अद्भुत है सचिन का संकल्प



व्यक्ति अपने कर्मों के साथ-साथ विचारों से भी महान होता है। सचिन तेंदुलकर ऐसी ही शख्सियत हैं जिन्होंने मुंबई के वानखेडे स्टेडियम में क्रिकेट से अपनी विदाई के दौरान बहुत ही मार्मिक, दिल को छूने वाला लेकिन संयमित भाषण दिया। ऐसे क्षण बेहद भावुक होते हैं। उन पर काबू रखकर विचारों को व्यक्त करना हर किसी के बस में नहीं है। बिरले ही ऐसे होते हैं। सचिन ने रिटायरमेंट के बाद अपनी पहली पत्रकार वार्ता में यद्यपि अपनी भावी योजनाओं का खुलासा नहीं किया लेकिन संकेत दिए हैं वे क्या करना चाहते हैं। बीबीसी को दी गई भेंट में उन्होंने कहा कि वे गांवों में रोशनी फैलाना चाहते हैं। देश में कई ऐसे दूर-दराज के इलाके हैं जहां सूरज डूबने के बाद रोशनी का इंतजाम नहीं है। सचिन तेंदुलकर सौर ऊर्जा के जरिए ऐसे गांवों को रौशन करना चाहते हैं। वे वहां स्कूल भी बनाना चाहते हैं ताकि बच्चे पढ़ लिख सकें। सचिन ने कहा कि यह काम उनके दिल के बहुत करीब है।

इन विचारों से सचिन ने भावी कार्यक्रमों की झलक तो मिलती ही है, साथ में इस बात का भी पता चलता है कि वे बेहद संवेदनशील हैं तथा सर्वहारा वर्ग के प्रति उनके मन में श्रद्घा एवं सम्मान का भाव है। वे उनकी दारूण स्थिति से भी वाकिफ हैं। वे नए भारत का भविष्य बुनना चाहते हैं। गरीब बच्चों के भविष्य को संवारना उनका लक्ष्य है। यह उस महान क्रिकेटर की सोच है जिसकी दुनिया क्रिकेट तक सीमित नहीं है। यह सच्ची इंसानियत है। वे कहते हैं- ''यह कार्य सिर्फ मुझ तक सीमित नहीं है, पूरा देश इसमें शामिल हो सकता है। मैं यह नहीं कहता कि सरकार ये नहीं कर सकती। दरअसल पहल हम सभी को करनी चाहिए।''

सचिन राज्यसभा सदस्य भी हैं। उन्होंने खेलों को जनकल्याण की अपनी योजनाओं से दूर रखा है। एक सांसद के रूप में उन्होंने अगले 20 सालों में खेलों के विकास के सवाल पर केन्द्र सरकार को अपने विचारों  से अवगत कराया है। इससे पता चलता है कि उनके लिए खेलों का विकास एवं सर्वहारा वर्ग की उन्नति के मायने अलग-अलग हैं। वे इसमें कोई घालमेल नहीं करना चाहते। यह उनके परिपक्व दृष्टिकोण को दर्शाता है। एक क्रिकेटर का यह संकल्प इस मायने में अद्भुत है क्योंकि उसके सामाजिक सरोकारों पर खेल हावी नहीं है। सचिन ने स्पष्ट किया है कि वे खेलना छोड़ रहे हैं, क्रिकेट नहीं। यानी क्रिकेट की दुनिया में रमे रहेंगे पर अपने सामाजिक सरोकारों को नहीं भूलेंगे।

देश के दूरस्थ इलाकों के हजारों गांवों में जो पानी, सड़क, स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसी बुनियादी समस्याओं से जूझ रहे हैं, रोशनी की किरणें बिखेरना आसान नहीं। जैसा कि सचिन ने कहा कि यह अकेले उनके बस का भी नहीं है, इसमें पूरे देश को शामिल होने की जरूरत है, एकदम व्यवहारिक है। सचिन अपने प्रयत्नों में कितने सफल हो पाते हैं, भविष्य की बात है किंतु यदि इसे वे एक राष्ट्रीय अभियान की शक्ल दे पाए तो यह एक बड़ी उपलब्धि होगी। वे अपने अभियान की शुरुआत किस तरह करेंगे, इसे अभी उन्होंने जाहिर नहीं किया है पर सौर ऊर्जा उन गांवों को रौशन करने का सबसे अच्छा, सरल एवं सस्ता उपाय है जो अंधेरे में डूबे हुए हैं और जहां विकास की कोई किरणें नहीं पहुंची हैं।

देश में गरीबी, संसाधनों की कमी, राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव, विद्युत चोरी तथा कमजोर प्लानिंग की वजह से ग्रामीण विद्युतीकरण को जबर्दस्त धक्का पहुंचा है। सन् 1990 तक केवल 43 प्रतिशत गांव विद्युतीकृत थे। यह आंकड़ा सन् 2012 यानी 22 सालों में बढ़कर सिर्फ 60 प्रतिशत हो पाया है। सरकार का सन् 2025 तक देश के हर गांव में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य है। इसके लिए बायो गैस, सौर ऊर्जा तथा पवन ऊर्जा जैसे पारम्परिक माध्यमों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। चूंकि अभी भी 40 प्रतिशत गांवों अंधेरे से लड़ रहे हैं लिहाजा बच्चों की शिक्षा पर सबसे ज्यादा असर पड़ रहा है। इस अंधेरे को दूर करने सरकारी प्रयत्नों के साथ-साथ निजी संस्थाओं एवं व्यक्तियों को भी आगे आने की जरूरत है। एक व्यक्ति के रूप में सचिन शुरूआत कर रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए अलख जगाने की उनकी कोशिश जरूर रंग लाएगी। छत्तीसगढ़ में भी यदि उनके कदम पड़ते हैं तो यह और भी अच्छी बात होगी। राज्य ने यद्यपि ग्रामीण विद्युतीकरण की दिशा में अच्छी प्रगति की है पर अभी भी सैंकड़ों गांव खासकर बस्तर के घने जंगलों में बसे गांव अभी भी रोशनी से वंचित है।


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