Posts

भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को मंत्री पलीता, नौकरशाही में घमासान

Image
मेरे अफसर पाक-साफ - गागड़ा -दिवाकर मुक्तिबोध         ऐसा शायद छत्तीसगढ़ में ही होता है जब एक मंत्री अपने विभाग के आईएफएस अफसरों एवं अन्य अधिकारियों के खिलाफ राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ई.ओ.डब्ल्यू) एवं एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) के छापे का विरोध करता हो तथा उसे विद्वेषपूर्ण कार्रवाई बताता हो। वनमंत्री महेश गागड़ा ने अपने तीन आईएफएस अफसरों एसएसडी बडगैया, एएच कपासी, केके बिसने व टीआर वर्मा के यहां मारे गए छापे का पुरजोर विरोध किया और आईएफएस एसोसिएशन के पदाधिकारियों के साथ हाल ही में मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह से मुलाकात की। वन मंत्री ने कहा कि एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) को क्या केवल वन विभाग में ही भ्रष्टाचार दिख रहा है? छापे के बाद बरामदगी को लेकर जितना प्रचार किया गया है, उतना कुछ नहीं मिला। छापे पूर्वाग्रह से ग्रसित थे और इस तरह के छापों से विभाग के अफसरों का मनोबल गिर रहा है। वन मंत्री ने अपनी ओर से अफसरों को क्लीन चिट दी। उनका मानना हंै कि उनके अफसर बेहतर काम कर रहे हैं। महेश गागड़ा रमन मंत्रिमंडल के पहले ऐसे मंत्री है जिन्हें भ्रष्टा...

जोगी के बिना कांग्रेस ? कमजोर या मजबूत

Image
  -दिवाकर मुक्तिबोध छत्तीसगढ़ कांग्रेस क्या अपने दूसरे विभाजन की ओर बढ़ रही है। दिसंबर 2015 के अंतिम सप्ताह में अंतागढ़ उपचुनाव सीड़ी कांड के जाहिर होने के बाद जोगी परिवार पर पार्टी अनुशासन का कहर टूट पड़ा है। मरवाही से निर्वाचित अमित जोगी को 6 वर्ष के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है और उनके पिता पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के लिए भी पार्टी हाईकमान से ऐसी ही सिफारिश की गई है। अजीत जोगी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी में है लिहाजा उन पर फैसले का अधिकार प्रदेश कमेटी को नहीं है अलबत्ता वह अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए प्रस्ताव जरुर पारित कर सकती है। 6 जनवरी 2016 को प्रदेश कार्यालय में कार्यकारिणी की बैठक में उन्हें भी 6 वर्ष के लिए पार्टी से बाहर करने का निर्णय लिया गया। अब गेंद पार्टी हाईकमान के पाले में है। केंद्रीय अनुशासन समिति चाहे तो प्रदेश कमेटी के फैसलों को रद्द कर सकती है या अमित जोगी के निष्कासन पर मुहर लगाते हुए अजीत जोगी के खिलाफ कार्रवाई नामंजूर कर सकती है या स्थगित रख सकती है। जोगी पिता-पुत्र की आस अब मूलत: पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी एवं उपाध...

