाजपा शासित छत्तीसगढ़ को ही शायद सबसे ज्यादा आंदोलित किया है। दरअसल यह अच्छी बात है और राजनीतिक चतुराई भी कि प्रधानमंत्री जैसे ही कोई विचार हवा में उछालते हैं, रमन सिंह उसे तुरंत लपक लेते हैं। मसलन नरेंद्र मोदी ने देश की जनता से सीधे संवाद के लिए 'मन की बात' कार्यक्रम की शुरुआत की। उसी तर्ज पर रमन सिंह ने भी महीनें में एक बार 'रमन के गोठ' का प्रसारण आकाशवाणी एवं न्यूज चैनलों से शुरु किया। बहरहाल मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाने में तनिक भी देर नहीं की। सरकार दफ्तरों में व्याप्त संगठित एवं वैयक्तिक भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस के ऐलान के साथ ही एंटी करप्शन ब्यूरो की कमान एक ऐसे अफसर को सौंपी गई जो अपनी कठोरता, जिद व किसी को भी न बख्शने के लिए मशहूर है। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजेपी) मुकेश गुप्ता के नेतृत्व में पिछले एक-डेढ़ वर्ष में मारे गए दर्जनों छापों से समूची नौकरशाही में हाहाकार मच गया। चूंकि ये छापे आईएएस एवं आईएफएस अफसरों के घरों एवं दफ्तरों पर पड़े इसलिए इन दोनों संवर्गों में धीरे-धीरे यह धारणा घर कर गई कि छापे वर्ग विशेष को ध्यान में रखकर मारे जा रहे है और अपने वर्ग यानी आईपीएस तथा पुलिस महकमे को बख्श दिया जा रहा है। इसे पक्षपात मानते हुए विरोध शुरु हो गया। आधिकारिक विरोध तब दर्ज हुआ जब एसीबी ने वर्ष 2012 बैच के आई.ए.एस. रणवीर शर्मा को 5 अगस्त 2015 को पटवारी सुधीर लकरा से स्थानांतरण एवं बर्खास्तगी रुकवाने के एवज में दस हजार रुपयों की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा। आई.ए.एस. लॉबी में इस घटना की तीव्र प्रतिक्रिया हुई तथा आई.ए.एस. ऑफिसर्स एसोसिएशन ने इसे शरारतपूर्ण कार्रवाई बताते हुए मुख्यमंत्री के सामने विरोध दर्ज किया।
       दरअसल छत्तीसगढ़ के नौकरशाहों का अपना अलग-अलग राग है। भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान के तीव्र होने के बाद राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो एवं एंटी करप्शन ब्यूरो को संचालित करने वाला पुलिस महकमा अपनी ही नौकरशाही के व्यक्त-अव्यक्त असंतोष एवं विरोध का सामना कर रहा है। राज्य की नौकरशाही में आंतरिक राजनीति एवं गुटबाजी की तीव्रतम घुसपैठ है तथा इसका प्रदर्शन अलग-अलग घटनाओं के जरिए  होता रहा है। मिसाल के तौर पर आई.एस.एस. ऑफिसर्स एसोसिएशन को इस बात पर आपत्ति थी कि आई.एफ.एस. अफसरों को जंगल विभाग से निकालकर प्रतिनियुक्ति पर क्यों रखा जाता है और क्यों उन्हें मलाईदार पद सौंपे जाते हैं। इस विरोध के फलस्वरुप स्वाभाविक रुप से नौकरशाही में खेमेबाजी शुरु हो गई और आईएएस व आईएफएस आमने-सामने आ गए और अब अफसरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार को बेनकाब करने की घटनाओं के बाद नया संघर्ष शुरु हो गया है। इस संघर्ष का एक त्रिकोण सा बन गया हंै। राज्य का पुलिस प्रशासन नौकरशाही का तीसरा कोण है जिस पर दोनों कोण हमला कर रहे हैं। विभागीय मंत्री के साथ आईएफएस एसोसिएशन के पदाधिकारियों का मुख्यमंत्री से मिलना एवं एसीबी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराना इसका प्रमाण है। इस हमले के जवाब में एसीबी ने भी कमर कस ली है। ब्यूरो के एडीजी मुकेश गुप्ता ने मीडिया से दो टूक कहा - 'भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई जारी रहेगी। किसी के विरोध से क्या होता है। हम विभाग की तरफ से कार्रवाई कर