तनाव का हद से गुजर जाना...

रिश्तेदारों की हत्या और उसके बाद आत्महत्या जैसी दर्दनाक घटनाएं छत्तीसगढ़ में इन दिनों आम हो गई हैं। कोरबा के बाकीमोंगरा में पैसे के लेनदेन के मामले में एक बेटे ने अपनी मां की हत्या की और बाद में खुद फांसी पर लटक गया। राज्य में ऐसे बहुतेरे उदाहरण हैं जिसमें जरा-जरा सी बात पर निकट रिश्तेदारों की हत्या करने के बाद आरोपियों ने खुद को गोली मार ली या अन्य तरीकों से जान दे दी। रायपुर की बात करें तो हाल ही में अवैध संबंधों के चलते ताजनगर पंडरी के अल्ताफ ने पहले अपनी बीवी ंऔर दो बच्चों का कत्ल किया और बाद में खुद फांसी पर लटक गया। ताजा वाकया जगदलपुर का है जो और भी दर्दनाक और दिल दहला देने वाला है। नक्सली मोर्चे पर वीरता के पुरस्कार से नवाजे गए सीएसपी देवनारायण पटेल को 24 फरवरी 2014 को एक जज के साथ मारपीट करने के आरोप में निलंबित कर दिया गया था और उसी दिन देर रात उन्होंने सर्विस रिवाल्वर से अपनी पत्नी की हत्या की और फिर खुद को गोली मार ली। गोली चलाने में उनके दो बच्चों को भी चोटें आई जिनमें एक की हालत गंभीर है।

दिनोंदिन बढ़ रही ये घटनाएं तेजी से बढ़ रहे सामाजिक विघटन की ओर इशारा करती हैं। यह इस बात का भी संकेत है कि लोगों का धैर्य चूक रहा है और मानसिक तनाव को झेलने एवं उसे खारिज करने की क्षमता का क्षरण हो रहा है। तनाव की वजह से विवेकशून्यता का परिणाम उन नाते-रिश्तेदारों को भी भोगना पड़ रहा है जो निर्दोष और मासूम हैं। मानसिक तनाव, व्यवस्था से नाराजगी एवं घनघोर निराशा की ऐसी परिणति चिंता का विषय है। विचार करने की जरूरत है कि सीएसपी देवनारायण पटेल की आत्महत्या के पीछे मूलत: क्या कारण हो सकते हैं। जगदलपुर में जिला एवं सत्र न्यायालय में पदस्थ अपर सत्र न्यायाधीश ए.टोप्पो के साथ मारपीट एवं बदसलूकी की घटना क्या इतनी भयावह थी कि पश्चाताप में पुलिस अधिकारी को जान लेने एवं जान देने के अलावा कोई रास्ता नहीं सूझा या फिर निलंबन की वजह से यह व्यवस्था के प्रति आक्रोश का परिणाम था? यह कतई आश्चर्यजनक नहीं है कि उन्हें निलंबित करने में विभाग ने जरा भी देर नहीं की। कारण स्पष्ट था- न्याय की आत्मा पर हमला। अन्यथा आमतौर पर पुलिस विभागीय कार्रवाई में इतनी तत्परता नहीं बरतती जितनी इस मामले में बरती गई। बहरहाल इस संदर्भ में बिलासपुर में पदस्थ रहे एसपी राहुल शर्मा द्वारा की गई आत्महत्या की घटना का सहज स्मरण हो आता है जिन्होंने मौजूदा व्यवस्था में खुद को मिसफिट पाकर जान देना मुनासिब समझा। यह अलग बात है कि यह कभी स्थापित नहीं हो पाया कि वे भ्रष्ट व्यवस्था के शिकार हुए। बहरहाल सीएसपी पटेल हत्या और आत्महत्या प्रकरण तो और भी विचित्र है। एक हंसता-खेलता सुदर्शन परिवार क्षणिक आवेश में किस तरह बिखर जाता है, यह इसका अन्यतम उदाहरण है। यह कहा जाता है कि देवनारायण पटेल विवादास्पद पुलिस अधिकारी थे तथा पिटाई उनका शगल था। न्यायाधीश टोप्पो द्वारा पहचान बताने के बावजूद उनका तथा उनके मातहतों का हाथ नहीं रुका। इसका अर्थ है, वे बात-बात में आपा खो बैठते थे और छोटी-छोटी घटनाएं भी उन्हें उत्तेजित कर देती  थीं। हालांकि परिचितों का कहना है कि वे बहुत सुलझे हुए इंसान थे तथा बड़ी से बड़ी परेशानी में भी संयम नहीं खोते थे। फिर एकाएक उनका संयम कैसे जवाब दे गया? मानसिक तनाव क्या इस कदर हावी हो गया? दरअसल पुलिस विभाग में अधिकारियों एवं जवानों का ऐसे तनाव से गुजरना तो सामान्य बात है। हवालात में आरोपियों के साथ मारपीट, थर्ड डिग्री का इस्तेमाल और शारीरिक एवं मानसिक यंत्रणाएं तो पुलिस के कामकाज का प्रमुख हिस्सा हैं और वर्दी पर बदनुमा दाग भी। हवालात में मौत की घटनाएं ऐसे ही तनाव का परिणाम होती हैं। जाहिर है इसका चरम घनघोर मानसिक त्रासदी है जो परिणाम की परवाह नहीं करती। सीएसपी पटेल संभवत: ऐेसे ही दौर से गुजरे लिहाजा उन्होंने प्राणों के सौदे किए। जैसा कि आमतौर पर होता है अन्य घटनाओं की तरह इस घटना की भी जांच होगी पर किसी नतीजे पर न पहुंचा जा सकेगा और न ही कोई जवाबदेही तय होगी क्योंकि यह मान लिया लिया जाएगा कि विशुद्ध रूप से यह एकाकी निर्णय है जिसके लिए संबंधित व्यक्ति खुद जिम्मेदार है। लेकिन बावजूद ऐसी घटनाएं चिंता का सबब है लिहाजा उनसे छुटकारा पाने के उपायों पर समाज-विज्ञानियों एवं पुलिस महकमे को विचार करने की जरूरत है।

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