किसान मरे नहीं तो क्या करें

Image
छत्तीसगढ़ में ऋणग्रस्तता का कहर - दिवाकर मुक्तिबोध    लालसाय पुहूप। आदिवासी किसान। उम्र करीब 33 वर्ष। पिता - शिवप्रसाद पुहूप। स्थायी निवास - प्रेमनगर विकासखंड स्थित ग्राम कोतल (सरगुजा संभाग, छत्तीसगढ़)। ऋण - 1 लाख। ऋणदाता बैंक - सेंट्रल बैंक प्रेमनगर शाखा। बैंक का ऋण वसूली नोटिस - लोक अदालत में 10 हजार रुपये जमा। आत्महत्या दिनांक - 26 दिसंबर 2015। वजह - कर्ज न पटा पाने से मानसिक संताप। सबूत - सुसाइडल नोट। प्रशासन का पक्ष - जांच के बाद स्थिति स्पष्ट होगी।      छत्तीसगढ़ में पिछले 4-5 महीनों में बैंक के कर्जदार किसानों की आत्महत्याओं का यह 36वां प्रकरण है। ऋणग्रस्तता की वजह से जिंदगी खत्म कर देने वाले और भी कई नाम है - मसलन - रेखराम साहू (धमतरी), केजूराम बारले (अभनपुर), गोकुल साहू (आरंग), मानसिंह (कोण्डागांव), रघुराम मंडावी (विश्रामपुर), शत्रुहन देवांगन (छुरिया), बलिराम सोनवानी (भाटापारा), जागेश्वर कुमार (कोरबा) आदि आदि। और तो और नए वर्ष की शुरुआत भी फांसी की घटनाओं से हुई। बेमेतरा जिले के सनकपाट गाँव के 55 वर्षीय किसान फिरंगी राम साहू ने ...

''सुजाता"" के बहाने

Image
- दिवाकर मुक्तिबोध 6 दिसंबर 2015, रविवार के दिन रायपुर टॉकीज का ''सरोकार का सिनेमा"" देखने मन ललचा गया। आमतौर अब टॉकीज जाकर पिक्चर देखने का दिल नहीं करता। वह भी अकेले। लेकिन इस रविवार की बात अलग थी। दरअसल ''सुजाता"" का प्रदर्शन था। बिमल राय की सन् 1959 में निर्मित ''सुजाता"' के साथ कुछ यादें जुड़ी हुई थीं। सन् 1960 में हमने यह पिक्चर राजनांदगांव के श्रीराम टॉकीज में माँ-पिताजी और बहन के साथ देखी। पिताजी जिन्हें हम बाबू साहेब कहते थे, कुछ देर के लिए हमारे साथ बैठे, फिर बाहर निकल गए। घंटे - आधे घंटे के बाद फिर लौट आए। कवि, लेखक और पत्रकार के रुप में श्री गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म शताब्दी वर्ष अगले वर्ष यानी 13 नवंबर 1916 से शुरु हो जाएगा। उनके व्यक्तित्व और कृतित्च के विभिन्न पहलुओं पर बीते 50 सालों में काफी कुछ लिखा जा चुका है। उनकी कविताएं - कहानियां, उपन्यास, डायरी, आलोचनाएं, निबंध व अन्य विविध विषयों पर किया गया लेखन हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर है जिस पर दृष्टि, पुनर्दृष्टि, पुनर्पाठ, बिंबों, प्रतिबिंबों के नए-नए रहस्यों...

'श्रेय' की राजनीति में निपट गया रायपुर साहित्य महोत्सव

Image
-दिवाकर मुक्तिबोध कुछ तारीखें भुलाए नहीं भूलती। याद रहती हैं, किन्हीं न किन्हीं कारणों से। रायपुर साहित्य महोत्सव को ऐसी ही तारीखों में शुमार किया जाए तो शायद कुछ गलत नहीं होगा। इसकी चंद वजहें है - पहली - 12 से 14 दिसंबर 2014 को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आयोजित साहित्य महोत्सव बेजोड़ था, अद्भुत था। दूसरी वजह - उस सरकार द्वारा आयोजित था जो दक्षिण पंथी विचारधारा से अनुप्राणित है। तीसरी वजह - इस आयोजन में इतना खुलापन था कि माक्र्सवादी विचारधारा से प्रेरित लेखकों, कवियों, कलाकारों एवं अन्य क्षेत्रों के दिग्गज हस्तियों ने इसमें शिरकत की और वैचारिक विमर्श में सक्रिय भागीदारी निभाई। चौथी वजह - सरकारी आयोजन होने के बावजूद विमर्श में सरकार का कोई दखल नहीं रहा। पांचवीं वजह - मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने समारोह का उद्घाटन किया लेकिन वे स्वयं एवं संस्कृति मंत्री मंच पर नहीं, दर्शक दीर्घा में बैठे क्योंकि वामपंथी लेखक ऐसा चाहते थे जिन्होंने समारोह की तैयारियों के दौरान इस तरह की प्रतिक्रिया जाहिर की थी। छठवीं वजह - समारोह अपने उद्देश्य में, राजनीतिक और साहित्यिक दृष्टि से सफल ...

