मुक्तिबोध:प्रतिदिन (भाग-8)


कविताओं की वे पंक्तियों जो नेमिचन्द्र जी को लिखे गए कुछ पत्रों के अंत में लिखी गई हैं -
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(1)
हम हैं मुश्ताक़ और वे बेज़ार
या इलाही! य माजरा क्या है।

(2)
याद आती है तुम्हारी तैरती सी
राह से जिस
कभी कोई आ नहीं सकता
न माता, पुत्र या पत्नी, पिता।

(3)
फ़क़ीराना आये सदा कर चले
मियाँ, ख़ुश रहो हम दुआ कर चले
व क्या चीज़ है आह जिसके लिए
हरयक चीज़ से दिल उठाकर चले
कोई नाउम्मेदाना करके निगाह
सो तुम हमसे मुँह भी छिपाकर चले
दिखाई दिये यूँ कि बेख़ुदी किया
हमें आपसे भी जुदा कर चले
जबीं सिजदे करते ही करती गयी
हकेबंदगी हम अदा कर चले
परिस्तिश की मां तक कि ऐ बुत  तुझे
नजऱ में सभों की खुदा कर चले
गयी उम्र दर बाद फिक्रेगजल
सो इस फऩ के ऐसा बड़ा कर चले
कहें क्या जो पूछे कोई हमसे मीर
जहाँ में तुम आये थे क्या कर चले।

(4) 
प्राणों में है कही नहीं आलोक किरण,
   मैं कभी खोलता कभी बाँधता रहा मात्र अपने बंधन।




(5)
we have bathed, where none have seen us,
In the lake and in the fountain,
Underneath the charmed statue,
Of the timid bending Venus,
Where the water-nymphs were counting
In the waves the stars at night,
And those maidens started at you,
Your limbs shone through so soft and bright
But no secrets dare we tell,
For thy Slaves unlace thee,
And he, who shall embrace thee,
Waits to try thy beauty's spell.
                                                                    ( Beddoes )


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