बस कुछ माह और

दिवाकर मुक्तिबोध 
तो यह तय है कि एमएस धोनी फिलहाल संन्यास नहीं लेंगे और कुछ समय के लिए एक नई भूमिका में नज़र आएँगे। उन्होंने वेस्टइंडीज़ दौरे के लिएअपनी अनउपलब्धता जाहिर कर दी है।बीसीसीआई ने इस पर विचार करते हुए उन्हें टीम के नए युवा विकेट कीपर ऋषभ पंत को ट्रेंड करने की ज़िम्मेदारी सौंपी है।
यानी धोनी माक़ूल वक़्त का इंतज़ार कर रहे हैं। बहुत संभव है यह दो-तीन महीनों की बात हो। दरअसल आगामी सितंबर -अक्टूबर में दक्षिण अफ़्रीका कीटीम भारत आने वाली है। हो सकता है धोनी टीम इलेवन में चुने जाएं ताकि वे इस नायाब मौक़े पर अपने रिटायरमेंट की घोषणा कर सके।
बहरहाल विराट कोहली को इस बात का शायद ताउम्र अफ़सोस कहेगा कि वे अपने 'कप्तान' को तोहफ़े के रूप में वर्ल्ड कप जीत कर नहीं दे सके। महेन्द्रसिंह धोनी को वे अपना कप्तान मानते हैं और वे यह कई बार कह चुके हैं कि धोनी उनके कप्तान हैं और हमेशा रहेंगे।इंग्लैंड में कोहली के नेतृत्व में यदिभारत ने वर्ल्ड कप जीत लिया होता तो संभवत: धोनी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से विदाई ले चुके होते और देश-विदेश के तमाम अखबार, इलेक्ट्रानिक व सोशलमीडिया उनके शानदार क्रिकेट करियर का बखान कर रहे होते।
पर ऐसा नहीं हुआ। सेमीफ़ाइनल में न्यूज़ीलैंड के हाथों हुई हार ने भारत के मंसूबों पर पानी फेरा ही , धोनी को खलनायक बना दिया। वैसे भी वे काफीसमय से अपनी धीमी पारियों के कारण चौतरफ़ा आलोचना के शिकार रहे हैं लेकिन समय -समय पर अपने बल्ले से इसका जवाब भी देते रहे हैं। वन डे वटी20 मैचों में परिस्थितियों के अनुसार बल्लेबाज़ी करने और जीत की संभावना को बरक़रार रखने की उनकी कोशिशों की सराहना करने की बजाए उनकीधीमी पारी आलोचकों के निशाने पर रही और बार -बार संन्यास की बातें उछाली गई। वर्ल्ड कप ख़त्म हो गया और अब भारत की हार की चर्चा कम धोनी केसंन्यास की ज़्यादा है। प्रतीक्षा हो रही है कि वे कब ग्लोब्स को खूँटी पर टाँगते हैं और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से किनारा करते हैं। देश -दुनिया का क्रिकेट जगतइसके लिए बेताब है। अनेक दिग्गज जिसमें सचिन तेंदुलकर , सौरव गांगुली , वीवीएस लक्ष्मण , स्टीव वाँ , ड्रेन ब्रावो , वाटमोर आदि शामिल है, कह चुकेहैं कि धोनी खुद तय करें कि कब उन्हें संन्यास लेना है। और उन्हें इसकी स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। इसके लिए वे चाहे जितना वक़्त लें। आम तौर परआलोचक व प्रशंसक भी चाहते हैं कि धोनी सम्मानपूर्वक विदाई लें। वे अब 38 के पड़ाव पर हैं व वाकई बहुत धीमे हो चुके हैं। पर कुछ नामचीन ऐसे भी हैंजो अभी भी धोनी को विकेट के पीछे गेंद को तेजी से लपकते हुए व पिच पर बल्ले से हेलीकाप्टर शाट उड़ाते देखना चाहते हैं। उनका ख़याल है कि धोनी मेंअभी भी बहुत क्रिकेट बाक़ी है और देश को उनकी ज़रूरत है। ऐसे लोगों मे सुर-सम्राज्ञी लता मंगेशकर भी हैं जिनका क्रिकेट प्रेम किसी से छिपा नहीं है।उनका कहना है कि धोनी को रिटायरमेंट के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए।
लेकिन वर्ल्ड - क्रिकेट का यह बेस्ट फिनिशर ख़ामोश हैं। उनके क्रिकेट- जीवन का सर्वाधिक पीड़ादायक क्षण न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ वर्ल्ड कप केसेमीफ़ाइनल में उस समय रन आउट होना है जब अंतिम दस गेंदों में जीत के लिए महज़ 25 रन बनाने थे। धोनी विकेट के बीच अपनी तेज़ दौड़ के लिएमशहूर हैं लिहाजा कुछ इंच से चूक जाना उनके लिए किसी सदमे से कम नहीं है और वह भी तब जब हर दिल में यह आवाज़ गूँज रही थी कि धोनी है तोउम्मीद है। जब अपेक्षाओं का ऐसा पहाड़ हो और वर्ल्ड कप जीतने की पूरी संभावना हो तो रन आउट होकर विकेट खोना धोनी , पूरी टीम व उनके दीवानों केलिए भयानक दु:स्वप्न ही है। धोनी को इससे उबरने में वक़्त लगेगा। उनकी प्रकृति में सबसे अचछी बात यह कि उनमे ग़ज़ब का संयम है , आत्मविश्वासहै तथा वे आलोचना व निंदा का जवाब देना जरूरी नहीं समझते। जिन दिनों वे कप्तान थे , युवराज सिंह के पिता पूर्व क्रिकेटर योगीराज सिंह से लेकरबिशन सिंह बेदी , मोहिन्दर अमरनाथ , वीरेन्द्र सहवाग , सचिन तेंदुलकर , अजीत आगरकर जैसे क्रिकेटर उनकी हर धीमी रन गति पर आग उगलते थे।योगीराज ने तो हाल ही में एनडीटीवी न्यूज़ में धोनी पर अपमानजनक टिप्पणी करते हुए कहा कि "धोनी जैसे लोग हमेशा नहीं रहेंगे , गंदगी हमेशा नहींरहती।" पर कैप्टन कूल हमेशा निस्पृह भाव से आलोचना व कटुता को हज़म करते रहे तथा कभी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। किसी को पलटकर जवाबनहीं दिया। और तो और आईपीएल 2016 के सीज़न में पुणे वारियर्स की ओर से स्टीव स्मिथ की कप्तानी में खेलते हुए उन्होंने फ़्रेंचाइज़ी के प्रमुख संजयगोयनका द्वारा ख़िलाफ़ की गई टिप्पणियों का भी जवाब नहीं दिया। इससे उनकी मज़बूत मानसिकता व दृढ़ता का पता चलता है।
धोनी बेहतर जानते हैं कि 2015 के वर्ल्ड कप के बाद उनकी क्रिकेटीय क्षमता का क्षरण हुआ है पर बीते पाँच सालों में जिसमें 2019 का वर्ल्ड कप टूर्नामेंटभी शामिल है , खेले गए एक दिवसीय व टी-20 मैचों के आँकड़े देखें तो उनका प्रदर्शन औसत रहा है। इसे खराब नहीं कहा जा सकता। इसी वर्ल्ड कप मेविराट कोहली का स्ट्राइक रेट 94.06 रहा जबकि धोनी का रहा 87. 78। रन बनाने के मामले में वे कुल 272 रनों के साथ चौथे रहे। उनके आगे रहे रोहितशर्मा 648 , विराट कोहली 443 व लोकेश राहुल 361 रन। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि अभी वे पूरी तरह चुके नहीं है। जिस तरह दिए में तेलजब समाप्त होने को होता है तो आख़िरी क्षणों में वह तेजी से भभकता है। तो क्या धोनी में वह भभक शेष है लिहाजा उन्हें एक और अवसर मिलनाचाहिए? क्या धोनी को उस समय का इंतज़ार करना चाहिए ? हालाँकि संन्यास के संदर्भ में भारतीय क्रिकेट में बहुतेरे उदाहरण है जिसमें कई दिग्गजबल्लेबाज़ों मसलन सचिन तेंदुलकर, कपिल देव ने संन्यास लेने के बजाए खराब फ़ार्म से जूझते हुए ज़ोरदार वापसी की कोशिश की पर असफल रहे औरअंतत: उन्हें रिटायरमेंट लेने विवश होना पड़ा। सचिन की बात करें तो 2011 का वर्ल्ड कप जीतने के बाद उनके पास संन्यास लेने का बहुत अच्छा मौक़ाथा पर गिरते प्रदर्शन के बावजूद वे खेलते रहे। बाद के 21 वन डे मैचों में उन्होंने 39.43 के औसत से रन बनाए जबकि 15 टेस्ट मैचों में वे केवल 663 रनही बना सके। कपिल देव महज़ रिचर्ड हेडली का 441 टेस्ट विकेट का कीर्तिमान तोड़ने औसत प्रदर्शन के बावजूद टीम में बने रहे। उनकी गेंदबाज़ी कीनिरंतर कमज़ोर होती गई धार का प्रमाण इस तथ्य से भी मिलता है कि अपने अंतिम 14 टेस्ट मैचों में वे केवल 27 विकेट ही ले सके। ऐसा ही एकउदाहरण पाकिस्तान के जावेद मियाँदाद का भी है। पाकिस्तान ने 1992 का वर्ल्ड कप जीता और तब रिटायरमेंट लेने का उनके पास अच्छा मौक़ा था पर वेखेलते रहे। इसके बाद उन्होंने कोई वन डे नहीं खेला फिर भी वे 1996 के वर्ल्ड कप में पाक टीम का हिस्सा बने और कुल 54 रन बना सके। ये आँकडें येबताते हैं कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ अपनी क्रिकेटीय क्षमता का ठीक-ठीक आकलन करने में ये क्रिकेटर असफल रहे।