यादें : जब मुक्तिबोध ने ट्रेन की जंजीर खींची

Image
 - दिवाकर मुक्तिबोध नाम - श्री कन्हैयालाल अग्रवाल। उम्र 93 साल। मुकाम - राजनांदगांव, छत्तीसगढ़। पीढ़ी दर पीढ़ी। पिछले करीब डेढ़ सौ वर्ष से। व्यवसाय - व्यापार। संस्थान-भारती प्रिंटिंग प्रेस एवं बुक डिपो। स्थापना - 19 अगस्त 1948 स्वास्थ्य - एकदम फिट। चुस्त-दुरुस्त। अभी भी अपने रोममर्रा के काम के लिए किसी के सहारे की जरुरत नहीं, खुद करते हैं।       यह संक्षिप्त परिचय एक ऐसे व्यक्ति का है जो कट्टर राष्ट्रवादी हैं, चिंतक हैं और जिसने अपने व्यवसाय के हित में कभी कोई अनैतिक कार्य नहीं किए। कोई समझौते नहीं किए। इसलिए सदर बाजार स्थित उनकी प्रिटिंग प्रेस एवं दुकान 66-67 साल पहले जिस हालत में थी, अभी भी उसी हालत में है।      श्री कन्हैयालाल जी का एक और परिचय है जो साहित्यिक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण  है। वे साहित्यिक नहीं है पर साहित्य और साहित्यकारों से उन्हें प्रेम है। विशेष लगाव है। साहित्यिक बिरादरी में प्राय: रोजाना उठना-बैठना होता रहा है और वे मेरे पिता स्व. गजानन माधव मुक्तिबोध के अनन्य मित्र रहे हैं। आज की तारीख में संभ...

न जोगी खारिज, न वोरा

Image
-दिवाकर मुक्तिबोध कांग्रेस बैठे-ठाले मुसीबत मोल न ले तो वह कांग्रेस कैसी? अपनों पर ही शब्दों के तीर चलाने वाले नेता जब इच्छा होती है, शांत पानी में एक कंकड़ उछाल देते है और फिर लहरे गिनने लग जाते हैं। छत्तीसगढ़ कांग्रेस में पिछले चंद महीनों से काफी कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। तीसरे कार्यकाल के ढाई साल देख चुकी रमन सरकार के खिलाफ उसका ऐसा आक्रामक रुप इसके पहले कभी देखने में नहीं आया। विशेषकर भूपेश बघेल के हाथों में प्रदेश कांग्रेस की कमान आने के बाद कांग्रेस की राजनीति में एक स्पष्ट परिवर्तन लक्षित है। बरसों से चली आ रही खेमेबाजी तो अपनी जगह पर कायम है पर आतंरिक द्वंद्व और गुटीय राजनीति के तेवर कुछ ढीले पड़े हैं। ऐसा लगता है कि प्रदेश कांगे्रस ने तीन वर्ष बाद सन् 2018 में होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव के लिए अभी से कमर कस ली है और एक सुनियोजित अभियान के तहत राज्य सरकार की नीतियों, उसके कामकाज के तौर-तरीकों, जनता से किए गए उसके वायदे, नीतियों के क्रियान्वयन में हो रही घपलेबाजी तथा आधारभूत संरचनाओं के निर्माण में भारी भ्रष्टाचार से संबंधित मुद्दे खड़े किए जा रहे हैं एवं...