रहे है। शिकायतें आएंगी तो छानबीन करेंगे और सही पाए जाने पर कार्रवाई भी करेंगे।' एंटी करप्शन ब्यूरो इस एक जवाबी हमले से चुप नहीं बैठा है। उसने अनाधिकारिक रुप से आईएफएस अफसरों के यहां से बरामद दस्तावेजों के आधार पर आंकी गई अनुपातहीन संपत्ति का ब्यौरा मीडिया को जारी कर दिया। इसके अनुसार आईएफएस एसएस बडग़ैया 4 करोड़ 88 लाख, एएच कपासी 4 करोड़ 15 लाख, केके बिसने 1 करोड़ 58 लाख, सीएमओ एसके बघेल 3 करोड 14 लाख, रेंजर टेकराम वर्मा 2 करोड़ 80 लाख, कृषि विवि अधीक्षक जी.एस. ठाकुर 2 करोड़ 54 लाख तथा कार्यपालन अभियंता टीआर कुंजाम के यहां से 1 करोड़ 30 लाख रुपये की अनुपातहीन संपत्ति मिली।
      राज्य की नौकरशाही में चल रहे शीतयुद्ध का परिणाम क्या निकलेगा - कहना मुश्किल है। लेकिन यह आश्चर्य की बात है कि वन विभाग के मंत्री महेश गागड़ा किस आधार पर कह रहे हंै कि एसीबी की कार्रवाई विद्वेषपूर्ण है और उनके अफसर पाक-साफ? अफसरों के यहां से बरामद की गई करोड़ों की अनुपातहीन संपत्ति के बारे में उनका क्या ख्याल है? क्या एसीबी ने हवा में कार्रवाई की? या क्या वे अपने अफसरों के दबाव में है? दबाव है तो किस वजह से? मुख्यमंत्री से मिलकर, उनके सामने अपनी ही सरकार की कार्रवाई का विरोध करना क्या इतना सहज और नैतिक है? क्या वे कुछ और इंतजार नहीं कर सकते थे? क्या वे अपने अधिकारियों से नहीं कह सकते थे कि संगीन मामला है और अदालत ही फैसला करेगी? जाहिर है वन मंत्री बिना आगे-पीछे सोचे नौकरशाहों के बचाव में लग गए है। इस घटना से मुख्यमंत्री को जरुर इस बात का मलाल होना चाहिए कि उनके एक मंत्री ने उनसे अकेले में मुलाकात करके अपनी बात रखने के बजाए वे अपने अधिकारियों के साथ ले आए और अतार्किक बातें की। सवाल है रमन सिंह इतना सब कुछ कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं? मंत्री और अधिकारियों का ऐसा कैसा साहस कि भ्रष्टाचार पर सरकार की नीति को पलीता लगाए? क्या प्रशासनिक अधिकारी यह मानते है कि वे ईमानदार हंै और भ्रष्टाचार केवल निचले स्तर पर व्याप्त है? यह भी कैसे संभव है कि काफी समय से बेलगाम नौकरशाही में घमासान मचा हुआ हो और मुख्यमंत्री खामोशी से सब देखते रहे? क्या यह कूटनीति का हिस्सा है? क्या व्यक्तित्व की इतनी सहजता और सरलता की नौकरशाही निर्भय हो जाए और मनमानी पर उतर आए? निश्चिय ही मुख्यमंत्री की छवि साफ-सुथरी और बेदाग है पर यह नहीं भूलना चाहिए सरपट भागते घोड़े की लगाम नहीं कसेंगे तो सवार के गिरने की आशंका बनी रहेगी। इसीलिए सहज-सरल होने के बावजूद उनके बारे में एक विपरीत धारणा बन गई है कि उनका नौकरशाही पर नियंत्रण नहीं है और सरकार वे नहीं, चंद नौकरशाह चला रहे हैं जिनका एक कॉकस बन गया है। और तो और इस संदर्भ में केबिनेट की मीटिंग में कद्दावर कहे जाने वाले मंत्री भी अपनी भड़ास निकाल चुके हैं कि प्रशासनिक अधिकारी उनकी नहीं सुनते, आदेशों का पालन नहीं करते। आईएएस और आईएफएस अफसरों द्वारा मुख्यमंत्री के सामने एंटी करप्शन ब्यूरो की कार्रवाई पर टीका-टिप्पणी करना एवं उसे सुनियोजित साजिश करार देना एक तरह से नौकरशाही का दुस्साहस ही है।
       