दरअसल अपने देश में लाखों-करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों की चाहत का दबाव झेलना महान क्रिकेटरों के लिए कभी आसान नहीं रहा। इसलिए वे सही समय परसही निर्णय नहीं ले सके। पर एम एस धोनी अपवाद हैं और अपने विवेकपूर्ण व चौंकाने वाले निर्णयों के लिए मशहूर हैं। 2014 के आस्ट्लिया दौरे के बीचउन्होंने कप्तानी व टेस्ट क्रिकेट छोड़कर चौंका दिया। फिर अकस्मात् एक दिन एक दिवसीय व टी20 की भी कप्तानी छोड़ दी। इसके बाद यह माना गयाकि 2019 का वर्ल्ड कप उनका अंतिम अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट होगा।और उसके बाद वे इससे संन्यास ले लेंगे। लेकिन एक पराजय ने इसे फिलहाल कुछसमय के लिए टाल दिया है। वे बोझ बनने वाले खिलाड़ियों में से नहीं है। उन्होंने तय कर लिया होगा , बस तारीख़ का एलान बाक़ी है हालाँकि उनके बचपनके कोच केशव बेनर्जी की राय में धोनी को 2020 टी 20 वर्ल्ड कप तक खेलते रहना चाहिए। पर यह उनकी भावनात्मक अभिव्यक्ति है जो हर किसी प्रशंसक की हो सकती है।

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