अमित शाह और छत्तीसगढ़
अमित शाह केन्द्र सरकार के ऐसे पहले गृह मंत्री हैं जो हर चार-पांच महीनों में छत्तीसगढ का फेरा लगाते हैं. उनके पहले केन्द्र में किसी भी राजनीतिक पार्टी की सरकार रही हो , किसी भी गृह मंत्री को इतनी फुर्सत नहीं मिलती थी कि वे छत्तीसगढ जैसे छोटे प्रदेश का दर्जनों बार दौरा करें. अभी हाल ही में बस्तर दशहरा उत्सव में शामिल होने के लिए अमित शाह रायपुर आए. यद्यपि भाजपा शासित एक छोटे विकासशील राज्य के प्रति गृह मंत्री का इतना प्रेम चकित करता है और यह सुखद भी है लेकिन इसके बावजूद शासन के स्तर पर राज्य की जो दुरावस्था है वह चिंतनीय है तथा यह सोचने के लिए बाध्य करती है कि गृह मंत्री का प्रवास और आला अफसरों के साथ बैठकें सिर्फ एक खास उद्देश्य की पूर्ति से अधिक कुछ नहीं हैं जबकि बीते ढाई दशक से प्रदेश में वैसी ही परिस्थितियां कायम हैं जो समन्वित विकास के मार्ग को अवरूद्ध करती रही हैं. इनमें प्रमुख हैं सामंती मिजाज की अनियंत्रित नौकरशाही, उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार तथा निर्वाचित जनप्रतिनिधियों व कार्यकर्ताओं की सरकार व संगठन में उपेक्षा. यद्यपि यह सुखद है कि सरकार की कमान सीधे सरल तथा दीर्घ प्रशासनिक अनुभव रखने वाले वरिष्ठ आदिवासी नेता के हाथ में है लेकिन उनकी सज्जनता ही उनकी कमजोरी बनी हुई है फलस्वरूप शासन-प्रशासन काबू में नहीं है.
ढीली व कमजोर कही जाने वाली विष्णुदेव साय सरकार की एक छवि यह भी है कि वह केन्द्र के दबाव में रहती है तथा उसके निर्देशानुसार काम करती है. वह डबल इंजिन वाली अपनी ही केन्द्र सरकार की आंख से आंख मिलाकर राज्य के हितों से संबंधित महत्वपूर्ण सवालों पर स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम नहीं है और न ही वैसा साहस कर सकती है. ऐसी स्थिति में उसका सुशासन का दावा खोखला ठहरता है. जबकि यह उम्मीद की जाती है कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के बाद सर्वाधिक शक्तिमान अमित शाह जिन्होंने एक प्रकार से छत्तीसगढ़ को गोद ले रखा है , का वरद हस्त रहते कम से कम कानून-व्यवस्था तथा अफसरशाही तो नियंत्रित रह ही सकती है. पर ऐसा नहीं है. दरअसल अमित शाह के फोकस में केवल नक्सली व नक्सलवाद है जिसे तय समय-सीमा के भीतर खत्म करने का उन्होंने बीड़ा उठा रखा है. अब इस समस्या का निदान उनकी प्रतिष्ठा से जुड़ गया है. इसलिए शायद वे उसके खात्मे का इंतज़ार कर रहे हैं. और इसके बाद अन्य मामलों में फार्म में आएंगे. यह बात ध्यान देने योग्य है कि 2023 के चुनाव में राज्य में भाजपा की वापसी एवं मंत्रिमंडल के गठन में उनकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका रही थी. किंतु सरकार में अधिकतर नये व अनुभवहीन विधायकों को मौका देने का उनका फार्मूला औंधा पड़ गया है. विधान सभा के भीतर एवं बाहर यह उनके परफार्मेंस से स्पष्ट है. ऐसे में गोद लिए प्रदेश में अमित शाह की जिम्मेदारी और बड़ी हो गई है.
