लोकप्रियता की जंग
छत्तीसगढ़
राज्य विधानसभा के चुनाव में यद्यपि सीधा मुकाबला सत्तारूढ़ भाजपा एवं
कांग्रेस के बीच है लेकिन यदि लोकप्रियता की जंग की बात करें तो निस्संदेह
मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह एवं पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी आमने-सामने हैं।
दोनों लोकप्रियता के शिखर पर हैं तथा दोनों के समक्ष अपनी अपनी पार्टी को
जिताने की चुनौती है। चुनाव में भाजपा संगठन का नेतृत्व रमन सिंह कर रहे
हैं और पार्टी को उन्हीं की साफ-सुथरी छवि पर सत्ता की हैट्रिक का भरोसा
है। रमन के अलावा कोई दूसरा नाम नहीं है। यद्यपि विधानसभा क्षेत्रों के
क्षत्रपों का अपना-अपना आभामंडल है लेकिन इस आभामंडल को ऊर्जा रमन सिंह की
लोकप्रियता से मिल रही है। दूसरी ओर कांग्रेस के पास अजीत जोगी है। एक ऐसा
नाम जो विवादित भी है लेकिन दबंग भी। छत्तीसगढ़ , मुख्यमंत्री के रूप में
अजीत जोगी की प्रशासनिक क्षमता, सूझ-बूझ, दूरदृष्टि और राजनीतिक कौशल की
झलक सन् 2000 से 2003 के बीच देख चुका है। राज्य की जनता उनकी विकासपरक सोच
की कायल भी है। उनकी जिजीविषा भी बेमिसाल है। शारीरिक रूप से अस्वस्थ होने
के बावजूद वे वर्षों से कुर्सी पर बैठे-बैठे अपने राजनीतिक साम्राज्य का
पूरी मुस्तैदी के साथ संचालन कर रहे हैं तथा उन्होंने अपने गढ़ को पार्टी
के भीतरी दबावों से सुरक्षित रखा है। उनकी गुटीय ताकत का मुजाहिरा समय-समय
पर होता रहा है। राज्य विधानसभा चुनाव के इस दौर में प्रदेश कांग्रेस पर
उनकी पकड़ की मिसाल चुनाव संचालन समिति के संयोजक के पद पर नियुक्ति से
मिलती है। चुनाव की कमान यद्यपि वरिष्ठ नेता एवं अ.भा कांग्रेस के
कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के हाथ में है किंतु पार्टी की असली ताकत जोगी
बने हुए हैं। जननेता के रूप में उनकी जमीनी पकड़ मजबूत है।
लोकप्रियता की दृष्टि से डॉ.रमन सिंह और अजीत जोगी में
कौन कितना भारी है, ठीक-ठीक अंदाज लगाना मुश्किल है। दरअसल लोकप्रियता को
आंकने के अलग-अलग पैमाने, अलग-अलग आधार होते हैं। इनमें प्रमुख हैं
व्यक्तित्व, राजनीतिक कौशल, बौद्घिक ताकत, सामाजिक व्यवहार, स्वभाव और
कामकाज। व्यक्तित्व की दृष्टि से दोनों नेता प्रभावशाली हैं। राजनीतिक कौशल
में भी दोनों जबर्दस्त हैं। अपने सीधे, सरल स्वभाव एवं सुदर्शन व्यक्तित्व
को एक अस्त्र बनाकर रमन सिंह ने जनता के बीच अपनी पैठ बनाई है। उनके
मुकाबले जोड़-तोड़ की राजनीति में माहिर अजीत जोगी की राजनीतिक सूझबूझ
असंदिग्ध है। अपने विरोधियों को कभी माफ न करो की नीति पर चलने वाले अजीत
जोगी विध्वंस की राजनीति के हिमायती हैं। रमन सिंह स्वभाव से सहज-सरल हैं
तो जोगी भी विनम्र हैं। किंतु उनमें गज़ब की दृढ़ता है जो किसी को हावी
होने की इजाजत नहीं देती। बौद्घिक चातुर्य की बात करें तो रमन सिंह की
तुलना में अजीत जोगी लाजवाब हैं। कुल मिलाकर रमन सिंह का व्यक्तित्व
