मुक्तिबोध:प्रतिदिन (भाग-9)

वीरेन्द्र कुमार जैन को पत्र
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(दिनांक 10-12 -1942) 

उज्जैन में दो जीवंत संस्थाएँ हैं - (1) प्रगतिवादी लेखक संघ, (2) मध्य भारत पुरोगामी हिन्दी साहित्य समिति। आदर्शवादी नवयुवकों की इन दो संस्थाओं में से दूसरी 'पुरोगामी' होकर भी सब प्रकार के साहित्यिकों के लिए अपनें में स्थान रखती है । वह केवल साहित्य और साहित्यिकों की उन सड़ी-गली बातों की ओर आलोचनात्मक दृष्टि से देखती है जो आज की गति को अवरूद्ध करने में सहायक होती हैं, उससे भी अधिक उसका सांस्कृतिक दृष्टिकोण है, जो विस्तृत धरातल पर सब प्रकार के कल्याण और मानवतावादी तत्वों को आश्लेषित करता है। यह उसका विचारात्मक रूप है। 
(रचनावली खंंड 6 में संकलित)
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(दिनांक 20-9-1952)

 हालत तो खऱाब है ही, पर जि़ंदगी में बड़ी जानदारी है। इसी के सहारे, जहाँ बनता है, दुलत्तियां झाड़ देता हूँ। भौतिक असफलताओं की चट्टानों पर टकराकर भी हिम्मत नहीं हारा हूँ। लिखाई ख़ूब चल रही है डटकर, भले ही वह प्रकाश में न आयें।
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(दिनांक 31-8-58)

मैं समझता हूँ कि भले ही ज़माना बदल गया और हम भी बदल गये हों किंतु हममें ऐसा कुछ अभी बाक़ी है कि जो नहीं बदला, जो नहीं बदल सकता। वह है स्नेह! आपकी एक कविता मेरे हाथ लग गयी। वह आप ही के हस्ताक्षरों में लिखी हुई है। वहीं पुरानी इंदौर वाली कविता, जिसमें लावण्यभरा वातावरण और नेटिवेटी है!!
अब मेरा हाल सुन लो। जि़ंदगी में काफ़ी ठुकाई-पिटाई के बाद अब राजनांदगाव आ पहुंचा हूँ। यहाँ का कालेज नया-नया है। सभी लोग सहयोग की भावना से प्रेरित हैं। काफ़ी आराम से हूँ। पिछली कश्मकश और मानसिक तनाव अब यहाँ नहीं है। इसलिए यहाँ का वातावरण सुखद है। सोचता हूँ, राजनांदगाव मुझे लाभप्रद होगा।

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