मुक्तिबोध:प्रतिदिन (भाग-3)


बगदादी राजनीति का चक्कर

यह बिलकुल सही है कि अपनी जनता के सामने बहादुरी बताना पाकिस्तान के लिए ज़रूरी हो गया है। ऐसी हालत में सरहदी उपद्रव और ज़्यादा बढ़ेगा और लड़ाई के बादल घुमडेंगे। यह ज़रूरी नहीं है कि वे बरसे भी। लेकिन वे घुमडेंगे भी ख़ूब और गरजेंगे भी ख़ूब, और शायद वे इधर- उधर ओले गिरायें बौछारें करें और आग के छींटे मारें।
( सारथी, 3 फऱवरी 1957 में प्रकाशित, रचनावली खंड - 6 में संकलित)
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दून घाटी में नेहरू

सुना है पंडित जवाहर लाल नेहरू एक हफ़्ते की छुट्टी पर रहेंगे। 'आराम हराम है' का नारा देने वाले नेहरूजी को स्वयं आराम की कितनी ज़रूरत है, यह किसी से छिपा नहीं है। देश-विदेश की हर छोटी सी घटना उनके संवेदनशील मन को केवल प्रभावित ही नहीं करती, वरन उन्हें योग्य कार्य करने के लिए संचालित भी कर देती है। इनका मानसिक भार उन लोगों से भी छिपा नही है, जो सिफऱ् चित्र मे उन्हे देखते हैं। उनका कहना है कि  नेहरूजी के चेहरे पर चिंता की लकीरें गहरी और कई गुना हो गई है तथा वे जल्दी जल्दी बूढ़े हो रहे हैं।
0. ज़बरदस्ती विश्राम, यानी बेकारी, और स्वेच्छापूर्वक निरंतर विश्राम, यानी आलस्य के इस क्लासिकल देश यानी भारत में आवश्यक विश्राम का महत्व शायद समझा ही नहीं गया है। यहीं कारण है कि पण्डित नेहरु जैसे तत्पर जागरूक  नेता भी समय-समय विश्राम लेते रहने का नियम नहीं बना पाते।
0. जो लोग जि़म्मेदारी के काम पर है उन्हे आराम भी एक कर्तव्य होना चाहिये। अगर हम चाहते हैं कि पंडित नेहरू दीर्घ काल तक हमारे बीच रहे तो उनके लिए विश्राम का नियम बना देना अनुचित न होगा।
(नया ख़ून, अप्रैल 1957 में प्रकाशित, रचनावली खंड-6 में संकलित)

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संयुक्त महाराष्ट्र का निर्माण एकदम ज़रूरी 

इस बात को ध्यान में रखना बहुत ज़रूरी है कि महाराष्ट्र धर्म भारतीय संस्कृति और भारतीय महत्वाकांक्षा का ही एक अत्यन्त सक्रिय रूप है। अपने इस रूप के कारण ही तिलक हो या शिवाजी, संत ज्ञानेश्वर हो या आधुनिक विनोबा, पूरे भारत को नेतृत्व देने में समर्थ  हो सके। जिस प्रकार एक महान सरिता जिस प्रदेश में बहती है, उस प्रदेश की मिट्टी का रंग जल में प्रतिबिम्बित हो जाता है, उसी प्रकार भारतीय संस्कृति महाराष्ट्र में प्रवाहित होकर एक नया रंग ले आयी। इस रंग की एक विशेषता यह है कि वह सिफऱ् अपने लिए एक अलग स्वायत्त प्रांत चाहती है। और उसकी यह आकांक्षा आज की नहीं, बरसों पुरानी है। कांग्रेस ने महाराष्ट्र की इस स्वाभाविक आकांक्षा को आज से नहीं, एक अरसे से स्वीकार किया।
( नया ख़ून 7 जून 1957 में प्रकाशित, रचनावली खंड-6 में संकलित)

क्रमश:

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