आकर्षित तो करता है पर एक ढीलेपन का भी अहसास कराता है। ऐसा व्यक्ति कुशल
प्रशासक नहीं हो सकता। दूसरी ओर जोगी के व्यक्तित्व में सादगी के बावजूद एक
अजीब सी कठोरता है जिसे न तो झुकना मंजूर है और न ही टूटना। मुख्यमंत्री
के रूप में तीन साल के अपने कार्यकाल में जोगी ने साबित किया था शासन कैसे
चलाया जाता है। नौकरशाही को कैसे साधा जाता है। दोनों का व्यक्तित्व जुदा
है, कामकाज का ढंग अलग है पर प्रदेश में दोनों लोकप्रियता के रथ पर सवार
हैं। चुनावी राजनीति में उनकी जनप्रियता का पार्टी को कितना लाभ मिलेगा, यह
भविष्य की बात है किंतु इसमें संदेह नहीं है कि दोनों का भविष्य दांव पर
हैं। दोनों यदि अपनी पार्टी को जीता नहीं पाए तो यह उनकी व्यक्तिगत हार
होगी तथा वे राजनीतिक परिदृश्य से लगभग बाहर हो जाएंगे। यानी विधानसभा
चुनाव दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण है। दोनों की लोकप्रियता दांव पर है।
डॉ.रमन सिंह की प्रसिद्घि का मूल आधार है मुख्यमंत्री
के रूप में उनके दस साल के कार्य। सत्ता प्रमुख होने का लाभ। एक दशक के
शासन में मुख्यमंत्री ने न केवल छत्तीसगढ़ को विकास के अग्रणी राज्य के रूप
में देश के नक्शे में स्थापित किया वरन आधारभूत संरचनाओं के विकास को भी
तेज गति दी। सार्वजनिक वितरण प्रणाली सहित कई जनकल्याणकारी योजनाओं की
देशभर में चर्चा हुई और उन्हें सराहा गया। इसमें दो राय नहीं कि राज्य में
गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार की निरंतर तेज चीख-पुकार के बावजूद उन्होंने
विकास के नए आयाम गढ़े। उनकी लोकप्रियता उनकी दस साल की उपलब्धियों का
परिणाम है वरना दस साल पूर्व केन्द्रीय मंत्री के रूप में, सांसद के रूप
में अथवा प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष के रूप में उनकी लोकप्रियता निचले पायदान
पर थी।
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की लोकप्रियता में नए पंख
तब लगे जब वे कलेक्टरी छोड़कर राजनीति में आए। आई.ए.एस अधिकारी के रूप
में वे अविभाजित म.प्र. में खासे लोकप्रिय थे। उनकी लोकप्रियता के तीन दशक
इस मायने में अद्भुत है क्योंकि वे कई झंझावतों से होकर गुजरे हैं। कई बार
उनका पराभव भी हुआ पर जमीन से वे बेदखल नहीं किए जा सके। जड़ों का साथ नहीं
छूटा। राज्य में कांग्रेस के सत्ता से बाहर रहने के बावजूद जोगी की
सक्रियता यथावत बनी रही तथा जनता से उनका सम्पर्क नहीं टूटा। यानी
लोकप्रियता के मामले में प्रदेश की राजनीति में वे भी बेजोड़ हैं।
अब सवाल है लोकप्रियता की जंग दोनों में से कौन जीतेगा? फिलहाल इसका
कोई जवाब नहीं है। क्योंकि जो भी पार्टी चुनाव जीतेगी, उसके लिए और भी कई
कारक जिम्मेदार होंगे। नतीजों से केवल यह तय होगा नेतृत्व को बहुमत का
जनसमर्थन मिला अथवा नहीं। तब दोनों की लोकप्रियता को भी इसी तराजू से तौला
जा सकेगा।
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