       बहरहाल इसमें क्या शक कि एसीबी को भ्रष्ट अफसरों की धरपकड़ एवं उनके खिलाफ कार्रवाई की छूट मिली हुई है जो राज्य सरकार की नीति एवं घोषणा के अनुकूल है। यह इस बात से भी सिद्ध है कि राजकीय कार्य से दिल्ली से 10 फरवरी को राजधानी लौटने के बाद मुख्यमंत्री ने मीडिया से स्पष्ट कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस की नीति जारी रहेगी तथा शिकायतों पर कार्रवाई होगी। विधानसभा में सरकार की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार भारतीय प्रशासनिक सेवा के 45 अधिकारियों के खिलाफ शिकायतें हंै और फिलहाल दस आईएएस, तीन आईपीएस और डेढ़ दर्जन आइएफएस के विरुद्ध जांच चल रही है। इस बीच एक अच्छी खबर आई कि छत्तीसगढ़ विशेष न्यायालय अधिनियम 2015 को राज्यपाल के बाद राष्ट्रपति की भी मंजूरी मिल गई है। राजपत्र में इसे प्रकाशन के लिए भेज दिया गया है। राजपत्र में प्रकाशित होने के साथ ही नया कानून लागू हो जाएगा। इस अधिनियम में लोकसेवकों द्वारा भ्रष्ट तरीके से अर्जित चल-अचल अनुपातहीन संपत्ति को जप्त या राजसात करने का प्रावधान है। प्रावधान के तहत ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालय गठित किए जाएंगे जो एक साल के भीतर इनका निपटारा कर देंगे। सरकार के लिए यह राहत भरा कदम है। लेकिन अब यह देखने की बात है कि निकट भविष्य में कितने भ्रष्ट लोकसेवकों की संपत्ति जप्त होगी और कितने जेल की हवा खाएंगे और क्या भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस वाकई जीरो रहेगा।
दरअसल राज्य के गृह विभाग के मातहत काम करने वालों एसीबी काफी समय से आईएसएस और आईएफएस संवर्ग के अधिकारियों के निशाने पर है। भ्रष्टाचार के खिलाफ 'जीरो टालरेंस' की राज्य सरकार की नीति के जोर पकड़ने के बाद एसीबी ने पिछले एक साल में धड़ाधड़ छापे मारे एवं करोड़ों रुपये की अनुपातहीन संपत्ति के खुलासे के साथ ही भारी भरकम नगद राशि भी बरामद की। इनमें सबसे चर्चित मार्च 2015 का नान (नागरिक आपूर्ति निगम) घोटाला है जिसमें नान के दफ्तर तथा अधिकारियों के यहां छापे में साढ़े तीन करोड़ रुपये की नगद राशि एवं चावल की आपूर्ति में करोड़ों रुपये की हेराफेरी का मामला पकड़ में आया था। इस मामले में विभाग के दो आईएएस अफसरों, तत्कालीन खाद्य सचिव आलोक शुक्ला एवंं संयुक्त सचिव तथा नागरिक आपूर्ति निगम के प्रबंध संचालक अनिल टूटेजा को कटघरे में खड़ा किया गया है। राज्य सरकार ने इन दोनों प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ अदालत में मुकदमा चलाने के लिए भारत सरकार से अनुमति मांगी है जो करीब 7-8 महीने बीत जाने के बावजूद अभी तक नहीं मिल पाई है। आई.एफ.एस. अफसरों की तरह अनिल टूटेजा ने भी एसीबी पर आरोपों की बौछार की तथा स्वयं को निर्दोष बताते हुए मुख्यमंत्री रमन सिंह को चिट्ठी लिखी जिसकी प्रतियां तमाम आईएएस अफसरों एवं मंत्रियों को भी उपलब्ध कराई गई। यह खुला पत्र प्राय: सभी अखबारों के 7-8 फरवरी 2016 के अंक में विस्तार के साथ छपा। इस पत्र में अनिल टूटेजा मुख्यमंत्री से अनुरोध किया है कि 18 जुलाई 2015 को राज्य सरकार द्वारा स्वीकृति के लिए केंद्र को भेजे गए अभियोजन प्रस्ताव पर फिर से विचार करें। पत्र में उन्होंने दावा किया है कि एसीबी ने मीडिया के सामने वाहवाही लूटने के लिए साढ़े तीन करोड़ के मामले को हजारों करोड़ के चावल घोटाले के रुप में प्रचारित किया जिसमें उन्हें साजिश पूर्ण तरीके से लपेटा गया है। बकौल अनिल टूटेजा बदले की ऐसी कार्रवाई से राज्य सरकार की उस पीडीएस स्कीम पर बदनामी के छीटे पड़े हंैं जो देश में सबसे अच्छी मानी जाती है।

Comments

  1. ऐसा छत्तीसगढ़ में ही हो रहा है, शायद उनका भी हिस्सा रहा हो।
    रंगे हाथ पकड़े जाते है तब भी पाक साफ वाह वाह ...

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