छत्तीसगढ़ में माओवादी हिंसा दशकों पुरानी गंभीर समस्या है और अगले छह महीनों में यदि यह समूल नष्ट हो जाती है तो केन्द्र व राज्य में भाजपा सरकार की इस दशक की यह सबसे बड़ी व एतिहासिक उपलब्धि होगी और जाहिर है इसका अधिकतम श्रेय अमित शाह को जाएगा लेकिन राज्य की सिर्फ एकमात्र यही समस्या नहीं है. कानून व्यवस्था व भ्रष्टाचार भी उतने ही महत्वपूर्ण मुद्दे है जिन पर समान रूप से ध्यान देने की जरूरत है. भ्रष्टाचार का यह आलम है कि कोई दिन ऐसा नहीं जाता जब सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार व आर्थिक अनियमितताओं की खबरें अखबारों व सोशल मीडिया में सुर्खियां न बनती हों. यद्यपि पूर्ववर्ती कांग्रेस व भाजपा की सरकार के कार्यकाल के दौरान हुए करोडों के भ्रष्टाचार के मामलों के उजागर होने के बाद जांच की प्रक्रिया तेजी से चल रही हैं, गिरफ्तारियां भी हो रही हैं किंतु सरकारी ठेकों में कमीशनखोरी कम हो गई हो या घट गई हो, ऐसा बिल्कुल नहीं है. शायद ही कोई ऐसा विभाग होगा जहां बिना लेन-देन की आम लोगों का काम हो जाता हो. ऐसे में सुशासन की दुहाई देना तथा उसे जनोनमुखी बताना तर्कसंगत नहीं है. जाहिर है इससे शासन-प्रशासन की छवि खराब होती है तथा नेताओं व जनप्रतिनिधियों पर आम जनता का विश्वास जो पहले से ही छिन्न-भिन्न है, और टूटता है. खासकर प्रशासनिक भ्रष्टाचार राज्य के विकास के मार्ग में सबसे बड़ा रोड़ा है. यह अपने आप में अविश्वसनीय लेकिन बेहद शर्मनाक घटना है कि राज्य के कुछ आइएएस अफसरों ने समाज कल्याण विभाग में भ्रष्टाचार का ऐसा जाल रचा कि वर्षों तक किसी को कानों कान खबर नहीं हुई. उनकी छत्रछाया में एक कथित एक गैर सरकारी संगठन बेखौफ़ करोडों का वारा-न्यारा करता रहा. हाल ही में उजागर हुए इस प्रकरण की अब सीबीआई जांच चल रही है जिसमें पांच-छह वरिष्ठ आइएएस जो रिटायर हो चुके हैं , लिप्त पाए गए. इस एक घटना के अलावा भ्रष्टाचार के अन्य मामलों में भी अखिल भारतीय एवं राज्य प्रशासनिक सेवा के एक दर्जन से अधिक अधिकारी या तो जेल में या उनके खिलाफ केन्द्र व राज्य सरकार की एजेंसियां जांच कर रही हैं. आर्थिक घपलों का पर्दाफाश तथा जांच तो खैर जरूरी है ही किन्तु अधिक महत्वपूर्ण है इसकी रोकथाम जो मौजूदा निज़ाम में भी असंभव प्रतीत होती है.
आश्चर्य व चिंता की बात यह भी है प्रदेश भाजपा संगठन भी सरकार के मामले में निस्तेज है और वांछित हस्तक्षेप नहीं कर पा रहा है. जमीनी कार्यकर्ता इस बात से खफ़ा हैं कि जिला तो जिला, तहसील स्तर की प्रशासनिक व्यवस्था में भी उनकी पूछ-परख नहीं है. इसलिए उनका असंतोष गहराते जा रहा है. लिहाज़ा सरकार के कामकाज की आलोचना बाहर ही नहीं पार्टी व सरकार के भीतर भी धधक रही है. सरकार के मुखिया विष्णुदेव साय के प्रति सहानुभूति उनके सीधे-साधे स्वभाव को लेकर अवश्य है पर उनके प्रति यह धारणा और मजबूत होती जा रही है कि निरंकुश अफसरों पर लगाम लगाना व जनता को सुशासन देना उनके बस में नहीं है. इसी संदर्भ में स्वास्थ्य मंत्री के पीए की बीच सड़क पर जन्मदिन की केक काटने की घटना को बिलासपुर हाईकोर्ट ने गंभीरता से लेकर जो टिप्पणी की है वह काबिलेगौर है. मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा ने सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा कि प्रशासन अब असहाय स्थिति में पहुंच चुका है तथा व्यवस्था पर नियंत्रण खो चुका है.
पार्टी में सरकार के प्रति असंतोष के उदाहरण विधान सभा सत्रों में देखे गए हैं जब सत्ताधारी दल के ही दबंग व वरिष्ठ विधायकों ने अपने सवालों से असहज स्थितियां पैदा कीं. यह पहली बार है जब सोशल मीडिया में भी संघ व पार्टी की विचार धारा के समर्थक मुख्य मंत्री के इर्द-गिर्द के आइएएस अफसरों का नाम लेकर उन्हें आरोपों के कटघरे में खड़े कर रहे हैं. ताजा वाकया तो ननकी राम कंवर का है. पार्टी के वरिष्ठतम नेताओं में शुमार कंवर कोरबा रामपुर के सात बार के विधायक एवं पूर्व मंत्री हैं जिन्होंने कोरबा जिला प्रशासन में हो रही अनियमितताओं के खिलाफ़ खोला मोर्चा खोल रखा है. उनके अल्टीमेटम पर तत्काल ध्यान देने एवं उनसे बातचीत करने के बजाए संगठन व सरकार ने उन्हें बहुत हल्के में लिया तथा चार अक्टूबर को अमित शाह के प्रवास के दौरान उन्हें चंद घंटों के लिए नज़रबंद कर दिया. इस घटना से यह संकेत मिलता है कि सरकार व संगठन में अब बृजमोहन अग्रवाल जैसा कोई ट्रबल शूटर नहीं है जो अपनी चतुराई से स्थितियों को सम्हाल सके. बहरहाल राज्य विधान सभा के अगले चुनाव के लिए अभी तीन वर्ष शेष हैं. लेकिन यदि आम लोग अभी से कहने लग जाए कि अगली बार सरकार बदल जाएगी तो यह भाजपा संगठन व सरकार के लिए चिंता की बात होनी चाहिए.

Comments
Post a Comment